जानिए कैसे और कहां मनाया जाता है पोंगल का त्योहार

पोंगल तमिलनाडु में चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है. आज पहला दिन भोंगी पोंगल के रुप में मनाया जा रहा है. इस दौरान भगवान इंद्रदेव की पूजा की जाती है. लोहड़ी पर्व की तरह ही इसे भी किसानों द्वारा फसल के पक जाने की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है.

नई दिल्ली: पूरे भारत में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जा रहा है. तमिलनाडु में इसे पोंगल और गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है. भोगी पोंगल का दिन देवराज इंद्र को समर्पित होता है. इस दिन विधि-विधान से इनकी पूजा-अर्चना होती है. प्रदेश के लोग इस दिन देवराज इंद्र से अच्छी बारिश और अच्छी फसल की कामना के लिए प्रार्थना करते हैं. दक्षिण भारत में इस पर्व को नए साल के रूप में मनाते हैं. यह त्योहार तमिल महीने ‘तइ’ की पहली तारीख से शुरू होता है. जानिए इस साल किस दिन मनाया जाएगा पोंगल का त्योहार.
क्यों मनाते हैं पोंगल
पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है, जिसे इस साल 14 से 17 जनवरी के बीच सेलिब्रेट किया जा रहा है. आज पहले दिन पोंगल की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 2 बजकर 12 मिनट से है. पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है. दूसरे दिन सूर्य के उत्तरायण होने के बाद सूर्य पोंगल पर्व मनाया जाता है. वहीं, तीसरे दिन मात्तु पोंगल और चौथे दिन कन्या पोंगल बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. बता दें कि लोहड़ी पर्व की तरह ही इसे भी किसानों द्वारा फसल के पक जाने की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार, पोंगल पर समृद्धि लाने के लिए वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों को भी पूजा जाता है.

कैसे मनाया जाता है पोंगल |
पोंगल के दिन विशेष रूप से सूर्य देव का पूजन किया जाता है. इस दिन विधि-विधान से सूर्य देव की उपासना के बाद जो भोग लगाया जाता है, उसे पगल कहते हैं. पोंगल के पहले दिन यानि भोगी पोंगल को सुबह उठकर स्नान करके नए कपड़े पहने जाते हैं. इस दिन नए बर्तन में दूध, चावल, काजू, गुड़ आदि चीजों की मदद से पोंगल का भोज तैयार किया जाता है. इस दिन मवेशियों की भी पूजा की जाती है. इस दिन किसान सुबह-सवेरे अपनी बैलों को स्नान कराकर, उन्हें खूब सजाते हैं. दक्षिण भारत के कई हिस्सों में इस त्योहार से जुड़ी एक और प्रथा है. इस प्रथा के मुताबिक, लोग घरों से पुराना सामान निकाल कर नया सामान लाते हैं. साथ ही नए-नए कपड़े पहनकर इस त्योहार का जश्न मनाया जाता है.

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