मध्य प्रदेश में पिछले 12 विधानसभा चुनावों में जिस दल ने जीती खरगोन सीट, उसी की बनी सरकार

आजादी के बाद मध्य प्रदेश में अब तक कुल 15 विधानसभा चुनाव हुए हैं और इनमें से 12 बार राज्य में उस दल की सरकार बनी है, जिसने खरगोन विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया. वर्ष 1972 से लेकर अब तक हुए सभी 12 चुनावों में यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. देखना दिलचस्प होगा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में भी यह क्रम जारी रहता है या नहीं.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के तहत 17 नवंबर को मतदान होगा, जबकि वोटों की गिनती तीन दिसंबर को की जाएगी. खरगोन के अलावा राज्य की तीन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पिछले नौ विधानसभा चुनावों में क्षेत्र की जनता ने जिसे चुना, उसी दल की राज्य में सरकार बनी. इनमें बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट, मंडला जिले की निवास सीट और बड़वानी जिले की सेंधवा सीट शामिल है.

वर्ष 1977 से लेकर अब तक हुए सभी चुनावों में खरगोन के साथ ही नेपानगर, निवास और सेंधवा सीट के परिणाम भी उसी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में गए, जिसने सत्ता हासिल की. खरगोन विधानसभा चुनाव के अब तक के इतिहास में सिर्फ एक ही अवसर ऐसा आया, जब वहां की जनता ने जिस दल के उम्मीदवार को जिताया, राज्य में उसकी सरकार नहीं बनी. वर्ष 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही यह सीट अस्तित्व में आ गई थी. उन दिनों मध्य प्रदेश, मध्य भारत का हिस्सा था. राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप 1956 में मध्य प्रदेश एक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया.

पहले और दूसरे विधानसभा चुनाव में खरगोन से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और राज्य में सरकार भी कांग्रेस की ही बनी. उन दिनों रवि शंकर शुक्ल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. साल 1962 का विधानसभा चुनाव ही ऐसा था, जब निमाड़ अंचल के खरगोन की जनता ने राज्य के मतदाताओं के सियासी मूड के अनुरूप मतदान नहीं किया.

इस चुनाव में खरगोन की जनता ने जन संघ के उम्मीदवार भालचंद्र बगडारे को चुनकर विधानसभा भेजा, लेकिन राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी और भगवंत राव मंडलोई मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए. इससे पहले भी वह 31 दिनों तक इस पद पर रह चुके थे. मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद मंडलोई को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया था.

साल 1967 और 1972 के विधानसभा चुनावों में कपास की खेती के लिए मशहूर खरगोन जिले की इस विधानसभा सीट (खरगोन) पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया और राज्य में कांग्रेस की ही सरकार बनी. इसके बाद हुए सभी विधानसभा चुनावों में (2018 तक) भी यह सिलसिला बरकरार रहा कि जिस पार्टी के उम्मीदवार को खरगोन से जीत मिली, उसी पार्टी की सरकार राज्य में सत्ता में आई.

आपातकाल के बाद साल 1977 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई. राज्य में जनता पार्टी की सरकार बनी और कैलाश चंद्र जोशी ने प्रदेश की पहली गैर-कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री पद संभाला. इस चुनाव में भी खरगोन से जनता पार्टी के उम्मीदवार नवनीत महाजन ने कांग्रेस के चंद्रकांत खोड़े को 5,822 मतों से हराया.

साल 1980 में विधानसभा भंग होने के बाद हुए चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी की और अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने. खरगोन में भी कांग्रेस को जीत मिली और उसके उम्मीदवार चंद्रकांत खोड़े विधानसभा पहुंचे.

साल 1985 के चुनाव में भी खरगोन की जनता ने कांग्रेस को चुना और राज्य में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी. वहीं, 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई और सुंदर लाल पटवा के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनी. इस चुनाव में एक बार फिर खरगोन की जनता सत्ताधारी पार्टी के साथ रही. भाजपा के राय सिंह राठौड़ ने कांग्रेस के चंद्रकांत खोड़े को तकरीबन 25,000 मतों से पराजित किया.

राज्य में 1993 में हुए चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और दिग्विजय सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने. उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 1998 का विधानसभा चुनाव भी जीता. इन दोनों ही चुनावों में खरगोन की जनता ने कांग्रेस का साथ दिया. दोनों ही बार कांग्रेस के पारसराम बाबूलाल डांडीर विधायक चुने गए.

साल 2003 में भाजपा ने सत्ता में वापसी की. उमा भारती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. साल 2008 और 2013 के चुनावों में भी भाजपा ने परचम लहराया. इन चुनावों में खरगोन की जनता ने भाजपा के ही उम्मीदवारों को जिताया. साल 2003 में यहां से भाजपा के बाबूलाल महाजन और 2008 तथा 2013 में बालकृष्ण पाटीदार को जीत मिली.

मध्य प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनाव (2018) में कांग्रेस ने भाजपा के 15 वर्षों के शासन का अंत किया और फिर से राज्य की सत्ता में लौटी. खरगोन की जनता ने मानो इस बार भी प्रदेश का राजनीतिक मिजाज भांप लिया था. उसने भाजपा उम्मीदवार को नकार दिया. कांग्रेस के रवि जोशी ने यहां से लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले बालकृष्ण पाटीदार को पटखनी दी.

इस चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कमल नाथ के हाथों में आया. हालांकि, उनकी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद कमल नाथ की सरकार गिर गई और भाजपा फिर सत्ता में लौटी. शिवराज सिंह चौहान चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.

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