मोदी काल में 255 सांसद निलंबित, इनमें एक भी बीजेपी के नहीं; मनमोहन के 10 साल में 28 कांग्रेसी हुए थे सस्पेंड

17वीं लोकसभा का आखिरी शीतकालीन सत्र शुरू होते ही सुर्खियों में है. पहले, लोकसभा के सभी सुरक्षा घेरा को तोड़ 2 घुसपैठिए संसद के भीतर चले गए. यह संसद के इतिहास की सबसे बड़ी सुरक्षा चूक थी. 

इसी सुरक्षा चूक पर बहस की मांग कर रहे विपक्ष के 141 सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा से सस्पेंड कर दिया गया है. इन सांसदों पर संसद की कार्यवाही में व्यवधान का आरोप लगाया गया है. 

निलंबित किए गए 11 सांसदों के मामले को प्रिविलेज कमेटी के पास भेजा गया है. प्रिविलेज कमेटी की रिपोर्ट के बाद इन सांसदों पर आगे की कार्रवाई होगी. 

हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब किसी विषय पर बहस की मांग कर रहे सांसदों पर कार्रवाई की गई है. मोदी शासन के दौरान 255 सांसदों पर अब तक निलंबन की कार्रवाई हो चुकी है.

यह मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान हुई निलंबन कार्रवाई से करीब 400 फीसद से ज्यादा है. मनमोहन कार्यकाल के दौरान करीब 59 सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई हुई थी. 

निलंबन की कार्रवाई क्यों होती है?
संसद को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं. संसद में अनुशासन बनाए रखने के लिए पीठासीन अधिकारी को निलंबन की कार्रवाई का भी अधिकार दिया गया है. लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति को निलंबन का अधिकार है. 

हालांकि, बहुत ही कम ऐसे मौके आए, जब सांसदों के निलंबन के बाद सदन की कार्यवाही व्यवस्थित तरीके से चली हो. 

लोकसभा स्पीकर के पास नियम 373, नियम 374 और नियम 374-ए के तहत कार्रवाई का अधिकार है. राज्यसभा सभापति नियम 255 और नियम 256 के तहत कार्रवाई कर सकते हैं. 

जिन सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई होती है, वे सांसद संसद की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकते हैं. निलंबित सांसद किसी कमेटी की मीटिंग में भी नहीं जा सकते हैं. निलंबन वापस लेने का अधिकार स्पीकर और सभापति को ही है. 

मोदी कार्यकाल में निलंबन का रिकॉर्ड
मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल के दौरान 59 सांसद सस्पेंड किए गए थे. इनमें लोकसभा के 52 और राज्यसभा के 7 सांसद थे. मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल यानी की 2004 से 2009 तक सिर्फ 5 सांसद निलंबित किए गए थे.

कांग्रेस शासन में राजीव गांधी की सरकार में जरूर सबसे बड़ी निलंबन की कार्रवाई हुई थी. राजीव सरकार के दौरान 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. इंदिरा सरकार में 3 सांसदों को सदन से निलंबित किया गया था. 

मोदी कार्यकाल में निलंबन की सबसे ज्यादा कार्रवाई हुई है. लोकसभा और राज्यसभा के आंकड़ों को देखा जाए तो मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक 206 सांसदों को निलंबित किया गया है.

2015 में पहली बड़ी कार्रवाई में तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस के 25 सांसदों को निलंबित कर दिया था. 2019 में विपक्ष के 49 सांसद निलंबित किए गए थे.

कृषि बिल 2020 पर वोटिंग के दौरान राज्यसभा के सांसदों को निलंबित किया गया था. 2022 में महंगाई पर बहस कर रहे विपक्ष के 23 राज्यसभा सांसदों को सदन से निलंबित कर दिया गया था.

इसके बाद अब बड़ी कार्रवाई हुई है. मोदी सरकार के दौरान सबसे ज्यादा निलंबन की कार्रवाई कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, आप के संजय सिंह और तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन पर हुई है. 

मोदी सरकार में विपक्षी सांसदों पर चला डंडा
मनमोहन सरकार के दौरान कांग्रेस के सांसदों को सबसे ज्यादा निलंबित किया गया था. संसद के आंकड़ों के मुताबिक मनमोहन सरकार के दौरान कांग्रेस के 28 सांसद निलंबित किए गए थे. मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे समाजवादी पार्टी के भी 4 सांसद 2010 में निलंबित किए गए थे.

तेलंगाना राज्य विधेयक के दौरान संसद से कांग्रेस के 11 सांसद निलंबित किए गए थे. इन सांसदों ने विधेयक का जमकर विरोध किया था. इतना ही नहीं, हंगामा करने के लिए 2012 में भी कांग्रेस के 8 सांसद लोकसभा से निलंबित किए गए थे. 

