कारगिल युद्ध विजय गाथा के 24 वर्ष, देश के जांबाज सैनिकों के अदम्य साहस को किया याद

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जम्मू: आज 24वां कारगिल विजय दिवस है। 24 साल पहले आज ही के दिन भारतीय सैनिकों ने अपने अदम्य साहस से पाकिस्तान को धूल चटाई थी। इस लड़ाई में देश के विभिन्न हिस्सों से सैनिकों ने कुर्बानी दी। ऐसे ही एक शहीद हैं, आरएस पुरा के गांव कोटली शाह दौला के देवेंद्र सिंह।

शहीद की पत्नी बलजीत ने बताया कि आज भी वो दिन याद आता है तो रुह कांप जाती है, जब पति का पार्थिव शरीर घर पहुंचा था। उनके बिना घर सूना लगता है। उन्होंने तो अपना  बेटा तक नहीं देखा जो उस समय गर्भ में था। बलजीत कहती हैं कि 1999 में 6 जुलाई को कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तान के सैनिकों को खदेड़ते समय पति ने अपना बलिदान दे दिया। अफसोस इस बात का है कि ने बेटे युद्धविर सिंह ने पिता को देखा न उन्होंने अपने बेटे को। अब बेटा 12वीं पास करने कर चुका है और दो साल से विदेश में पढ़ रहा है। संवाद

सीने पर गोलियां खाकर भी दुश्मन को ललकारा
सीने में गोली लगने के बाद भी दुश्मन को ललकारा और डटकर सामना किया। यह वीरगाथा कारगिल में दुश्मन से लोहा लेते शहादत पाने वाले हवलदार मदन लाल की है। 13 अप्रैल 1978 को मदन सेना में भर्ती हुए और उन्हें 18 ग्रेनेडियर यूनिट में भेजा गया। यूनिट गंगानगर में थी, जहां से कारगिल भेजा गया। चार जुलाई को टाइगर हिल की ओर कूच करने का आदेश मिला। पूरी रात रस्सी के सहारे पहाड़ का कठिन रास्ता तय करने के बाद पांच जुलाई सुबह आठ बजे टाइगर हिल पहुंचे। दुश्मनों से लड़ते-लड़ते मदन लाल शहीद हो गए। मरणोप्रांत उन्हें वीर चक्र पदक से सम्मानित किया गया।

देश का गौरव कैप्टन विक्रम बत्तरा
कारगिल युद्ध में बहादुरी का परचम फहराने वाले गांव घरोटा निवासी वीरचक्र विजेता कैप्टन रघुनाथ सिंह कहते हैं कि कारगिल के असली नायक कैप्टन विक्रम बत्तरा को कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने लाख रुपये के वेतन वाली नौकरी को ठोकर मारते हुए भारतीय सेना को चुना। 1999 को महज 18 महीने की नौकरी के बाद ही कैप्टन बत्तरा को कारगिल जाना पड़ा। 22 जून 1999 को द्रास सेक्टर की प्वाइंट 5140 चोटी जिस पर दुश्मन ने कब्जा जमाया हुआ था, कैप्टन बत्तरा ने अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए 10 पाक सैनिकों को मारकर उस चोटी पर तिरंगा फहराया। चोटी फतेह करने की जानकारी कैप्टन बत्तरा ने अपने कमांडिंग अफसर को फोन पर देते हुए कहा कि सर अब मुझे दूसरा टास्क दें, क्योंकि यह दिल मांगे मोर। 

सेना की लाइफ लाइन बन गया था मनाली-लेह मार्ग
1999 में कारगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने में मनाली-लेह नेशनल हाईवे की अहम भूमिका रही। कारगिल युद्ध में यह मार्ग सेना की लाइफ लाइन बन गया था। इसी मार्ग से होकर भारतीय सेना के जवान कारगिल तक पहुंचे। रसद और खाद्य सामग्री भी इसी मार्ग से पहुंचाई गई। युद्ध के दौरान हर रोज भारतीय सेना के जवान इस मार्ग से होकर निकलते थे। सेना की कानवाई जब यहां से निकलती थी तो स्थानीय लोग जवानों का हौंसला बढ़ाने के लिए एकत्रित होते थे। शिक्षाविद सतीश सूद ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान मनाली क्षेत्र के लोग और महिलाएं सुबह करीब 6:00 बजे पलचान कर सेना के जवानों का हौसला बढ़ाते थे। गौरतलब है कि बीआरओ ने 2008 में मनाली-लेह मार्ग को डबललेन बनाने का कार्य शुरू किया था।

सगाई के 12 दिन बाद ही मोर्चे पर पहुंच गए थे कैप्टन जिंटू 
शहीद कैप्टन जिंटू गोगोई के पिता और मानद फ्लाइंग ऑफिसर थोगीराम गोगोई ने कहा, कैप्टन गोगोई को उनकी सगाई के 12 दिन बाद ही अपनी यूनिट में शामिल होने के लिए छुट्टी से वापस बुला लिया गया था। ऑपरेशन विजय के दौरान 29/30 जून, 1999 की मध्यरात्रि को कैप्टन गोगोई को बटालिक सब-सेक्टर के जुबार हिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पास रिज लाइन काला पत्थर से दुश्मन को खदेड़ने का काम सौंपा गया था। उन्होंने दुश्मन की भारी गोलाबारी का सामना करते हुए सैनिकों का नेतृत्व किया और पहली रोशनी में ही शीर्ष पर पहुंच गए, लेकिन तभी एक दुश्मन ने उन्हें घेर लिया, जिन्होंने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने वीरता से लड़ते हुए दुश्मन पर गोलियां चला दीं और दो दुश्मन सैनिकों को मार डाला।

60 दिन के युद्ध में हिमाचल के 52 जवानों ने पाई शहादत, देवभूमि को दिलाया वीरभूमि का गौरव
25 मई से 26 जुलाई 1999 तक हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में 60 दिन में हिमाचल के 52 रणबांकुरों ने शहादत पाई थी। देश की मिट्टी का एक जर्रा भी दुश्मनों को नहीं ले जाने दिया। देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश को वीरभूमि का गौरव दिलाया। कारगिल में कांगड़ा जिले के सबसे अधिक 15 जवान शहीद हुए थे। 

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