2006 में कांग्रेस सरकार के शासन के दौरान चीनी राजदूत ने अरुणाचल प्रदेश पर दावा ठोंका

Uncategorized देश

नई दिल्ली । चीन और भारत के बीच 3440 किलोमीटर की विवादित वास्‍तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) है। एलएसी अरुणाचल प्रदेश जो कि भारत के उत्‍तर-पूर्व में आता है। कई नदियों झीलों और बर्फ के पहाड़ों से ढंके इस प्रदेश के दोनों तरफ सेनाओं का जमावड़ा रहता है। पिछले दिनों चीन ने फिर से अरुणाचल के तवांग में गुस्‍ताखी की जब पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी के सैनिक भारतीय सेना के सैनिकों से भिड़ गए। जून 2020 में हुई गलवान घाटी घटना से 45 साल पहले अरुणाचल प्रदेश में ही दोनों देशों के सैनिक आखिरी बार भिड़े थे। चीन को यह हरगिज बर्दाशत नहीं है कि भारत अरुणाचल को अपना हिस्‍सा बताए। इसी वजह से साल 2006 में अरुणाचल प्रदेश को चीनी राज्‍य करार दे डाला था।
नवंबर 2006 में कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान चीन के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति हू जिंताओ भारत के दौरे पर आने वाले थे। उनके इस दौरे से ठीक एक हफ्ते पहले चीनी राजदूत सन युक्सी ने अरुणाचल प्रदेश पर दावा ठोंक दिया। युक्‍सी ने कहा था कि अरुणाचल चीन की सीमा में आता है। हमारी स्थिति यह है कि पूरा अरुणाचल प्रदेश चीनी सीमा में हैं और तवांग इसका एक हिस्‍सा है। हम इस पूरे हिस्‍से पर दावा करते हैं। यही हमारी आधिकारिक स्थिति है। जिंताओ 20 से 23 नवंबर 2006 तक भारत के दौरे पर आने वाले थे। उनके इस दौरे को चीन-भारत के रिश्‍तों में एक महत्‍वपूण पल करार दिया गया। लेकिन राजदूत के बयान ने भारत की टेंशन बढ़ा दी थी। उनसे सवाल किया गया था कि क्‍या चीन चाहता है कि भारत परमाणु हथियारों को छोड़ दे।
इसपर उन्होंने कहा कि दुर्भाग्‍य से दुनिया में पांच परमाणु महाशक्तियां हैं। इस संख्‍या को कम होना चाहिए। हम खुश हो सकते हैं अगर हम अपने परमाणु हथियारों को छोड़ सकें तब और हम उस अंतरराष्‍ट्रीय समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं जो इन हथियारों को त्‍यागने में मदद करेगा। युक्‍सी ने यह भी कहा कि इस बात में कोई सच्‍चाई नहीं है कि चीन भारत को रोकने की कोशिशें कर रहा है। साथ ही यह उसकी विदेश नीति रही है कि क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *