जैन समाज का महापर्व पर्युषण सोमवार से शुरू हो रहा है। 26 अगस्त से श्वेतांबर जैन समाज इस पर्व को मनाएगा, जो 2 सितंबर तक चलेंगे। वहीं दिगंबर समाज 3 सितंबर से इसकी शुरुआत करेगा और 12 सितंबर को समापन। उत्तम क्षमा से शुरुआत होगी। यानी हम शास्त्रों का पालन करते हुए खुद से उन गलतियों के लिए क्षमा मांगेंगे जो अनजाने में हो गई हैं। समापन क्षमावाणी के साथ होगा। इस दिन सालभर में जाने-अनजाने हुई गलती के लिए माफी मांगी जाती है।
पर्युषण पर्व को आध्यात्मिक दिवाली की भी संज्ञा दी गई है। इस खास मौके पर प्रमुख संतों की जानकारी जुटाई है, जो प्रदेश में अलग-अलग जगह चातुर्मास कर रहे हैं। मकसद है- देश और दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले संतों से ज्ञान की और बातें समझी जा सकें। (इन संतों के अलावा कई मुनि, साध्वियों के द्वारा चातुर्मास किया जा रहा है।
- साल के आषाढ़, सावन, भाद्रपद और क्वार… चार महीने में जैन संत-साध्वियां जीव संवेदना के कारण पैदल नहीं चलते हैं। चातुर्मास अधिक से अधिक 165 और कम से कम 100 दिन का होता है।
- चातुर्मास काल में अकाल, अप्रिय घटना, भव्य धार्मिक कार्य या साधन में अव्यवस्था होने पर चातुर्मास स्थल से बाहर जा सकते हैं। आसपास किसी साधु की समाधि चल रही तो 48 कोस तक जा सकते हैं।
- आचार्यश्री वर्धमानसागरजी महाराज (दक्षिण) ससंघ का चातुर्मास महाराष्ट्र में चल रहा था। बाढ़ के हालात बनने पर चातुर्मास स्थल घिर गया। ऐसे में उन्हें दूसरे गांव ले जाया गया।
- यरनाल जिला बेलगांव (कर्नाटक) में चातुर्मास कर रहे वात्सल्य वारिधि (पंचम पट्टाचार्य) वर्धमान सागरजी महाराज को अल्पप्रवास के लिए सुरक्षित स्थान हन्नुर ले जाया गया।
- पंडाल में बंधी गाय- कोल्हापुर में बाढ़ के हालात बनने पर मुनिराजों ने शासन से निवेदन किया कि हमारे चातुर्मास के निमित्त बना विशाल पंडाल पूर्णतः शरणार्थियों व प्राणियों की रक्षा हेतु खुला है। बाद में यहां गायों को आश्रय दिया गया।