इंदौर समेत एमपी के 86 ब्लॉक तरसेंगे पानी  के लिए, वॉटर लेवल गिरने से हालात बिगड़ने का अलर्ट

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भोपाल। मध्यप्रदेश के इंदौर के शहरी क्षेत्र, धार के तिरला, राजगढ़ के नरसिंहगढ़, सीहोर के आष्टा और छिंदवाड़ा ब्लॉक का भूजल स्तर गंभीर श्रेणी में पहुंच गया है. इसका खुलासा केंद्रीय भूमिजल आयोग के वर्ष 2023 की रिपोर्ट में हुआ है. इसमें बताया गया है कि प्रदेश में 60 ब्लॉक ऐसे हैं, जो अभी सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं. यदि इसमें सुधार नहीं हुआ तो यहां के हालात भयावह होंगे. वहीं 26 ब्लॉक ऐसे में हैं, जहां भूजल का अत्याधिक दोहन किया जा रहा है. हालांकि अभी भी प्रदेश के 226 ब्लॉक में भूजल का स्तर ठीक है.

क्या कहती है केंद्रीय भूमिजल आयोग की रिपोर्ट

केंद्रीय भूमिजल आयोग के अनुसार मध्यप्रदेश में भूजल का 90 प्रतिशत पुनर्भरण वर्षा के जल से होता है. यदि वर्ष 2023 की बात करें तो मानसून के बाद जितना भूजल बढ़ा, उसमें से 58.75 प्रतिशत भूजल का दोहन कर लिया गया. इसमें 90 प्रतिशत भूजल का उपयोग कृषि, 9 प्रतिशत का घरेलू और एक प्रतिशत भूजल का उपयोग उद्योगों के लिए किया गया. इधर, मध्यप्रदेश के लिए राहत की बात है कि 71 प्रतिशत भू-भाग में पर्याप्त भूजल स्तर है. जबकि 19 प्रतिशत सेमी क्रिटिकल और 8 प्रतिशत क्षेत्र में अत्याधिक दोहन हो रहा है.

इंदौर में 10 वर्ष में 10 मीटर गिरा भूजल स्तर

इंदौर में भूजल का स्तर 2012 में 150 मीटर था, जो 2023 में 160 मीटर से अधिक हो गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भूजल दोहन इसी गति से जारी रहा तो 2030 तक भूजल स्तर 200 मीटर से अधिक गहरा हो सकता है. भूजल स्तर में गिरावट के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

इंदौर बनेगा देश का दूसरा बेंगलुरु

मध्य प्रदेश भारत का सबसे तेजी से डेवलप होता शहर है. लिहाजा इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स की वजह से यहां की आबादी भी काफी तेजी से ग्रो कर रही है. ऐसे में कहा जा रहा है कि इंडिया का यह बेंगलुरु के बाद दूसरा ऐसा शहर बनेगा जिसका अंडर ग्राउंड वॉटर बहुत तेजी से खत्म होगा. यही नहीं शहर के सेहरा में तब्दील होने का भी खतरा मंडरा सकता है क्योंकि जिस तेजी से ग्राउंड वॉटर ड्राय हो रहा है यह खतरे की घंटी है. यहां अभी ही पानी का स्तर 560 फीट से ज्यादा नीचे जा चुका है. लिहाजा ठोस काम ना हुआ तो शहर के लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है.

मध्यप्रदेश में ये है भूजल स्तर की स्थिति
  • सुरक्षित- 70 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
  • सेमी क्रिटिकल – 70 से 90 प्रतिशत के बीच भूजल का दोहन
  • गंभीर – 90 प्रतिशत से अधिक और 100 प्रतिशत से कम भूमि जल का दोहन
  • अतिदोहित – 100 प्रतिशत से अधिक भूमि जल का दोहन
भूजल स्तर को लेकर भारी पड़ रही लापरवाही

विशेषज्ञ बताते हैं कि गिरते जल स्तर के कई कारण हैं. लेकिन प्रमुख कारण बोरिंग है. पूरे प्रदेश में बीते 15 सालों में बड़ी मात्रा में बोर कराए गए लेकिन इनके लिए प्रशासनिक अनुमति ही नहीं ली जाती. यदि नियमों की बात की जाए तो बिना अनुमति के बोर नहीं किया जा सकता. लेकिन अधिकारियों की सुस्त कार्रवाई के कारण प्रदेश में लगातार बोर की संख्या बढ़ रही है. यह भूमिगत जल स्तर के लिए घातक साबित हो रहे हैं. वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर भी शासन-प्रशासन द्वारा कई पहल की गई हैं. इसके बाद भी अमल नहीं किया गया. जल विशेषज्ञ संतोष वर्मा बताते हैं कि प्रदेश में 60 फीसदी सरकारी इमारतों में ही वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं की गई है और यह निगमों की अनदेखी है.

मध्यप्रदेश में पर्यावरण से खिलवाड़ और गिरता भूजल स्तर

पर्यावरणविद् डॉ.सुभाष सी पांडे बताते हैं कि बीते सालों की अपेक्षा पर्यावरण के साथ खिलवाड़ ज्यादा किया जा रहा है. कैंचमेंट एरिया और ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में अवैध रूप से निर्माण किए जा रहे हैं. यह स्थिति पूरे प्रदेश में है. इस कारण नदियों और तालाबों का जल स्तर भी लगातार कम होता जा रहा है. भूमिगत जल का भंडारण जल स्त्रोतों पर भी निर्भर करता है. दूसरा कारण यह है कि 90 के दशक से सींमेटीकरण में तेजी आई. वहीं वनों की कटाई भी की जा रही है. ये दोनों ही गिरते भूजल स्तर के बड़े कारण हैं.

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