देश की न्यायिक प्रणाली के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्ती को तलाक देता है, तो उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है. हालांकि मुस्लिम समुदाय कई बार मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को मानते हुए गुजारा भत्ता नहीं देते हैं. लेकिन इस बार सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम पुरुष को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. आज हम आपको बताएंगे कि किन स्थितियों में पत्नी अपने पती से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
देश की न्यायिक प्रणाली के मुताबिक अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है और पत्नी के पास आय का कोई साधन नहीं है, तो पति को हर महीने अपने पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है. ताजा मामला तेलंगाना का है. इस मामले की सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हित में एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि अब तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर अपने पति से भरण पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं. हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा है कि यह फैसला हर धर्म की महिलाएं पर लागू होता है और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं. इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है.
क्या है मामला
बता दें कि यह मामला अब्दुल समद नाम के व्यक्ति का है. हाल ही में तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था. इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी पत्नी सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है. महिला को मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 (Muslim Women Act, 1986) के अनुरूप चलना होगा. लेकिन कोर्ट ने इस दौरान सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अब्दुल समद को गुजाराभत्ता देने का आदेश दिया है.
महिलाओं को कब नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता
अब सवाल ये है कि किसी भी महिला को गुजारा भत्ता कब नहीं मिलेगा? बता दें कि सीआरपीसी की धारा 125 में पति अपनी पत्नी, बच्चों और माता–पिता को गुजारा भत्ता तभी देता है, जब उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं होता है. इस दौरान अगर उनके पास आजीविका का कोई साधन होता है, तो ऐसी स्थिति में उन्हें भत्ता देने की मनाही होती है.