नई दिल्ली कहीं न बन जाए अंतरराष्ट्रीय खेमेबंदी का गवाह, शी जिनपिंग और पुतिन ये क्या कर रहे हैं?

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राजधानी दिल्ली में 9 और 10 सितंबर को जी-20 सम्मेलन होने वाला है. इस सम्मेलन में जहां एक तरफ कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होने के लिए भारत आने वाले हैं. तो वहीं दूसरी तरफ चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से जानकारी सामने आई है कि सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत नहीं आ पाएंगे.

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार उनकी जगह प्रधानमंत्री ली कियांग जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. चीन से पहले रूस ने भी इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए भारत आने से मना कर दिया था.

रूस इससे पहले अगस्त में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए थे और पिछले साल बाली में हुए जी-20 सम्मेलन का भी हिस्सा नहीं थे, लेकिन भारत के साथ अच्छे रिश्ते होने के कारण कयास लगाया जा रहे थे कि पुतिन इस बार के जी-20 सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं.  

भारत नहीं आ रहे लेकिन चीन जाने को राजी

रूस ने यूक्रेन युद्ध का हवाला देते हुए भारत में हो रहे सम्मेलन में भाग लेने में असमर्थता जाहिर की है. दावा किया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की तरफ से पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किये जाने के बाद वह अपने विदेश दौरों से परहेज कर रहे हैं.

हालांकि इसी बीच खबर आ रही है कि पुतिन चीन जाने वाले हैं और गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद पुतिन का यह पहला विदेशी दौरा होगा.  

पुतिन के बाद चीन के राष्ट्रपति के भारत आने से मना कर देने पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या चीन और रूस खेमेबंदी कर रहा है. और अगर ऐसा है तो क्या नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय खेमेबंदी का गवाह बन जाएगा. इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर पुतिन और जिनपिंग के सम्मेलन में आने से इनकार करने की क्या वजह है. 

क्यों नहीं शामिल हो रहे शी जिनपिंग, 4 कारण

भारत के साथ सीमा विवाद: भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद भी शी जिनपिंग के भारत ना आने की एक वजह मानी जा रही है. दरअसल एएलएसी पर चीन की हरकतों का भारत की तरफ से करारा जवाब मिलता रहा है.

भारत और चीन के बीच कई राउंड की सैन्य वार्ता भी हो चुकी है, लेकिन बावजूद इसके चीन भारत किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है. इसके चलते ही अब तक इस मसले का कोई पुख्ता हल भी नहीं निकल पा रहा है. 

पुतिन का नहीं शामिल होना: यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से चीन को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इस देश का सहयोगी बताया जा रहा है. ऐसे में अगर पुतिन अनुपस्थित रहेंगे तो चीन का एक अलगाव हो जाएगा. क्योंकि इस जी 20 बाकी सम्मेलन के दौरान पिछले साल 2:18 यानी एक तरफ रूस-चीन और दूसरी तरफ उनके खिलाफ 18 देशों ने एक रिजॉल्यूशन पास किया था.

ऐसे में हो सकता है कि चीन को ये लग रहा होगा कि उनका अलगाव हो जाएगा और यूक्रेन संकट पर 18 देश उनकी आलोचना करेंगे. 

इसके अलावा भारत के साथ लद्दाख क्षेत्र में चीन पर सेना को पीछे ले जाने का दबाव है तो ताइवान में चीन की आक्रामक नीतियों पर अमेरिका खुलकर चेतावनी दे रहा है. ऐसे में माना जा रहा है कि चीन संभावित अंतरराष्ट्रीय स्तर के दबाव को देखते खुद को इस सम्मेलन से दूर रख रहा है. 

चीन और अमेरिका का ट्रेड वार के दौर से गुजरना: इसके अलावा चीन और अमेरिका ट्रेड वार के दौर से गुजर रहे हैं और अमेरिका भारत को अपने महत्वपूर्ण और विश्वसनीय सामरिक साझेदारी वाले देश की लिस्ट में रखता है. इसलिए ऐसा मानना है कि सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग अनुपस्थित रहकर एक तीर से कई शिकार की योजना पर काम कर रहे हैं. 

ग्लोबल साउथ का मुद्दा: हो सकता है कि चीन ये लग रहा हो कि भारत की और से जी-20 समिट में ग्लोबल साउथ का मुद्दा उठाया जाएगा, इसमें चीन का इन्फ्लूएंस नहीं होगा. 

तीसरा गलवान हिंसा और इसके बाद मैप में नाम बदलने का जो विवाद हुआ, उसके बाद चीन के खिलाफ भारत की जनता के मन में आक्रोश है. ऐसे में चीन को ये लग रहा होगा कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ठीक समय नहीं है, भारत पहुंचने का. शी जिनपिंग इस साल सिर्फ दो देश गए थे, मास्को और साउथ अफ्रीका. ऐसे में शी जिनपिंग को लगेगा का काफी लोग उनका विरोध करेंगे, इसलिए ये उचित समय नहीं है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन क्यों नहीं आ रहे भारत 

1. सीमित कर लिया है विदेशी दौरा: जानकारों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद से  रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने विदेशी दौरों को सीमित कर दिया है. 

2. अंतरराष्ट्रीय मंच पर यूक्रेन का मुद्दा: भारत में हो रहे जी-20 सम्मेलन में अगर पुतिन शामिल होते हैं तो उनसे यूक्रेन युद्ध को लेकर सवाल जवाब जरूर किया जाएगा. ऐसे में वह इन चर्चाओं से बचने के लिए भी जी-20 में शामिल नहीं हो रहे हैं. 

