बस्तर का कांगेर वैली नेशनल पार्क कब होगा यूनेस्को की सूची में शामिल? 40 वर्षों से जारी है मांग

बस्तर में कांगेर वैली नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए एक बार फिर से मांग उठी है. यूनेस्को की सूची में कांगेर वैली नेशनल पार्क को शामिल करने की मांग पिछले 40 वर्षों से उठ रही है. पाषाणयुगीन चट्टानें, गुफाएं और जैव विविधता को सहेजे कांगेर घाटी पर शोध भी हुआ है. पार्क को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिलने के बावजूद विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की मांग अब तक पूरी नहीं हुई है.

कांगेर वैली नेशनल पार्क कब होगा इस सूची में?

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान लगभग 200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. एक तरफ कांगेर नदी तो दूसरी तरफ शबरी नदी राष्ट्रीय उद्यान की सीमा निर्धारित करती है. साल वनों का द्वीप के नाम से प्रसिद्ध कांगेर घाटी का इलाका जैव विविधता, पाषाणयुगीन चट्टानें, कोटमसर, दंडक, कैलाश, आरण्यक, शीत जोंधरी गुफाओं के लिए जाना जाता है. गुप्तेश्वर क्षेत्र की शबरी नदी में दूर तक फैली चट्टानों को बस्तर की सबसे पुरातन माना जाता है. बावजूद इसके नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा नहीं मिल पाया है. ऐसे में एक बार फिर से कांगेर घाटी को यूनेस्को की सूची में शामिल करने के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू करने की कवायद की जा रही है.

करोड़ों साल पुरानी चट्टानें आज भी हैं सुरक्षित

रविवार को रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 105वें एपिसोड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से जुड़े शांति निकेतन और कर्नाटक के होयसल मंदिरों को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है. सरकार का प्रयास है कि भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में मान्यता मिले. बस्तर वासियों में छत्तीसगढ़ के सांसदों और प्रदेश सरकार की उपेक्षा से नाराजगी है. उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ का गौरव और विशेषताओं से परिपूर्ण कांकेर घाटी को यूनेस्को की सूची में शामिल करने का प्रयास नहीं किया जा रहा है. कांगेर घाटी में करोड़ों साल पुरानी चट्टानों पर शोध कर रहे प्रोफेसर झा ने बताया कि भूगर्भीय गुफाओं में स्टेलेक्टलाइट और स्टेलेगमाइट की सरचनाओं का अध्ययन बीते 70 वर्षों से किया जा रहा है. चट्टानें करोड़ों साल पुरानी हैं. जैव विविधता वाले पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए.

साल 2003 में यूनेस्को से हुआ था पत्र-व्यवहार

डॉक्टर सतीश जैन बताते हैं कि कांगेर घाटी परिक्षेत्र की विशेषताओं के चलते राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र को विश्व धरोहर की श्रेणी में रखने की मांग पिछले 40 वर्षों से जारी है. साल 1978 में इस दिशा में प्रयास किया गया था. घाटी परिक्षेत्र की महत्ता को समझते हुए कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के तत्कालीन संचालक अमरनाथ प्रसाद ने भी साल 2003 में यूनेस्को से पत्र व्यवहार किया था. लेकिन बीते 20 वर्षों में विश्व धरोहर बनाने का प्रयास गंभीरता से नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि कांगेर घाटी में जैव विविधता संरक्षण के नाम पर करोड़ों का विकास कार्य हुआ. डॉक्टर सतीश जैन ने कहा कि एक बार फिर यूनेस्को की सूची में शामिल करने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जाने की बात कांगेर घाटी नेशनल पार्क के संचालक की तरफ से कही जा रही है.

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