दुनियाभर में स्तन कैंसर नाम की बीमारी कहर बरपा रही है. विकसित देशों में 25% तक स्तन कैंसर के मामलों को रोका जा सकता है, अगर उन वजहों को बदला जाएं जिनसे यह कैंसर होने का खतरा बढ़ता है.
अब स्तन कैंसर दुनिया का सबसे आम और जानलेवा कैंसर बन चुका है. भारत में भी खतरा बढ़ रहा है. अनुमान है कि साल 2040 तक यह बीमारी हर साल दस लाख लोगों की जान लेने लगेगी. यह दावा लैंसेट कमिशन की एक नई रिपोर्ट में किया गया है.
आंकड़े बताते हैं साल 2020 के अंत तक (लगातार 5 सालों के दौरान) लगभग 78 लाख महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था. इसी साल में लगभग 6 लाख 85 हजार महिलाओं की मौत इस बीमारी के कारण हुई.
2020 में दुनियाभर में जहां स्तन कैंसर के 23 लाख नए मरीजों का पता चला. वहीं अनुमान है कि 2040 तक यह आंकड़ा लगभग 30 लाख (2020 की तुलना में 30% ज्यादा) पार कर जाएगा और इस बीमारी से मरने वालों की संख्या दस लाख (2020 की तुलना में 50% ज्यादा) से ज्यादा हो जाएगी.
किस देश में स्तन कैंसर के सबसे ज्यादा मामले
अलग-अलग देशों में स्तन कैंसर के मामले अलग-अलग संख्या में हैं. उदाहरण के लिए 2020 में दक्षिण-मध्य एशिया और मध्य, मध्य और पूर्वी अफ्रीका जैसे कुछ क्षेत्रों में प्रति एक लाख महिलाओं में 40 से कम महिलाओं में स्तन कैंसर का पता चला था. वहीं ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका, कनाडा और पश्चिमी उत्तरी यूरोप में यह आंकड़ा 80 से भी ज्यादा था. भविष्य में स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है.
गरीब और मध्यम आय वाले देशों में यह बीमारी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी. जो देश कम विकसित हैं उनमें स्तन कैंसर के 2040 तक दोगुने मरीज होने की संभावना है. मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा 70% तक बढ़ सकता है.
भारत में स्तन कैंसर के कितने मामले
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) के आंकड़ों के अनुसार, साल 2022 में देश में स्तन कैंसर के अनुमानित मामले 216,108 हैं.
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) के तहत राज्य सरकारों के सहयोग से सभी के लिए किफायती कीमत पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. कैंसर की दवाओं को अधिकतम खुदरा मूल्य की तुलना में काफी कम दर पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कुछ अस्पतालों/संस्थानों में फार्मेसी स्टोर स्थापित किए गए हैं. यह जानकारी मार्च 2023 में राज्यसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने एक लिखित जवाब में दी थी.
समाज को कैसे प्रभावित करता है कैंसर
दुनियाभर में 2020 में कैंसर से 4.4 मिलियन महिलाओं की मौत हुई थी जिससे 14 लाख बच्चे अनाथ हो गए. इनमें 25 फीसदी बच्चों की मां की मौत का कारण स्तन कैंसर था. रिपोर्ट के अनुसार गरीब और मध्यम आय वाले देशों में आने वाले समय में भी स्तन कैंसर का सामाजिक और आर्थिक बोझ सबसे ज्यादा रहेगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि कैंसर के इलाज में बहुत खर्च होता है जिससे परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं. साथ ही अनाथ बच्चों की पढ़ाई पूरी होने की संभावना कम हो जाती है. इससे उनके गरीबी के जाल में फंसने की संभावना भी बढ़ जाती है.
रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि समाज में लिंग, जाति और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव के कारण स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं को समान इलाज नहीं मिल पाता है. कई रिसर्च में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि नस्ल और जातीयता के आधार पर भी इलाज में भेदभाव होता है.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि पिछले 30 सालों में स्तन कैंसर के इलाज में काफी तरक्की हुई है, जिससे मृत्यु दर कम हुई है. मगर यह फायदा ज्यादातर अमीर देशों को ही मिला है, जहां लोग नए और महंगे इलाज का खर्च उठा सकते हैं.
बढ़ते स्तन कैंसर के मरीजों का क्या है कारण
अनुमान है कि दुनिया भर में जितनी भी महिलाओं की मौत स्तन कैंसर से होती है उनमें से 21% मौतें सिर्फ इन तीन वजहों से हो सकती हैं- शराब पीना, मेनोपॉज के बाद वजन बढ़ना, और शारीरिक निष्क्रियता.
2012 में पूरी दुनिया में 1.1 लाख स्तन कैंसर के मामले सिर्फ मोटापे की वजह से हुए. यह समस्या सबसे ज्यादा अमेरिका, कनाडा, पश्चिमी और पूर्वी यूरोप और लैटिन अमेरिका में देखी गई. कुछ विकसित देशों (जैसे UK) में 8-13% स्तन कैंसर के मामलों का संबंध मोटापे से है. अमेरिका में पोस्ट-मेनोपॉजल अफ्रीकी मूल की महिलाओं में यह आंकड़ा 28% तक है.
