भोपाल: मिशन 2023 की तैयारी में जुटी भाजपा इन दिनों चुनावी नैया पार लगाने के लिए सत्ता-संगठन में नए सिरे से कसावट लाने की कवायद कर रही है। कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए पार्टी जहां संगठन स्तर पर अनुभवी लोगों को कुछ अहम जिम्मेदारी दे सकती है, वहीं सरकार का चेहरा भी बदला जा सकता है। गुजरात फार्मूले के आधार पर सत्ता विरोधी रूझान को कम करने के लिए पार्टी नेतृत्व इसका फाइनल रोडमैप तैयार करने में जुटा है।
पार्टी मिशन 2023 को सफल बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की प्रदेश में भूमिका बढ़ा सकती है। पार्टी नेताओं के अनुसार वर्ष 2008 और वर्ष 2013 में तोमर के हाथों में ही राज्य भाजपा की कमान थी। दोनों चुनावों में शिवराज और तोमर की जोड़ी ने शानदार परिणाम दिए थे। तोमर कई राज्यों के चुनाव प्रभारी भी रह चुके हैं इसलिए पार्टी स्तर पर यह प्रयास किया जा रहा है कि उन्हें संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर लाया जाए। बता दें कि मध्य प्रदेश में भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में हार गई थी, 2020 में भाजपा ने सरकार बना जरूर ली लेकिन दिग्गज नेता मानते हैं कि जमीनी स्तर पर पकड़ को और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है।
कुछ नेताओं का बढ़ेगा कद
पार्टी सूत्रों के मुताबिक नगरीय विकास और आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल की भी भूमिका चुनाव में महत्वपूर्ण होगी। शुक्ल विंध्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और शिवराज सरकार में लंबे समय तक मंत्री रहे हैं। 2020 में जब कमल नाथ सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनी, तब शुक्ल को मंत्री नहीं बनाया गया था। बाद में उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा रही लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल सका। अब शुक्ल को मंत्री बनाकर या संगठन में अहम जिम्मेदारी देकर मुख्यधारा में लाया जा सकता है। वहीं संगठन क्षमता में विशेषज्ञता रखने वाले मंत्री भूपेंद्र सिंह और अरविंद भदौरिया को भी मिशन 2020 के लिए अहम जिम्मेदारी दिए जाने पर पार्टी आलाकमान विचार कर रहा है।
मंत्रिमंडल में भी आएंगे नए चेहरे- शिवराज मंत्रिमंडल में भौगोलिक और जातिगत समीकरण में संतुलन बनाने के लिए जल्द ही विस्तार भी किया जा सकता है। फिलहाल मंत्रिमंडल में चार स्थान रिक्त हैं। कांग्रेस छोड़कर आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ सत्ता संतुलन साधने में भाजपा का सामाजिक और भौगोलिक गणित बिगड़ गया है। मंत्रिमंडल में चंबल-ग्वालियर का पलड़ा तो भारी हो गया लेकिन 2018 में भाजपा को जीत दिलाने वाले विंध्य और महाकोशल नेतृत्व की दृष्टि से लगभग साफ हो गया । विंध्य में कुल 30 सीटें हैं,जिनमें से 24 पर भाजपा को विजय मिली थी पर मंत्री मात्र दो मिले।
महाकोशल की 38 सीटों में से पिछले विधानसभा चुनाव में 13 सीट भाजपा को मिली थी,जिसके चलते मात्र एक रामकिशोर कांवरे को मंत्री बनाया गया । संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर से जहां कमल नाथ सरकार में दो-दो मंत्री हुआ करते थे, अब वहां से कोई मंत्री नहीं है।
चंबल और ग्वालियर संभाग को देखें तो वहां से सर्वाधिक 12 मंत्री शिवराज सरकार में हैं। जातीय समीकरण के नजरिए से भी देखा जाए तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सवर्णों के बीच संतुलन नहीं बन पाया।