पेट्रोल और डीजल ऐसे तरल हैं जिनकी कीमतों में इजाफे से अर्थव्यवस्था से जुड़ा हर पहलू प्रभावित हो जाता है। सबसे ज्यादा मार आम आदमी और उपभोक्ताओं पर पड़ती है। दरअसल ऊर्जा के इन स्त्रोतों पर भारत की अति निर्भरता ही कीमतों में उछाल की वजह होती है। अभी देश अपनी जरूरत का 89 फीसद कच्चे तेल का आयात करता है। गैस के मामले में यह आंकड़ा करीब 53 फीसद है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में जरा सी ऊंच-नीच भारत में तेल कीमतों में बड़ी उछाल के रूप में सामने आती है। तेल कीमतों में ताजा वृद्धि की वजह और इसके असर पर पेश है एक नजर:
दो हैं प्रमुख वजहें
तेल कीमतों के आसमान छूने की प्रमुख रूप से दो वजहें हैं। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम में वृद्धि और केंद्र और राज्यों की उच्च टैक्स दरें। महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोल की एक्साइज ड्यूटी 19.98 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 32.98 रुपये कर दी थी। डीजल में भी ऐसी ही वृद्धि हुई। उस पर एक्साइड ड्यूटी 15.83 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 31.83 रुपये प्रति लीटर कर दी गई। इसी समयावधि के दौरान कई राज्य सरकारों ने भी ईंधन के इन दोनों रूपों पर वैट बढ़ा दिया था।
कच्चे तेल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं
18 फरवरी को ब्रेंट क्रूड का अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क 65.09 डॉलर प्रति बैरल (करीब 159 लीटर) था। यह दाम अप्रैल 2020 में ऐतिहासिक रूप से सबसे कम 19 डॉलर प्रति बैरल था। यह वह समय था, जब महामारी के चलते दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन था और आवागमन ठप हो चुका था। सड़कें सूनी थी। कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए मई 2020 में ओपेक देशों ने तेल उत्पादन में कमी करके इसे 97 लाख बैरल प्रतिदिन पर नियंत्रित भी कर दिया था। कीमतों में और तेजी लाने के लिए सऊदी अरब ने इस साल की फरवरी और मार्च तक रोजाना उत्पादन में 10 लाख बैरल की कमी लाने का निर्णय लिया। यही कटौती तेल के दामों में आग लगाने की मुख्य वजह के तौर पर देखी जा रही है। महामारी की सुधरती स्थिति के बाद बढ़ती मांग ने आग में घी का काम किया। भारत जैसे बड़े तेल उपभोक्ता देश बड़े उत्पादक देशों से पहले ही कटौती पर रोक लगाने का आग्रह कर रहे हैं जिससे कि उनके उपभोक्ताओं पर महंगाई की मार न्यूनतम की जा सके।
दामों में टैक्स का खेल
पेट्रोल और डीजल पर हर राज्य में टैक्स की अलग-अलग तस्वीर होती है। देश की राजधानी दिल्ली में यातायात किराया, डीलर कमीशन, सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी और वैट को मिलाकर पेट्रोल की कुल कीमत में इनकी हिस्सेदारी करीब 60 फीसद होती है। डीजल के मामले में ये हिस्सेदारी 55 फीसद बैठती है। दिल्ली में किसी डीलर को यातायात किराया समेत 32.10 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत चुकानी होती है। इसके बाद इसमें ड्यूटीज और डीलर का कमीशन भी जुड़ता है। इसी तरह एक डीलर डीजल दिल्ली में डीलर को 33.71 रुपये में मिलता है। दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल पर डीलर का कमीशन सिर्फ 3.68 रुपये और डीजल पर 2.51 रुपये है। शेष कीमतों में टैक्स की हिस्सेदारी होती है।
पड़ोसी देशों में कीमतें (प्रति लीटर)
श्रीलंका (15 फरवरी)
पेट्रोल- 60.29 रुपये
डीजल- 38.91 रुपये
नेपाल-
पेट्रोल-69.01 रुपये
डीजल- 58.32 रुपये
पाकिस्तान
पेट्रोल- 51.12 रुपये
डीजल- 53.02
बांग्लादेश
पेट्रोल-76.43
डीजल- 55.78
2014 से अब तक वृद्धि
26 मई, 2014 को जब केंद्र में राजग की सरकार बनी तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमतें 71.41 रुपये और डीजल का दाम 56.71 रुपये प्रति लीटर था। तब से पेट्रोल की कीमतों में 26 फीसद और डीजल की कीमतों में 42 फीसद का इजाफा हो चुका है।