शराब के सेवन से भी स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता है. यूरोप में 2017 में जितने लोगों को शराब पीने की वजह से कैंसर हुआ उनमें से 13% ऐसे लोग थे जो थोड़ी या सामान्य मात्रा में शराब पीते थे. इनमें से 50% स्तन कैंसर के मामले थे. 2020 में 98,300 महिलाओं को सिर्फ शराब पीने की वजह से स्तन कैंसर हुआ. ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कुछ विकसित देशों में 8-16% स्तन कैंसर के मामले शराब पीने से होते हैं.
ब्रिटेन में 4.7% स्तन कैंसर के मामलों का संबंध इस बात से है कि जन्म देने के बाद मां ने बच्चे को स्तनपान नहीं करवाया. हर बच्चे को 12 महीनों तक स्तनपान करवाने से स्तन कैंसर का खतरा 4.3% कम हो जाता है. इससे ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (एक बहुत ही आक्रामक प्रकार का स्तन कैंसर) का खतरा भी कम होता है. ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर कम उम्र की महिलाओं और अफ्रीकी मूल की महिलाओं में ज्यादा देखा जाता है.
जो लोग शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं रहते हैं उनमें स्तन कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है, भले ही उनका वजन (BMI) ठीक हो. विकसित देशों में लगभग 2 से 10 फीसदी स्तन कैंसर के मामले शारीरिक निष्क्रियता के कारण होते हैं. लेकिन गरीब देशों में शारीरिक निष्क्रियता बहुत तेजी से बढ़ रही है. रिपोर्ट के अनुसार 1990 से 2019 के बीच गरीब देशों में शारीरिक निष्क्रियता के कारण होने वाले नुकसान में हर साल 1.02% की दर से इजाफा हो रहा है.
जो महिलाएं एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन दोनों हार्मोन का सेवन एक साथ करती हैं, उनमें स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. यह खतरा उनमें ज्यादा होता है जो लोग लंबे समय से HRT ले रहे हैं. जिन महिलाओं ने 1 से 4 सालों तक Combined HRT लिया है उनमें स्तन कैंसर होने की संभावना सामान्य महिलाओं से 1.6 गुना ज्यादा होती है. अगर सिर्फ एस्ट्रोजन HRT लिया गया है तो स्तन कैंसर का खतरा नहीं बढ़ता है.
ऐसी गर्भ निरोधक गोलियां (Combined Oral Contraceptives) जिनमें दो तरह के हार्मोन होते हैं उन्हें खाने से भी स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. जो महिलाएं ये गोलियां खा रहीं हैं उनमें स्तन कैंसर होने का खतरा सामान्य महिलाओं से 1.24 गुना ज्यादा होता है. ब्रिटेन में 2.1% स्तन कैंसर मामले HRT की वजह से होते हैं और 0.8% मामले हार्मोनल गर्भ निरोधकों की वजह से.
स्तन कैंसर की समस्या से निपटने का क्या है समाधान
लैंसेट ब्रेस्ट कैंसर कमिशन की रिपोर्ट में स्तन कैंसर की समस्या से निपटने के लिए एक रणनीति भी पेश की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नीतियों में ऐसे बदलाव किए जाएं जिससे स्तन कैंसर होने की संभावनाओं को कम किया जा सके. इसके लिए एक सुनियोजित तरीके से लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर रोकथाम के तरीके अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए. अनुमान है कि इस तरीके से 2040 तक होने वाले 30 लाख नए मामलों को रोका जा सकता है.
सभी मरीजों को उनके हालात के अनुसार सही समय पर सही इलाज दिया जाए. इसमें उनके व्यक्तिगत विचारों को भी ध्यान में रखा जाए. दुनियाभर में बेहतर तरीके से उन लोगों के बारे में आंकड़े इकट्ठा किए जाएं जिन्हें दोबारा कैंसर हो सकता है. इसमें सिर्फ मेटास्टेटिक स्तन कैंसर (Metastatic Breast Cancer) ही नहीं बल्कि दूसरे मेटास्टेटिक कैंसर भी शामिल हों.
दुनियाभर में स्तन कैंसर की समय पर जांच, इलाज और उसमें नई तकनीकों का इस्तेमाल सुनिश्चित हो. इस लक्ष्य को पाने के लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग की जरूरत है. स्तन कैंसर का इलाज बहुत खर्चीला होता है इसलिए इससे होने वाले मानसिक दुख और परेशानी को भी महत्व दिया जाए. ये कम करने के लिए कदम उठाए जाएं.
कैंसर के इलाज के बारे में मरीज को सारी जानकारी दी जाए और उनसे इलाज में भागीदार बनाया जाए. यह एक ऐसा लक्ष्य है जो विश्व स्तर पर हासिल किया जा सकता है और ऐसा करने की जरूरत भी है.