पंचांग के अनुसार चतुर्दशी तिथि 30 अक्टूबर को दोपहर 0 1:15 बजे शुरू हो रही है. चतुर्दशी तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर के 03 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 30 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। हम आपको बताते है कि नरक चतुर्दशी यानी की छोटी दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा कैसे करें?
नरक चतुर्दशी पर क्या करें
- नरक चतुर्दशी पर यमराज के लिए मुख्य द्वार के बाहर तेल का दीपक रखें।
- इस दिन शाम को देवताओं की पूजा करने के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर और घर के बाहर रखें। ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
- भगवान कृष्ण की पूजा करने से सौंदर्य बढ़ता है। इस दिन निशीथ काल (आधी रात का समय) में बेकार सामान घर से बाहर कर देना चाहिए। दरिद्रता का नाश होता है।
स्नान की विधि
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने का महत्व है, ऐसा कहा जाता है कि इससे सौंदर्य में वृद्धि होती है। कार्तिक अहोई अष्टमी के दिन स्नान के लिए तांबे के बर्तन में जल भरकर उसे नहाने के पानी में मिलाकर स्नान किया जाता है। मान्यता के अनुसार ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
- स्नान के दौरान तिल के तेल से मालिश करने और औषधीय पौधे अपामार्ग यानी चिरचिरा को सिर के चारों ओर तीन बार घुमाने का विधान है।
- स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से पापों का नाश होता है।
नरक चतुर्दशी पूजा विधि
- इस दिन छह देवताओं की पूजा की जाती है। यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगवान वामन की पूजा की जाती है।
- घर के ईशान कोण में पूजा करें। मुंह उत्तर-पूर्व, पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के समय पंचदेव की स्थापना करें। इनमें सूर्य देव, श्री गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु शामिल हैं।
- इस दिन छह देवताओं की षोडशोपचार से पूजा करें। इसमें पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पान, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार शामिल हैं। अंत में संगत सिद्धि के लिए दक्षिणा भी अर्पित करनी चाहिए।
- सभी के सामने धूप और दीप जलाएं और माथे पर हल्दी, चंदन और चावल लगाएं। पूजा के दौरान अनामिका उंगली से गंध लगाना चाहिए। षोडशोपचार की सभी सामग्रियों से पूजा करें, इस दौरान मंत्रों का जाप करते रहें।
- पूजा के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नैवेद्य में नमक, मिर्च और तेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। थाली में तुलसी का पत्ता रखा जाता है।
- मुख्य पूजा के बाद अब प्रदोष काल में मुख्य द्वार या आंगन में दीपक जलाएं। यम के नाम का दीपक भी जलाएं। रात को घर के सभी कोनों में दीपक जलाएं।