इंदौर: मध्यप्रदेश में 92 हजार वकील न्यायालय से दूर हैं। स्टेट बार काउंसिल का यह फैसला सीजेआई के उस निर्देश के बाद लिया गया है जिसमें कहा है कि वकीलों को तीन महीने के भीतर पुराने केसों को निपटाना है। इस निर्देश के तहत जजों के पास हर दिन 25 चयनित केस आते हैं और केसों को तीन महीने के भीतर निपटना है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि पीडि़तों को न्याय जल्दी मिले और उन्हें भटकना न पड़े। इस निर्देश के बाद स्टेट बार काउंसिल ने वकीलों को काम नहीं करने के लिए कहा है। शुक्रवार को प्रेस क्लब में स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष प्रेम सिंह भदौरिया ने कहा कि इंसाफ को समय सीमा में नहीं बांधना चाहिए। बहुत से केस ऐसे होते हैं जिनमें सबूत जुटाने, पैरवी करने और अपनी बात रखने में समय लगता है। यदि वकील जल्दबाजी करेगा तो हो सकता है कि वह सही जानकारियां न जुटा पाए और पीडि़त के साथ अन्याय हो जाए।
26 को बनेगी अगली रणनीति
भदौरिया ने कहा कि शनिवार तक वकील काम नहीं करेंगे और इसके बाद रविवार को हम तय करेंगे कि आगे क्या करना है। उन्होंने बताया कि हमने काम न करने के विषय में कई बार पत्राचार किया लेकिन जब हमारी बात नहीं सुनी गई तो हमें इसके लिए मजबूर होना पड़ा।
वाहवाही बटोरने के लिए हो रहे ऐसे निर्णय
तीन महीने में केस निपटाने के निर्देश पर भदौरिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने वाहवाही बटोरने के लिए इस तरह के फैसले होते हैं। किसी भी व्यवस्था को बदलने से पहले उसके अच्छे और बुरे दोनों पहलू देखे जाने चाहिए। हालांकि, भदौरिया ने यह भी माना कि न्यायालयों में दस से बीस साल तक के केस भी पेंडिंग पड़े हैं और इन्हें जल्दी निपटना चाहिए लेकिन उसके लिए सही व्यवस्था बनना चाहिए।