मध्यप्रदेश की नवनियुक्त मोहन सरकार को प्रदेश की कमान संभालते ही भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे निपटने के लिए सूबे की मोहन सरकार अपना पहला कर्ज लेने जा रही है। सरकार 2000 करोड़ रुपये का कर्ज लेगी। 27 दिसंबर को सरकार के खाते में यह राशि आएगी। यह कर्ज सरकार ने 16 साल के लिए लिया है। जिसे वर्ष 2039 तक चुकाना होगा। वित्त विभाग ने इसकी अधिसूचना जारी की है। सरकार आरबीआई के ई कुबेर सिस्टम के जरिए यह कर्ज लेगी।
बता दें, सरकार का गठन हुए अभी सिर्फ 10 दिन ही हुए हैं। इतने कम अंतराल में ही सरकार को अपना पहला कर्ज लेना पड़ गया है। इधर वित्तीय बजट खत्म होने में अभी तीन महीने शेष हैं। पहले अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार पहले विधानसभा सत्र में अनुपूरक बजट ला सकती है, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।
एक साल में इतना लिया
मध्यप्रदेश की पूर्व शिवराज सरकार पहले ही इस वित्तीय वर्ष में 23 हजार का करोड़ का कर्ज ले चुकी है। इस नए कर्ज को मिलाकर यह राशि 25 हजार करोड़ पर पहुंच जाएगी। प्रदेश पर अब कुल कर्जा 3 लाख 50 हजार करोड़ का होने पर है। ऐसे में मप्र पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि कर्ज लेकर विकास करने की सरकार की यह मंशा विपक्ष के भी निशाने पर है। जहां एक ओर कांग्रेस, सरकार को फिजूलखर्ची कम करने की सलाह दे रही है। वहीं बीजेपी कर्ज को विकास के लिए ज़रूरी बताती है।
इन योजनाओं पर खर्चा
मप्र में पहले ही लाड़ली बहना जैसी मुफ्त की योजनाओं के लिए सरकार को हर महीने कम से कम 4 हज़ार करोड़ का कर्ज लेना पड़ रहा है। इस योजना के तहत हर महीने प्रदेश की एक करोड़ से अधिक लाडली बहनों को 1250 रुपये दिए जाते हैं। सरकारी की यह चुनावी योजना अब सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। इसके अलावा कई चुनावी योजनाएं और हैं जिनके लिए सरकार को पैसे की जरूरत है।