रायपुर : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शनिवार को कहा कि भारत का भविष्य उदार लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को मजबूत करने में है, क्योंकि यह देश के विकास के लिए जरूरी है. राजन ने बहुसंख्यकवाद के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि श्रीलंका इस बात का उदाहरण है कि क्या होता है, जब किसी देश के नेता नौकरी के संकट से ध्यान भटकाने के लिए अल्पसंख्यकों को लक्षित करते हैं. राजन ने कांग्रेस पार्टी के एक प्रकोष्ठ ‘अखिल भारतीय प्रोफेशल कांग्रेस’ के पांचवें सम्मेलन में यहां कहा कि अल्पसंख्यकों को ‘द्वितीय श्रेणी के नागरिक’ में तब्दील करने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा.
यह विकास के पुराने मॉडल पर आधारित है, जो वस्तुओं और पूंजी पर जोर देता है, न कि लोगों और विचारों पर. उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास के मामले में देश का खराब प्रदर्शन उस रास्ते को इंगित करता है, जिस पर हमें पुनर्विचार करने की जरूरत है. आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि हमारा भविष्य हमारे उदार लोकतंत्र और उसके संस्थानों को मजबूत करने में है, न कि उन्हें कमजोर करने में और यह वास्तव में हमारे विकास के लिए आवश्यक है. इस पर विस्तार से बात करते हुए कि बहुसंख्यकवाद से जुड़ी निरंकुशता को क्यों परास्त किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के एक बड़े वर्ग को दूसरी श्रेणी का नागरिक बनाने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा और आंतरिक असंतोष पैदा करेगा.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि वास्तव में लगभग एक दशक के लिए, शायद वैश्विक वित्तीय संकट की शुरुआत के बाद से, हम उतना अच्छा नहीं कर रहे हैं, जितना हम कर सकते थे. इस खराब प्रदर्शन का प्रमुख कारण हमारे युवाओं के लिए अच्छी नौकरियां पैदा करने में असमर्थता है. केंद्र की अग्निवीर सैन्य भर्ती योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हुए राजन ने कहा कि इससे पता चलता है कि युवा नौकरियों के लिए कितने आकांक्षी हैं.
उन्होंने कहा कि अभी कुछ समय पहले आपने रेलवे की 35,000 नौकरियों के लिए 1.25 करोड़ आवेदकों को देखा है. यह विशेष रूप से चिंताजनक है, जब भारत में नौकरियों की कमी है, जबकि इतनी सारी महिलाएं अपने घरों से बाहर काम नहीं कर रही हैं. भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी 2019 में 20.3 प्रतिशत है जो जी-20 में सबसे कम है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार की ‘विकास की दृष्टि’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह ‘आत्मनिर्भर’ शब्द के इर्द-गिर्द केंद्रित है.
उन्होंने कहा कि अब, यह बेहतर सम्पर्क, बेहतर रसद, बेहतर सड़कों पर जोर देती है और इसके लिए अधिक संसाधन समर्पित करती है, किसी तरह से यह (आत्मनिर्भर दृष्टि) पिछले दशकों के सुधार की निरंतरता प्रतीत होती है और यह अच्छा है. आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि कई मायनों में ‘आत्मनिर्भर’ जो हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वह किसी को एक असफल अतीत की ओर ले जाता है जहां ध्यान भौतिक पूंजी पर था, न कि मानव पूंजी पर, सुरक्षा और सब्सिडी पर, न कि उदारीकरण पर, सबसे सक्षम को सफल होने देने के बजाय पसंदीदा को आगे बढ़ने के लिए चुनने पर.