संघ भाजपा का ऑपरेशन बंगाल प्रेजिडेंसी

नई दिल्ली :भारतीय जनता पार्टी 2023 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए संगठन को चाक चौबंद करने में जुट गई है| 16 और 17 जनवरी को दिल्ली में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का यही एजेंडा था| 2023 में नौ विधानसभाओं के चुनावों के अलावा जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव भी होने हैं| 2023-24 चुनावी वर्ष होने के कारण भारतीय जनता पार्टी ने 2022 में होने वाले अपने संगठनात्मक चुनाव पहले ही टाल दिए थे, और अब कार्यकारिणी ने बाकायदा प्रस्ताव पास कर के लोकसभा चुनाव तक संगठनात्मक चुनाव टाल दिए हैं|

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जेपी नड्डा को भी लोकसभा चुनाव संपन्न होने तक यानि जून 2024 तक अध्यक्ष बनाए रखने का प्रस्ताव पास हो गया| भाजपा उन 161 लोकसभा सीटों पर ज्यादा जोर लगा रही है, जिनमें या तो वह दूसरे नंबर पर रही थी, या फिर 2014 में जीतने के बावजूद 2019 में हार गई थी| राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हर कमजोर बूथ पर मजबूती से काम करने की जरूरत है। भाजपा ने देशभर में पहले ऐसे 72 हजार बूथ की पहचान की थी, जो संगठनात्मक दृष्टि से कमजोर हैं| अब यह संख्या बढ़ाकर एक लाख 30 हजार कर दी है।

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी तात्कालिक चुनावी रणनीति बना कर काम करती है, तो दूसरी तरफ आरएसएस दूरगामी रणनीति के तहत संगठनात्मक मजबूती के लिए काम करता है| वैसे तो आरएसएस ने अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष 2025 तक देश के हर गाँव में शाखा खोलने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन इसमें भी पूर्वोतर के सभी राज्यों और पुरानी बंगाल प्रेजिडेंसी के बंगाल, उड़ीसा, बिहार और झारखंड को खास टार्गेट किया जा रहा है| खासकर बिहार, बंगाल और उड़ीसा के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर दौडाएं, तो इन तीनों ही राज्यों में भाजपा कभी सत्ता में नहीं आई| बिहार और उड़ीसा में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में जरुर सत्ता में रही, लेकिन इन तीनों ही राज्यों में उसका मुख्यमंत्री कभी नहीं रहा| पिछले एक दशक में आरएसएस ने पूर्वोतर में अपनी जमीन को काफी सींचा है, नतीजतन भाजपा को भी फायदा हुआ| भाजपा असम और त्रिपुरा में खुद सत्ता में है, और बाकी राज्यों में सहयोगी दलों के साथ सरकार में है|

आरएसएस के शताब्दी वर्ष की तैयारियों के सिलसिले में बिहार, उड़ीसा और झारखंड पर फोकस किया जा रहा है| बिहार और झारखंड में तो पहले भी आरएसएस का काफी काम हुआ है, जिस का भाजपा को भी फायदा हुआ और वह इन दोनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों के सामने कांग्रेस से कहीं ज्यादा मजबूत है| इस बीच अगर आने वाले तीन सालों में आरएसएस बिहार और झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में मजबूती पकड़ता है, तो इन चारों ही राज्यों में भाजपा को भी उसका फायदा होगा|

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