इंदौर: कोरोना की शुरुआत हुई उस वक्त मैं आंध्र प्रदेश के पहले हाई कोर्ट में जज था। सड़क पर हालात देखने निकला तो एक घटना देखकर दिल दहल गया। दवा, भोजन के लिए लंबी लाइन लगी थी और भीषण गर्मी और उमस के बीच लोग परेशान थे। मैं अपनी कार से उतरकर उन लोगों के पास गया। कुछ ही देर बाद एक व्यक्ति गर्मी से तड़पकर नीचे गिरा और वहीं मर गया। वहीं कई अधिकारी अपनी कारों में एसी चला कर बैठे थे और यह दृश्य देख रहे थे मैं उन लोगों को यह भी ना बोल सका कि मैं न्यायमूर्ति हूं। यह बात न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार माहेश्वरी ने अभ्यास मंडल व्याख्यानमाला में श्रोताओं के सामने कही। माहेश्वरी वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में न्यायाधीश हैं।
न्यायिक प्रक्रिया में गतिशीलता कैसे आए इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने अपने जीवन का एक वास्तविक उदाहरण दिया। इस उदाहरण के माध्यम से उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि न्याय प्रक्रिया की गतिशीलता कोर्ट के सिस्टम पर निर्भर करती है लेकिन यह तब अधिक प्रभावकारी होगी जब समाज का हर व्यक्ति अपनी सोच आत्मा और बुद्धि के साथ न्याय संगत व्यवहार करेगा।
उन्होंने कहा कि आज कोर्ट में हजारों मामले मध्यस्थ के कारण सुलझ जाते हैं। आने वाले समय में कई तरह के प्रयोग होंगे और व्यवस्थाएं आएंगी लेकिन हमें हमेशा इस बात का ध्यान रखना है कि न्याय पाने वाला पूरी आस्था और विश्वास के साथ आपकी तरफ देख रहा है और आपको हर स्थिति में उसे न्याय देना है।
आर्बिटेशन, मीडिएशन और काउंसलेशन पर फोकस
माहेश्वरी ने कहा की सभी कोर्ट पर केस का भार बढ़ता ही जा रहा है और आने वाले समय में आर्बिटेशन, मीडिएशन और काउंसलेशन पर फोकस अधिक किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विदेशों में जहां एक साल में जज सौ केस सुनता है वहीं भारत में सुप्रीम कोर्ट का जज एक दिन में ही 80 केस तक सुनता है। उन्होंने कहा भविष्य में केसों की पेंडेंसी कम करने में तकनीक भी बड़ा रोल अदा करेगी।