अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर पूरे देश की नजर

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अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर पूरे देश की नजर है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले की 6 अगस्त से लगातार सुनवाई कर रही है। इस मामले में अदालती कार्यवाही से इतर पहलुओं को जानने के लिए पक्षकारों और वकीलों से बात की। कोर्ट रूम से बाहर उनके साथ रहकर केस का दूसरा अनछुआ पहलू भी समझा। यह देखा कि वे पिछले 6 अगस्त से केवल अदालती जिंदगी ही जी रहे हैं। हिंदू पक्ष के वकील बाबरनामा-आईन, अकबरी-कुरान पढ़ रहे हैं तो मुस्लिम पक्ष के वकील वाल्मीकि रामायण और स्कंध पुराण।


हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन सुबह 4 बजे तक केस की तैयारी करते हैं तो मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन रात-रातभर नोट‌्स पर काम करते हैं। धवन कई बार रात 2 बजे से केस नोट्स पढ़ना और ठीक करना शुरू करते हैं। सुबह 8 बजे तक सीट से नहीं उठते। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं। शाम को अगले दिन की तैयारी शुरू करते हैं। ये केवल वरिष्ठ वकीलों की दिनचर्या नहीं है, बल्कि इनके 50 सहयोगी वकीलों का खाना-पीना भी दफ्तर में ही हो रहा है। दोनों पक्षों के वकील कोर्ट और ऑफिस के अलावा किसी कार्यक्रम में या कहीं घूमने आखिरी बार 2 अगस्त से पहले गए थे। 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रोज सुनवाई की तारीख 6 अगस्त मुकर्रर की। इसके बाद से कोर्ट और ऑफिस में केस की तैयारी ही इनकी जिंदगी है। डेढ़ महीने में दोनों पक्षों के वकील तकरीबन 10 लाख रुपए की किताबें खरीद चुके हैं। करीब 1000 किताबों के पन्ने पलट रहे हैं।
अयोध्या मामले में जजमेंट ही कई किताबों के बराबर
अयोध्या मामला संवेदनशील होने से इस मामले से जुड़े तमाम वकील बातचीत नहीं कर रहे हैं। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने बातचीत में साफ कहा, ‘केस के फैसले तक नो इंटरव्यू’। हालांकि, हमने अदालती कार्यवाही से अलग पैरवी की तैयारियों पर चर्चा की तो उन्होंने बताया कि ये उनकी टीम बेहतर समझा सकती है। किताबों के अध्ययन पर धवन ने कहा कि साधारण केस में ही 200 किताबें पढ़ते हैं, फिर इस मामले में तो जजमेंट ही कई किताबों के बराबर है। यही हाल हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन, के. पाराशरन और हरिशंकर जैन का है। जैन बताते हैं कि मुस्लिम धर्म को समझने के लिए सबसे ज्यादा किताबें पढ़ना पढ़ीं।


रात 4 बजे टीम घर जाती है, फिर धवन नोट्स पर काम शुरू करते हैं
हम दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स काॅलोनी स्थित राजीव धवन के घर पहुंचे तो जाना कि कोर्ट से लौटने के बाद शाम 6.30 बजे से 7 सहयोगियों की टीम काम कर रही थी और राजीव धवन उन्हें निर्देश दे रहे थे। धवन से पूछा कि केस की तैयारी कब तक करते हैं तो उनका कहना था, ‘‘ये तो टीम ही ठीक से बता सकती है। (हंसते हुए कहते हैं) हो सकता है कि आपको बताए कि बहुत ही क्रूर बॉस है हमारा। जो न तो खुद सोता है और न हमें सोना देता है। रोज सुनवाई के चलते इन्हें भी काफी मेहनत करनी पड़ रही है। आज ही सुबह 4 बजे तक केस की तैयारी कर रहे थे।’’


धवन के सहयोगी बताते हैं कि हम तो सुबह 4 बजे घर चले गए, लेकिन इसके बाद इन नोट्स को पढ़ना और करेक्शन लगाने का काम सुबह 8 बजे तक धवन साहब खुद करते रहे। करेक्शन के बाद प्रिंट के लिए पहुंचाया और कोर्ट के लिए तैयार हो गए। धवन के सहयोगियों ने बताया कि ये एक दिन का रुटीन नहीं है। रोज सुनवाई के चलते लगभग यही दिनचर्या है।


