दिवाली को लेकर दिवाली को लेकर काफी लोगों में असमंजस का विषय बना हुआ है। लोगों के मन में ये लग रहा है कि दीपोत्सव का पर्व दिवाली कब मनाई जानी चाहिए। सनातन धर्म में दिवाली का त्योहार बहुत ही प्रमुख माना गया है। इसका हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता ह। दिवाली का पर्व पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली हर साल कार्तिक माह की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस दिन धन, सुख-वैभव के देवी माता लक्ष्मी की पूजा अर्चान की जाती है। मान्यता है कि दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर आती है और अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखती हैं।
आखिर लोगों के मन में क्यों है असमंजस
इस साल दिवाली की तिथि को लेकर लोगों के मन में काफी संशय चल रहा है कि दिवाली कब, कैसे और किस दिन शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दिवाली पांच दिनों का त्योहार है। दिवाली की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है और समाप्ति भैया दूज पर होती है। पंचांग के अनुसार, प्रत्येक साल दिवाली कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। लेकिन इस साल अमावस्या दो दिन पड़ने के कारण कुछ लोगों के मन में कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है। लोगों को पता नहीं चल रहा है कि दिवाली 31 अक्टूबर को मनाई जानी चाहिए या 1 नवंबर को।
दिवाली सनातन धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इस पर्व अंधकार पर प्रकाश की विजय का त्योहार है। दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा विधि-विधान होती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दिवाली पर महालक्ष्मी की पूजा होती है। महालक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल और स्थिर लग्न में सबसे शुभ माना गया है। प्रदोष काल के अलावा महानिशीथ काल में मां लक्ष्मी की पूजा करने का महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन माता लक्ष्मी का प्राकट्य अमावस्या तिथि के संध्याकाल में हुआ था। इसलिए इस दिन दिवाली का पर्व और लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल और रात्रि के निशीथ काल में की जाती है।
यहां दूर करें अपना असमंजस
पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 22 मिनट पर हो रही है और समाप्ति 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 23 मिनट पर होगी। ज्योतिषियों के अनुसार, माता लक्ष्मी प्रदोष काल और निशीथ काल में भ्रमण करती है। इसलिए इस शुभ तिथि में माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान होता है। पंचांग के अनुसार, 31 अक्टूबर को पूरी रात्रि अमावस्या की तिथि रह रही है। इसलिए 31 अक्टूबर को माता लक्ष्मी का पूजन करना अधिक फलदायी साबित होगा।
दिवाली को लेकर क्या है ज्योतिषियों का तर्क
दिवाली को लेकर कुछ ज्योतिषाचार्यों और पंडितों का मानना है कि दिवाली पर सूर्योदय के बाद तीन प्रहर तक कोई भी तिथि व्याप्त होतो वह उदयकाल तिथि में होना माना जाता है। इसके साथ ही उसी काल में पूजा करना शास्त्र समस्त है। यानी ऐसे में 1 नवंबर को अमावस्या तीन प्रहर की है। साथ ही प्रदोष व्यापिनी भी है। इस कारण से 1 नवंबर को दिवाली मनाने की सलाह दे रहे हैं। तो आइए शुभ मुहूर्त, प्रदोष काल और निशीथ काल मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानते हैं।
दिवाली 2024- अमावस्या तिथि
कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारंभ- 31 अक्टूबर को दोपहर 03:52 मिनट से।
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्त- 01 नवंबर को शाम 06:16 मिनट तक।
दिवाली 2024- प्रदोष काल मुहूर्त
दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद और स्थिर लग्न में करना चाहिए। दिवाली पर स्थिर लग्न का होना बहुत ही जरूरी है। ज्योतिषियों के अनुसार, दिवाली पर जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि में उदय होते हैं तो उस समय माता लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए, क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। स्थिर लग्न के समय माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में मां लक्ष्मी ठहर जाती है। वहीं प्रदोष काल का प्रत्येक दिन सूर्यास्त के बाद 2 घड़ी यानी 48 मिनट तक रहता है। देश की राजधानी दिल्ली के समय अनुसार, 31 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट पर सूर्यास्त होगा। इस समय के बाद माता लक्ष्मी की पूजा शुरू हो सकती है।
अगर बात करें 1 नवंबर को शाम 6 बजकर 16 मिनट तक अमवास्या तिथि व्याप्त रहेगी। इसके साथ ही सूर्यास्त का समय 5 बजकर 36 मिनट पर होगा। ऐसे में 1 नवंबर को भी प्रदोष काल और अमावस्या तिथि व्याप्त रहेगी। पंचांग के अनुसार, 1 नवंबर को शाम 5 बजकर 36 मिनट से लेकर अमावस्या तिथि के समापन 6 बजकर 16 मिनट तक माता लक्ष्मी की पूजा करने का समय है। यानी इस दौरान सिर्फ 40 मिनट माता लक्ष्मी की पूजा करने का समय मिलेगा। उसके बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी और प्रतिपदा तिथि में माता लक्ष्मी की पूजा नहीं होती है।
दिवाली निशिथ काल मुहूर्त
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त प्रदोष व्यापिनी अमावस्या तिथि और स्थिर लग्न को माना गया है। दिवाली के मध्य रात्रि के समय आने वाला मुहूर्त महानिशीत काल में मां काली की पूजा की जाती है। यह काल तांत्रिक और साधकों के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त मानी जाती है। 31 अक्टूबर की मध्य रात्रि को निशिथ काल मूहूर्त सिर्फ रात के 11 बजकर 39 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। लेकिन 1 नवंबर को मध्य रात्रि को निशिथ काल मुहर्त नहीं मिल रहा है। ऐसे में दिवाली 31 अक्टूबर को मनाना शुभ रहेगा।
दिवाली लक्ष्मी पूजन शुभ मुहूर्त (31 अक्टूबर 2024)
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 06:45 से 08:30 तक
अवधि – 01 घण्टे 45 मिनट
प्रदोष काल – 05:48 से 08:21
वृषभ काल – 06:35 से 08:33
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:36 से 06:02 तक
संध्या पूजा- शाम 05:36 से 06:54 तक
निशिथ काल पूजा-रात्रि 11: 39 से 12: 31 तक