एक्सरसाइज के लिए हर कोई जिम का रुख जरूर करता है, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि जिम जाने का मन ही नहीं करता. ऐसे में आप अपने मनपसंद गाने पर डांस करके भी एक्सरसाइज कर सकते हैं. इससे न सिर्फ आपका शरीर फिट रहेगा, बल्कि मूड बेहतर होगा और दिमाग भी तेज हो जाएगा. गौर करने वाली बात यह है कि डांस का मतलब विक्की कौशल के वायरल गाने तौबा-तौबा के स्टेप्स फॉलो करने लगें. डांस का मतलब यह है कि उसमें आसान स्टेप्स शामिल हो, जिनसे आपको दिक्कत न हो.
डांस ऐसे करता है मदद
एक्सपर्ट्स की मानें तो डांस करने से पूरे शरीर की एक्सरसाइज आसानी से हो जाती है. इससे न सिर्फ शारीरिक फायदा होता है, बल्कि मानसिक सेहत भी बेहतर होती है. खास बात यह है कि डांस हर उम्र और हर तरह के शख्स के लिए फायदेमंद साबित होता है. दरअसल, डिमेंशिया और अल्जाइमर से पीड़ित कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो भटक जाने के डर से जिम नहीं जाते हैं. ऐसे लोगों के लिए भी डांस बेहतर ऑप्शन है. वहीं, दिव्यांग भी किसी ट्रेनर की मदद से आसानी से डांस कर सकते हैं.
डांस से ऐसे तेज होता है दिमाग
गुरुग्राम स्थित आर्टिमिस अस्पताल में डायरेक्टर ऑफ न्यूरोसर्जरी डॉ. आदित्य गुप्ता ने इस मामले में विस्तार से समझाया. उन्होंने बताया कि नियमित रूप से वॉकिंग और एक्सरसाइज करने के मुकाबले डांस करने के लिए ज्यादा ब्रेन पावर की जरूरत होती है. डॉ. आदित्य के मुताबिक, जब आप डांस करते हैं तो सिर्फ आपका शरीर ही मूव नहीं होता, बल्कि आपके दिमाग की भी एक्सरसाइज होती है. दरअसल, डांस में कोऑर्डिनेशन और बैलेंस दोनों की जरूरत होती है. इससे स्पैटियल अवेयरनेस में इजाफा होता है और आपके दिमाग को नए कनेक्शन बनाने में मदद मिलती है.
डॉक्टर ने दी यह सलाह
डॉ. आदित्य ने बताया कि डांस के दौरान आप जो वर्क आउट करते हैं, उससे आपकी याद्दाश्त भी बढ़ती है. दरअसल, डांस करने के लिए स्टेप्स याद करने होते हैं. इससे आपको पैटर्न, रिदम और सीक्वेंस याद रखने में मदद मिलती है. जब आप किसी धुन पर थिरकते हैं तो हाथ-पैरों को अलग-अलग चलाकर आप मल्टीटास्किंग को अंजाम देते हैं. यही वजह है कि डांस करने से दिमाग तेज होता है. वहीं, अल्जाइमर, डिमेंशिया और ब्रेन इंजरी से जूझ रहे लोगों के लिए डांस काफी फायदेमंद साबित होता है. बता दें कि डांस को लेकर साल 2021 में यॉर्क यूनिवर्सिटी में एक स्टडी हुई थी. इसमें देखा गया था कि डांस की वीकली क्लासेज से पार्किंसंस से थोड़े-बहुत पीड़ित मरीजों को घूमने-फिरने और अपने रोजाना के काम आसानी से निपटाने में मदद मिलती है.