
एक बार एक नौजवान लड़का एक दार्शनिक के पास आया और उनसे पूछा, ”सफलता का रहस्य क्या है?” दार्शनिक ने उससे कहा, ”मैं तुम्हें कल उत्तर दूंगा, कल तुम मुझे नदी के किनारे मिलो।”
दूसरे दिन वह लड़का दार्शनिक से नदी के किनारे मिला। दार्शनिक उसे लेकर नदी में आगे बढऩे लगे। वे दोनों नदी में तब तक आगे बढ़ते रहे जब तक नदी का पानी उनके गले तक न आ गया।
वहां पहुंचकर अचानक ही दार्शनिक ने उस लड़के का सिर पकड़ कर पानी में डुबो दिया, पानी के भीतर सांस लेने में अक्षम होने के कारण वह लड़का पानी से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन दार्शनिक की मजबूत पकड़़ के सामने उसका यह संघर्ष विफल रहा।
दार्शनिक ने उसे तब तक पानी में डुबोए रखा जब तक वह नीला न पड़ गया, उसे नीला पड़ता देख दार्शनिक ने उसका सिर पानी से बाहर निकाला, पानी से बाहर निकलते ही वह लड़का हांफते हुए तेजी से सांस लेने लगा, उसे ऐसा करते देख दार्शनिक ने पूछा, ”यह बताओ, जब तुम पानी के भीतर थे, तब सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”
उस लड़के ने उत्तर दिया, ”सांस लेना”
दार्शनिक ने कहा, ”यही सफलता का रहस्य है। जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह चाहोगे, जितना सांस लेना तो वह तुम्हें मिल जाएगी, इसके अतिरिक्त सफलता का कोई रहस्य नहीं है।”