3. आईसीसी ने निकाला था पुतिन के खिलाफ वारंट: 17 मार्च 2023 को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय यानी आईसीसी ने रूस के राष्ट्रपति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. ये वॉरंट अवैध रूप से यूक्रेन के बच्चों को रूस लाने के आरोप में जारी किया गया था.

ऐसे में वो 123 देश जो आईसीसी के सदस्य हैं, वो पुतिन के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग करने के लिए बाध्य हैं. हालांकि भारत आईसीसी का सदस्य नहीं है और जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट में सहयोग करने के लिए बाध्य नहीं है. 

क्या नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय खेमेबंदी का गवाह बन जाएगा

भारत इस साल जी20 देशों की मेजबानी कर रहा है. भारत के लिए ये गर्व की बात है, क्योंकि उसे इस तरह के सम्मलेन की मेजबानी करने का मौका मिल रहा है. हालांकि, इस मेजबानी को फीका करने का काम उसके एक दोस्त औऱ दुश्मन ने किया है. दोस्त रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ कर दिया है कि वह जी20 में हिस्सा लेने नहीं आ रहे हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी जी20 सम्मेलन में आने से इनकार कर दिया है. जिनपिंग ने कहा है कि प्रधानमंत्री ली क्यांग जी20 में चीन का प्रतिनिधित्व करेंगे. 

अगर चीन की बात करें, तो वह भारत का हमेशा से धुर विरोधी रहा है. चीन भी भारत और अमेरिका की दोस्ती से परेशान हैं. क्वाड की वजह से चीन दक्षिण चीन सागर में घेरा जा रहा है. ऊपर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अमेरिका की राजनयिक यात्रा की, यहां पर भी चीन को लेकर बात हुई. चीन जी20 की मेजबानी से भी टेंशन था. उसने कई बार मेजबानी में टांग अड़ाने की कोशिश भी की. माना जा रहा है कि चीन इन दिनों रूस को भारत के खिलाफ बरगलाकर अपनी ओऱ कर रहा है औऱ भारत के खिलाफ गुटबाजी कर रहा है

वहीं दूसरी तरफ भारत भी 6 और 7 सितंबर को जकार्ता, इंडोनेशिया की यात्रा करेंगे. यहां उनकी मुलाकात अमेरिका और अन्य आशियान देशों से होगी. ऐसे में अगर रूस चीन की तरफ ज्यादा झुकाव दिखा रहा है तो कहीं ऐसा न हो कि परिस्थितवश भारत अमेरिका की तरफ हो जाए. जबकि भारत ने यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही अमेरिका रूस सहित पूरी दुनिया को संदेश दे दिया था कि वह किसी देश का साथ नहीं देगा, बल्कि भारत वही नीति अपनाएगा जिससे उसके अपने हित जुड़े हों. लेकिन, जी-20 सम्मेलन से पहले जो हालात बन रहे हैं उससे नई दिल्ली कहीं अंतरराष्ट्रीय खेमेबंदी का गवाह न बन जाए.

शी जिनपिंग के जी 20 में शामिल नही होने पर जो बाइडेन निराश

चीन के राष्ट्रपति के सम्मेलन में शामिल होने से मना करने पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने निराशा जताई है. उन्होंने कहा है कि, “मैं उनके जी 20 सम्मेलन में न आने से निराश हूं लेकिन बाद में उनसे मिलूंगा”.

दोनों नेताओं के शामिल नहीं होने से समिट पर असर

जी20 समिट को बनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी प्रमुख मुद्दों का आपसी सहमति से समाधान निकालना है. आसान शब्दों में कहें तो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की सबसे बड़ी वैश्विक संस्था का नाम है जी20. दुनिया की 20 सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां इसकी सदस्य हैं.

इस समूह को बनाया भी दुनिया को आर्थिक संकटों से निकालने के लिये गया था. साल दरअसल 1990 का दशक पूरी दुनिया के लिए आर्थिक लिहाज से चुनौतीपूर्ण रहा था. मैक्सिको के पेसो क्राइसिस से शुरू हुआ संकट लगातार पसरता चला गया और एक के बाद एक कर कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं संकट की चपेट में गिरती चली गईं. 1997 में एशिया ने फाइनेंशियल क्राइसिस का सामना किया, उसके अगले साल 1998 में रूस में फाइनेंशियल क्राइसिस छा गया. इन्हीं संकटों को ध्यान में रखते हुए जी20 की शुरुआत की गई.

भारत ने क्या कहा

वहीं दूसरी तरफ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर एक इंटरव्यू में कहा कि हम जी-20 बैठक में ग्रोथ और दुनिया की दूसरी समस्याओं से निपटने पर विचार करेंगे. इसलिए फिलहाल ये सवाल अहम नहीं है कि इस सम्मेलन में कौन भाग ले रहा है और कौन नहीं.

याद रखिए कि जी-20 के हर देश का प्रतिनिधित्व हो रहा है. उनका प्रतिनिधित्व कौन करेगा, ये उनका फैसला है. ”

एस जयशंकर आगे कहते हैं, ”अलग-अलग देशों की अपनी जरूरतें हो सकती हैं. उनका अपना कार्यक्रम हो सकता है. कूटनीति में उनके इस फैसले का सम्मान होना चाहिए. मुझे इस बात में कोई शक नहीं है कि हर सदस्य देश यहां आएगा और पूरी गंभीरता से इसमें हिस्सा लेगा.”

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