वसंत पंचमी पर आज करें मां सरस्वती की पूजा

हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के त्योहार का विशेष महत्व होता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है यानी इस तिथि पर हर तरह के शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी को पीला फूल और पीले रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है।   

मां सरस्वती के हाथ में कमल क्यों है सुशोभित

शास्त्रों में देवी सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी माना गया है। मां सरस्वती के स्वरूप में उनके हाथ में कमल है। कमल गतिशीलता का प्रतीक है। यह निरपेक्ष जीवन जीने की प्रेरणा देता है। कमल से ये भी संदेश मिलता है कि हमारे चारों तरफ कैसा भी वातावरण क्यों न हो, उसका प्रभाव हमारे तन-मन पर नहीं आना चाहिए। शुद्ध मन में ही ईश्वर का निवास होता है। 

वसंत पंचमी एक अबूझ मुहूर्त 

वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। विद्यारंभ,नवीन विद्या प्राप्ति और गृह-प्रवेश के लिए वसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयकर माना गया है। इस दिन किए गए कार्य और मां का पूजन करने से बुद्धि और धन की निरंतर प्राप्ति होती है।

विद्या की देवी मां सरस्वती का स्वरूप

  • सरस्वती के सभी अंग श्वेताभ हैं,जिसका तात्पर्य यह है कि सरस्वती सत्वगुणी प्रतिभा स्वरूपा हैं। इसी गुण की उपलब्धि जीवन का अभीष्ट है।
  • मां सरस्वती हमेशा सफेद वस्त्रों में होती हैं। इसके दो संकेत हैं पहला हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो। दूसरा संकेत हमारे चरित्र को लेकर है। विद्यार्थी जीवन में कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। वह एकदम साफ हो।

वसंत पंचमी का त्योहार विद्यार्थियों के लिए खास

वसंत पंचमी के दिन ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मां सरस्वती की कृपा से ही व्यक्ति को विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है। विद्या हर व्यक्ति के लिए सबसे अधिक महत्व रखती है। इसी वजह से वसंत पंचमी का पर्व छात्रों, कला व साहित्य जगत के लिए विशेष माना जाता है।   

  •  विद्या और ज्ञान से ज्यादा मूल्यवान इस दुनिया में कोई भी वस्तु नहीं है।
  •  विद्या के जरिए संसार की सबसे मूल्यवान वास्तु भी खरीदी जा सकती है। 
  •  विद्या एक ऐसी अदृश्य चीज है जो हमें अंधेरे से प्रकाश की ओर लेकर जाती है।
  •  विद्या से हमारा स्वभाव विनम्र बनता है, विनम्रता से सज्जनता आती है। सज्जनता से घर-परिवार और समाज में सम्मान मिलता है।
  •  विद्या सबसे अनमोल होती है। इसे कोई चोरी नहीं कर सकता।
  •  दूसरों को विद्या देने पर ये और ज्यादा बढ़ती है। इसका कोई भार नहीं होता है और न ही इसका बंटवारा किया जा सकता है।

वसंत पंचमी के दिन जरूर करें यह उपाय

– वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा करने के दौरान उनको पीले पुष्प, पीले रंग की मिठाई या खीर जरूर अर्पित करना चाहिए।
– वसंत पंचमी के पर्व के अवसर पर देवी सरस्वती को केसर या पीले चंदन का टीका लगाएं और पीले वस्त्र भेंट करें।
– मां सरस्वती के मूल मंत्र  ‘ॐ ऎं सरस्वत्यै ऐं नमः’ का जाप करना चाहिए।

हिंदू पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी की तिथि कल यानी 13 फरवरी को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से आरंभ हो गई है, जिसका समापन आज दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार देशभर में वसंत पंचमी का त्योहार आज मनाया जा रहा है। ऐसे में वसंत पचंमी पर देवी सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस समय के दौरान पूजा संपन्न की जा सकती है।

 हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ज्ञान, विद्या, बुद्धि और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित वसंत पचंमी का त्योहार मनाया जाता है। वसंत पचंमी का त्योहार विद्यार्थियों, कला और साहित्य के क्षेत्र जुड़े लोगों के लिए बहुत ही खास होता है। इस दिन घरों, शिक्षण संस्थानों और कला केंद्रों में सभी कलाओं से परिवपूर्ण मां सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। वसंत पचंमी  के दिन छोटे बच्चों से अक्षर लिखवाकर शिक्षा का शुभारंभ भी किया जाता है। इसके अलावा कला और साहित्य से जुड़े लोग देवी सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करते हैं।

जानिए देवी सरस्वती के अवतरण की पौराणिक कथा

सनातन धर्म में तीन देवियों की हमेशा चर्चा और पूजा होती है। देवी लक्ष्मी, देवी पार्वती और मां सरस्वती। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर वर्ष माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती के प्रागट्य पर्व के रूप में वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। क्या आपको पता है देवी सरस्वती कैसे प्रगट हुईं और इन्हे ज्ञान, कला और विद्या की देवी क्यों कहा जाता है?सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है।

भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थीं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया,संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया व पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी कहलाती हैं।

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