नई दिल्ली | 15 जून की शाम जब गालवान में भारतीय सेना के जवान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के साथ भिड़ गए, तब नदी का तापमान शून्य (और कुछ स्थानों पर इससे नीचे) के करीब था। बड़ी संख्या में दोनों तरफ के सैनिक हाइपोक्सिया (ऊंचाई के कारण कम ऑक्सीजन का स्तर) और हाइपोथर्मिया (अत्यधिक ठंड) का सामना कर रहे थे ।
भारतीय सैन्य कमांडरों के अनुसार, यह जानकारी प्रासंगिक है क्योंकि सितंबर से पूर्वी लद्दाख में मौसम तेजी से बदलता है। हिंसक झड़प में बचे लोगों ने बताया, जब दोनों सेनाओं के बीच झड़प शुरू हुई तब बड़ी संख्या में चीनी सैनिक ऊपर आए, लेकिन 16000 फीट पर ऑक्सीजन की कमी के कारण जल्द ही नीचे जाने लगे। जो ऑक्सीजन की कमी से बच गए वह जमी हुई गलवान नदी की चपेट में आ गए।
15 जून को गलवान घाटी में हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। इसके अलावा चीन के 40 से ज्यादा सैनिक भी मारे गए, लेकिन चीन की सरकार ने अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया। हालांकि, चीन ने कुछ कमांडरों के मारे जाने की बात जरूर स्वीकार की थी। 15 और 16 जून की रात दो चीनी हेलीकॉप्टरों ने मृतकों और घायलों को पास के अस्पतालों में ले गए।
झड़प के बाद चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के एडिटर इन चीफ ने जरूर माना था कि उनके देश के कई सैनिकों को भारत ने मार गिराया है। उन्होंने ट्वीट किया था कि जहां तक मुझे जानकारी है, चीनी पक्ष के सैनिक भी घटना में हताहत हुए हैं।
भारत और चीन के बीच मई महीने की शुरुआत में सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ था। पूर्वी लद्दाख में स्थिति उस समय खराब हो गई थी, जब पांच मई को पेगोंग झील क्षेत्र में भारत और चीन के लगभग 250 सैनिकों के बीच लोहे की छड़ों और लाठी-डंडों से झड़प हो गई। दोनों ओर से पथराव भी हुआ था, जिसमें दोनों देशों के सैनिक घायल हुए थे। यह घटना अगले दिन भी जारी रही। इसके बाद दोनों पक्ष अलग हुए, लेकिन गतिरोध जारी रहा।
दोनों देशों के बीच पांच जुलाई को विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में गतिरोध खत्म करने पर सहमति बनी। सितंबर तक गतिरोध वाले सभी प्वांट्स से दोनों देशों के सैनिक पीछे हट जाएंगे। एव वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने बताया, ‘इन इलाकों के तापमान से आपकी जान तो नहीं जा सकती, लेकिन बर्फीली हवा परेशान करती है। गलवान, गोग्रा-हॉट स्प्रिंग में मौसम काफी खराब हो जाते हैं।’
सैन्य कमांडर ने कहा कि विपरित मौसम और सात फीट तक की बर्फ चीनी सैनिकों को परेशान कर सकती है। अक्साई चिन में चीन की सेना काफी हद तक संरक्षण का काम करती है, जिन्हें तिब्बत और शिनजियांग में तीन महीने की गर्मियों में अभ्यास के लिए तैयार किया गया था। वहीं, भारतीय सैनिक पेट्रोलिंग के दौरान न केवल पैदल चलते हैं, बल्कि खराब मौसम नें भी सियाचिन या सिक्किम या फिर तावांग के ला रिज में रहते हैं।
भारतीय सेना 1984 से सियाचिन, कश्मीर और उत्तर-पूर्व पर्वत इलाके में दुश्मनों से लड़ रही है। कमांडरों ने बताया कि आज भी भारतीय सेना इंदिरा कर्नल पश्चिम, सियाचिन ग्लेशियर, सिक्किम उंगली क्षेत्र, डोकलाम पर सबसे दूर इलाके और अरुणाचल प्रदेश में पहाड़ पर मुस्तैद है।