गुजरात में कम मतदान के बावजूद बढ़े भाजपा के वोट, हिमाचल में सत्ता खोकर भी पार्टी ने बचाया जनाधार

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नई दिल्ली: पिछले डेढ़ दो दशक से इसकी बहुत चर्चा होती रही है। गुरुवार को आए चुनाव नतीजे ने एक बार फिर से यह स्थापित कर दिया कि गुजरात माडल या यूं कहें कि मोदी माडल एक ऐसा शासन प्रशासन है जिसमें कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच का दायरा और जनता से संवाद व संपर्क विश्वसनीय ढंग से बढ़ता है। इस मोदी माडल में शिथिलता या विश्राम के लिए जगह नहीं। इस माडल में असंभव शब्द के लिए स्थान नहीं। बल्कि और भी ज्यादा लोगों का विश्वास जीतने के लिए पहले से ज्यादा परिश्रम और हर लक्ष्य को साधने की रणनीति शामिल होती है। यही कारण है कि इस माडल में एंटी इनकंबेंसी नहीं प्रो इनकंबैंसी चुनावी फैक्टर बनता है। लोकसभा चुनाव में इसकी झलक दिखा चुके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता तथा उनके सिपहसालार अमित शाह की रणनीति और परिश्रम ने वह कर दिखाया जो असंभव था।

जीत के सारे रिकार्ड टूटे

गुजरात में भाजपा ने अब तक के जीते के सारे रिकार्ड तोड़ दिए और लगातार सातवीं जीत का कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। गुजरात का संदेश पार्टी नेताओं के लिए भी है और कांग्रेस जैसे मुख्य विपक्षी दल के लिए भी। गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश के भी नतीजे आए जहां भाजपा के हाथ से सत्ता छिन गई। एक दिन पहले ही दिल्ली नगर निगम के भी नतीजे आए थे जहां आम आदमी पार्टी ने भाजपा के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया। लेकिन इन दो स्थानों पर भी भाजपा ने अपना आधार कमजोर नहीं होने दिया। बल्कि वोट फीसद बढ़े। फिर भी भाजपा के अंदर यह सवाल तेजी से उठ खड़ा हुआ है कि स्थानीय नेतृत्व अपने अपने राज्यों में मोदी का गुजरात माडल क्यों नहीं तैयार कर पा रहा है। खुद प्रधानमंत्री मोदी कई मंचों से पार्टी को आगाह कर चुके हैं कि सिर्फ उनके भरोसे न बैठें। जनता से खुद का तार जोड़ें। कार्यकर्ताओं और जनता का विश्वास जीतें और उसे पूरा करें। हिमाचल में पार्टी वह नहीं कर पाई। बगावत और भितरघात ने रही सही कसर पूरी कर दी। दिल्ली में पार्टी के अंदर अब तक ऐसा कोई चेहरा ही नहीं पनप पाया है जिससे पूरी दिल्ली खुद को जोड़े।

पांच साल आगे की सोचते हैं पीएम मोदी

माना जाता है कि और अब भरोसा किया जाने लगा है कि नरेन्द्र मोदी पांच सात साल आगे की सोचते हैं और अमित शाह उसे बखूबी जमीन पर उतारते हैं। गुजरात में जो कुछ हुआ उसकी राह तैयार की गई थी। एक कुशल रणनीतिकार की तरह एंटी इनकंबैंसी का आधार उसी वक्त दुरुस्त कर दिया गया था जब मुख्यमंत्री और उसके साथ पूरी कैबिनेट बदल दी गई थी। चुनाव आते आते उन चेहरों से भी पीछा छुड़ा लिया गया जिसे देखते देखते जनता उब चुकी थी। बगावत हुई लेकिन सशक्त नेतृत्व की तरह उसका प्रभाव थाम लिया गया। सच्चाई यह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस मामले में जनता की सुनी। उन्हें यह भरोसा दिला दिया कि अगर जनता किसी खास व्यक्ति से नाराज है तो पार्टी उसे अहमियत नहीं देगी।

कैंप कर की पूरे चुनाव की निगरानी

अहमदाबाद में शाह ने कैंप कर पूरे चुनाव की निगरानी की और रैलियों व रोड शो के जरिए प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों में यह विश्वास भर दिया कि वादों को पूरा करने, अस्मिता की रक्षा करने के लिए वह हैं। उनकी इसी विश्वसनीयता के कारण पिछली बार के मुकाबले लगभग पांच फीसद वोट कम पड़ने के बावजूद भाजपा के वोट में बढ़ोत्तरी हुई। भाजपा 50 फीसद वोट की सीमा को अब पार करने लगी है। यह जागरुक लोकतंत्र का एक नया रूप है जिसमें महिलाओं की भूमिका बहुत सक्रिय है। अगले साल सात राज्यों में चुनाव हैं। कुछ राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं और कर्नाटक जैसे राज्य में कांग्रेस मजबूत है। ऐसी स्थिति में हिमाचल का नतीजा भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए सबक है। भाजपा के स्थानीय नेतृत्व को अपनी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी।

कांग्रेस को अब नहीं तो कभी नहीं की चेतावनी

वहीं कांग्रेस को चेतावनी है कि अब नहीं तो कभी नहीं। हालांकि यह कांग्रेस के लिए 2019 चुनाव के बाद से ही कहा जा रहा है लेकिन इस बार खासकर गुजरात में कांग्रेस में जितनी निष्क्रियता दिखी वह सवाल खड़ा करते हैं। पार्टी के अंदर कोई बोले न बोले राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की प्रासंगिकता घेरे में है क्योंकि इस यात्रा से गुजरात बाहर रहा। यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस खुद ही राहुल को गुजरात से बाहर रखना चाहती थी। वैसे जिस तरह आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब के बाद गुजरात मे कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई है उसके बाद यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि सत्ता तो दूर, मुख्य विपक्ष की भूमिका में कौन है।

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