मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित होने जा रहे पद्म विभूषण राष्ट्र ऋषि चंडिका दास अमृतराव देशमुख का जिले के पवित्र तीर्थस्थल चित्रकूट से गहरा नाता था। वर्ष 1980 में 60 वर्ष की उम्र में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद नानाजी पहली बार 1989 में चित्रकूट आए और फिर यहीं के होकर रह गए।
उन्होंने पं.दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान (डीआरआई) के तहत संचालित विभिन्न प्रकल्पों की स्थापना, विकास और विस्तार ही उनका एक ध्येय रहा। कृषि, कुटीर उद्योग, ग्रामीण शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर उनका विशेष ध्यान रहा। नानाजी ने चित्रकूट में ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है।
वे इसके पहले कुलाधिपति थे। 1999 में एनडीए सरकार ने उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था। 26 जनवरी 2005 में आत्मनिर्भरता के लिए अभियान की चित्रकूट परियोजना का शुभारंभ किया। 5 वर्ष में कम से कम 500 गांवों को आत्म निर्भर बनाने के संकल्प के साथ नानाजी ने गांव-गांव में ग्राम्य शिल्पियों की एक बड़ी जमीनी टीम तैयार की।
95 वर्ष की उम्र में नानाजी देशमुख ने 27 फरवरी 2011 को चित्रकूट स्थित अपने आवास सियाराम कुटीर में अंतिम सांस ली। वो ऐसी विभूति थे, जिन्होंने वर्ष 1997 में मरणोपरांत अपनी देह मेडिकल के शोध कार्य के लिए वसीयतनामा के माध्यम से दान कर दी थी। उनकी पार्थिव देह आज भी ससम्मान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में सुरक्षित है।