मनमोहन सरकार के दौरान सिर्फ 2 बीजेपी के सांसद निलंबित किए गए. इसके उलट मोदी सरकार के कार्यकाल में बीजेपी के एक भी सांसद सदन से निलंबित नहीं किए गए हैं. सदन से जिन 255 सांसदों को निलंबित किया गया है, उनमें अधिकांश कांग्रेस के ही सांसद हैं.

कांग्रेस के बाद डीएमके, आप और टीएमसी के सांसद सबसे ज्यादा बार निलंबित हुए हैं.

बजट सत्र 2023 के दौरान बीजेपी सांसदों के हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही 2 दिन तक ठप्प रही, लेकिन इस मामले में स्पीकर ने किसी पर भी कार्रवाई नहीं की. यह पहला मौका था, जब विपक्ष की बजाय सत्ता पक्ष की वजह से संसद की कार्यवाही नहीं चल पाई थी. 

चुनावी साल में निलंबन की कार्रवाई में बढ़ोतरी
निलंबन को लेकर एक और चौंकाने वाला आंकड़ा है. चुनावी साल में निलंबन की संख्या जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है. 2013-14  के दौरान लोकसभा और राज्यसभा से 37 सांसद निलंबित किए गए थे.

2018-19 में यह आंकड़ा बढ़कर 49 पर पहुंच गया. 2018-19 के मुकाबले 2023 में निलंबन के आंकड़ों में करीब 300 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. 2023 में अब तक 155 लोग निलंबित किए गए हैं. 

2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. सबकुछ ठीक रहा तो इस सत्र के बाद संसद का एक और सत्र बुलाया जा सकता है.

सांसदों पर निलंबन की कार्रवाई क्यों, 2 वजहें…

1. संसद का कामकाज ठीक करना-  संसद टीवी से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं- सरकार के पास संसद की प्रोडक्टिविटी ठीक करने की चुनौती है. इस साल संसद में हंगामे की वजह से काफी कम काम हुआ है. चुनावी साल में संसद न चला पाना सरकार की अक्षमता का परिचायक बन सकता है.

वे कहते हैं- सरकार इसलिए जाते-जाते जमकर बैटिंग करना चाहती है. सांसदों का हंगामा नुकसानदायक न हो, इसलिए कड़े फैसले लिए गए हैं. सुरक्षा का जो मुद्दा बन गया था, उससे सरकार बैकफुट पर थी. इसका कामकाज पर असर होता. निलंबन से सरकार को आखिरी वक्त में प्रोडक्टिविटी सुधारने का मौका दिया है.

डेटा एजेंसी पीआरएस के मुताबिक 2023 में अब तक संसद की प्रोडक्टिविटी पिछले 3 सालों में सबसे कम रही है. 2021 में लोकसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 68.3 थी. वहीं राज्यसभा में यह आंकड़ा 54 प्रतिशत के आसपास था. 

2022 में लोकसभा की  औसत प्रोडक्टिविटी 86 और राज्यसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 75 के करीब रही. 2023 में यह आंकड़ा अब तक का सबसे न्यूनतम स्तर पर है. 2023 में लोकसभा की अब तक की प्रोडक्टिविटी औसत 47 और राज्यसभा की औसत प्रोडक्टिविटी 52 है.

2. पीठासीन अधिकारी पर सवाल- 141 सांसदों के निलंबन के बाद स्पीकर और सभापति का रोल सवालों के घेरे में आ गया है. सपा सांसद जावेद अली खान ने संसद को खाफ पंचायत की उपाधि दी है. 

खान के मुताबिक देश का सबसे बड़ा पंचायत अब खाफ पंचायत में बदल गया है. जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने स्पीकर पर सीधा हमला किया है. 

पत्रकारों से बातचीत करते हुए कौशलेंद्र कुमार ने कहा- लोकसभा अध्यक्ष, सरकार और भाजपा का प्रयास है कि विपक्ष के ज्यादा से ज्यादा लोगों को निलंबित करके विधेयक पारित कर लें.

संसद के बाहर तृणमूल के सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के उपसभापति जगदीप धनखड़ का नकल भी उतारा. धनखड़ इससे नाराज दिखाए दिए. हालांकि, संसद के इतिहास में यह पहला मौका नहीं है, जब निलंबन को लेकर स्पीकर विपक्ष के रडार में हैं.

चौथी लोकसभा के दौरा समाजवादी नेता और तत्कालीन मुंगेर से सांसद मधु लिमये ने स्पीकर की भूमिका पर पहली बार सवाल उठाया था. लिमये ने कहा था कि जब तक स्पीकर अपने भविष्य की राजनीति के बारे में सोचेंगे, तब तक वे विपक्ष को दबाएंगे. 

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