धवन तीन रात तक लगातार जागते रहे; जरूरी काम था, लेकिन बाहर नहीं गए
धवन से पूछा कि तैयारी में क्या करते हैं तो उन्होंने तीन मोटी किताबें बताईं और कहा कि यह देखिए। यह है जजमेंट। तकरीबन 10 हजार पेज के जजमेंट को पढ़ना भी तैयारी का हिस्सा रहता है। धवन के सहयोगी बताते हैं कि पिछले दिनों बहस का जवाब बनाना था तो धवन तीन दिन तक लगातार जागते रहे। शाम को 6 बजे कोर्ट से लौटने के बाद हमें निर्देशित करने के साथ हमारा काम शुरू हुआ। हमने रात 2 बजे तक नोट्स तैयार किए और धवन सर की टेबल पर रख दिए। इसके बाद सर ने उन नोट्स के एक-एक शब्द को पढ़ना शुरू किया। सुबह 9 बजे तक नोट्स फाइनल हुए और सुबह 10.30 पर कोर्ट पहुंच गए। हमें तो दिन में बहस नहीं करनी थी, लेकिन धवन साहब ने शाम 5.15 बजे तक सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दी। शाम 6 बजे से फिर से हमें नोट्स बनाने के लिए निर्देशित करने लगे। ऐसा लगातार तीन दिन तक चला। एक पारिवारिक काम के सिलसिले में धवन सर का बाहर जाना बहुत जरूरी था, लेकिन वे नहीं जा सके।


हिंदू पक्ष के वकील रोजाना औसतन 2 घंटे की ही नींद ले पाते हैं
हिंदू पक्ष के वकील के. पाराशरन, सीएस वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, पीएन मिश्रा और हरिशंकर जैन हैं। इनके सहयोगी बताते हैं कि अगर 37 दिनों तक लगातार चली सुनवाई की बात की जाए तो हम कुल 74 घंटे यानी दिन में दो घंटे से ज्यादा आराम नहीं कर सके हैं। केवल शनिवार-रविवार को 4-4 घंटे सो पाते हैं। राेज सुनवाई के चलते केस पर रिसर्च और धर्म पर दी गईं दलीलों को क्रॉसचेक करना पड़ता है। वरना सही और गलत का रेफरेंस कैसे मिलेगा? यह केस धर्म से जुड़ा है तो उस धर्म की दलीलों को समझना, पढ़ना और नोट‌्स बनाना जरूरी है। फिर अगले दिन बहस और बहस का जवाब बनाना होता है।


वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन बताते हैं कि रात 2 बजे से पहले कोई भी सहयोगी घर नहीं जाता। सहयोगियों के घर जाने के बाद सुबह 5 बजे से हम फिर तैयारी शुरू कर देते हैं। कई बार तो नोट्स के प्रिंट और उसके सेट इतने होते हैं कि एक घंटे का समय उसी में लग जाता है। सुबह 8 बजे तक चाय पीकर तैयार होते हैं और 9 बजे तक कोर्ट के लिए निकल जाते हैं। सुबह 10.30 से शाम 5.15 तक कोर्ट की सुनवाई के बाद कोर्ट से बाहर होते-होते 6 बजते हैं। ऑफिस पहुंचकर 7 बजे से फिर केस की तैयारी शुरू हो जाती है। तब जाकर रोज सुनवाई की तैयारी हो पा रही है। कई बार तो वैद्यनाथन सुबह के 4 बजे तक केस नोट्स की स्टडी करते रहते हैं।


37 दिन से पूजन भी नहीं कर सके, लेकिन बाबरनामा पढ़ रहे हैं
1987 से इस मामले की पैरवी कर रहे हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन का दफ्तर गाजियाबाद के इंदिरापुरम में है। हम उस ऑफिस में पहुंचे तो वे बाबरनामा पढ़ रहे थे। उनके 5 सहयोगी भी मुस्लिम धर्म की अलग-अलग किताबों के पन्ने पलट रहे थे। उनसे पूछा तो कहने लगे कि मुस्लिम पक्ष की दलीलों का उत्तर देना है, इसलिए तीसरी बार बाबरनामा पढ़ रहा हूं। पहले रोज दो घंटे पूजन करता था, लेकिन दो महीने से पूजन नहीं कर सका। अब रामलला का केस ही पूजन हो गया है।


आखिरी बार 1 अगस्त को परिवार के साथ खाना खाया था
हिंदू पक्ष के एडवोकेट हरिशंकर जैन बताते हैं कि जैसे ही कोर्ट ने 2 अगस्त को रोज सुनवाई का फैसला सुनाया, वैसे ही ऑफिस को वॉर रूम बना लिया गया। परिवार के साथ आखिरी बार दो महीने पहले 1 अगस्त को खाना खाया था। तब से ऑफिस में ही टिफिन मंगा लेते हैं और सहयोगियों के साथ केस की तैयारी करते हुए खाना खा लेते हैं। कोर्ट के लंच टाइम में भी 15 मिनट में फ्रेश होकर फिर केस की तैयारी करने लगते हैं। कार्यक्रम अटेंड करना तो दूर किसी रिश्तेदार या परिचित से मिल भी नहीं सके। वहीं, मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन के सहयोगी बताते हैं कि हमारा खाना-पीना ही नहीं, पार्टी भी धवन साहब के ऑफिस में ही हो रही है। धवन साहब ने तो सुप्रीम कोर्ट में भी कह दिया था कि रोज सुनवाई हो रही है तो सहयोगियों को घर पर पार्टी भी देना पड़ती है।


6 अगस्त से घर नहीं गया
1986 से लखनऊ कोर्ट में इस मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी का वॉर रूम है हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का दिल्ली स्थित बंगला। जब हम पटेल चौक स्थित ओवैसी के बंगले पर पहुंचे तो जिलानी वाल्मीकि रामायण में से केस के लिए तथ्य खोज रहे थे। उन्होंने बताया कि कल हमें (मुस्लिम पक्ष) अपना जवाब देना है, इसलिए तैयारी की जा रही है। वे बताते हैं कि राजीव धवन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। वे किताबें खूब पढ़ते हैं। जिलानी बाते हैं कि जैसे ही इस केस की रोज सुनवाई शुरू हुई, वे दिल्ली में ही डेरा जमाए हैं। घर जाना तो दूर घर वालों की खैरियत लेने का भी समय नहीं मिलता।


राजीव धवन बिना फीस पैरवी करते हैं
जफरयाब जिलानी बताते हैं कि राजीव धवन हमारे केस से 1994 में जुड़े थे। तब से आज तक बिना फीस पैरवी कर रहे हैं। हमने एक बार मुंशी को रुपया दिया तो धवन साहब ने लौटा दिया। इस मामले में राजीव धवन बताते हैं कि उन्हें रुपयों की कोई चाहत नहीं है। वे वेतन पर काम करने जैसा व्यवहार नहीं करते। ये सही है कि एक बार मुस्लिम पक्ष ने पैसा देने का प्रयास किया था तो मैंने साफ इंकार करने के साथ लिखकर भी दिया था कि रुपया वापस दे रहा हूं ताकि रकम सही जगह पहुंच जाए।


वकील का दावा- अरब देशों से भी फीस आती है
हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन बताते हैं कि उन्होंने 1989 में लखनऊ से इस केस की पैरवी शुरू की थी, लेकिन आज तक एक पैसा भी नहीं लिया। वे कहते हैं कि हम तो राम के लिए लड़ रहे हैं तो पैसा कैसे ले सकते हैं? अन्य वकीलों की फीस के बारे में हरिशंकर जैन कहते हैं कि दोनों पक्षों के जो व्यवसायिक वकील हैं, वे तो फीस ले रहे हैं। फीस पक्षकार ही देते हैं। किसी की फीस पाकिस्तान, अरब देशों से आती है तो किसी की हिंदुस्तानियों से।


25 वकीलों ने 2 अगस्त से नया केस नहीं लिया
हिंदू-मुस्लिम पक्षकारों के वरिष्ठ वकील और उनके सहयोगी वकीलों ने अगस्त से कोई भी नया केस नहीं लिया है। वे बताते हैं कि केस लेना तो अलग बात है, हमारे पास क्लाइंट से बात करने का भी समय नहीं है। जो केस पहले से थे, उनमें या तो तारीख ले ली है या मामले किसी अन्य वकील को ट्रांसफर कर दिए हैं।


बाबरनामा-कुरान को तीसरी बार पढ़ रहा हूं

मुस्लिम धर्म पर दलीलें देना हैं तो उनके धर्म का अध्ययन करना जरूरी है। मैं तीसरी बार बाबरनामा पढ़ रहा हूं, क्योंकि बाबरी मस्जिद का मामला बाबर से जुड़ा है। इसके अलावा पिछली 37 सुनवाई में हमने जितने भी मुस्लिम शासकों का जिक्र किया, उनकी धार्मिक कट्‌टरता को समझने के लिए अकबर, जहांगीर, हुमायूं की किताबों का अध्ययन किया।

हरिशंकर जैन, अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट, हिंदू पक्षकार
वाल्मीकि रामायण से लेकर स्कंध पुराण भी पढ़ा

हिंदू ग्रंथों को खूब पढ़ा और अब रोज सुनवाई हो रही है तो भी पढ़ रहे हैं। जब हिंदू पक्षकारों की ओर से दलीलें रामायण और स्कंध पुराण पर दी जाती हैं तो उनका जवाब देने के लिए वही ग्रंथ पढ़ते हैं।

जफरयाब जिलानी, अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट, मुस्लिम पक्षकार

ये भी बाकी केस की तरह

हजारों पेज का जजमेंट और रोज सुनवाई होती है तो 200 किताबें पढ़ना आम बात है। इस केस में किताबों की संख्या तीन से चार गुना हो गई है। हमारी टीम बहुत मेहनत कर रही है। बाकी अन्य केसों की तरह ये भी एक केस है।

राजीव धवन, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट, मुस्लिम पक्षकार

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