राजनीति में रिटायरमेंट फार्मूला: देश में पूनिया फार्मूला लागू हो तो पीएम मोदी, वसुंधरा समेत राजस्थान के ये 17 नेता होंगे राजनीति से आउट

जयपुर. राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र को लेकर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के बयान ने राजनीतिक गलियारों में बड़ी बहस छेड़ दी है. वैसे तो राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र को लेकर पहले भी कई बार बयान आते रहे हैं, लेकिन अगर सतीश पूनिया के इस फार्मूले को लागू कर दिया जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित प्रदेश के कई ऐसे बड़े नेताओं की फेहरिस्त है, जो 70 पार हो चुके हैं या चुनाव आने तक 70 के हो जाएंगे. पूनिया के इस फार्मूले को लागू किया जाए तो राजनीतिक रूप से कई बड़े नेता आउट हो जाएंगे. चलिए एक बार बीजेपी के उन नेताओं को देखते हैं जो 70 के पास या उसे पार कर चुके हैं.

साथ ही इस उम्र के दायरे में नंदलाल मीणा, लादुराम विश्नोई, कैलाश मेघवाल, सुंदरलाल, किशनाराम नाई, तरुण राय कागा, सूर्यकांता व्यास, नरपत सिंह राजवी, कालीचरण सर्राफ, सहित कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट की दौड़ से बाहर होना पड़ सकता है. हालांकि, सतीश पूनिया ने इसे अपनी निजी राय बताया. लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की निजी राय भी केंद्रीय नेतृत्व से अलग होना अच्छा संकेत नहीं है.

  • बीकानेर से सांसद अर्जुन राम मेघवाल का जन्म 20 दिसंबर 1953 को हुआ है, 20 दिसंबर 2023 को वे 70 साल के हो जाएंगे.
  • अजमेर से सांसद भागीरथ चौधरी का जन्म 1 दिसंबर 1954 को हुआ है, 1 दिसंबर 2024 को वे 70 साल के हो जाएंगे.
  • दौसा से सांसद जसकौर मीणा का जन्म 3 मई 1947 को हुआ है, यानी वे 70 साल पार कर चुकी हैं. यह भी पुनिया फार्मूले के दायरे में आती हैं.
  • पाली से सांसद पीपी चौधरी का जन्म 12 जुलाई 1953 को हुआ है, 12 जुलाई 2023 को वे भी 70 साल के हो जाएंगे.
  • सीकर से सांसद स्वामी सुमेधानंद सरस्वती का जन्म 1 अक्टूबर 1951 को हुआ है. ये 70 साल पार कर चुके हैं. ये भी पूनिया के फार्मूले के दायरे में आते हैं.
  • राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा का जन्म 3 नवंबर 1951 को हुआ है. यानी इनकी उम्र भी 70 साल के पार हो चुकी है.
  • राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी का जन्म 19 दिसंबर 1947 को हुआ. यानी ये भी 70 साल के पार के हो चुके हैं.
  • राज्यसभा सांसद राजेन्द्र गहलोत का जन्म 8 नवंबर 1950 को हुआ है. इनकी उम्र भी 70 साल के पार हो चुकी है.
  • पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का जन्म 8 मार्च 1953 को हुआ है. यानी 8 मार्च 2023 को वे 70 साल की हो जाएंगी. पूनिया के फार्मूले के दायरे में वसुंधरा भी आती हैं.
  • नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया का जन्म 13 अक्टूबर 1944 को हुआ है. ये 70 साल की उम्र सीमा को पार कर चुके हैं.
  • नंदलाल मीणा का जन्म 1936 को हुआ है. ये भी 70 साल की उम्र सीमा को पार कर चुके हैं.
  • लादुराम विश्नोई का जन्म 20 दिसंबर 1942 को हुआ है. ये भी 70 साल को पार कर चुके हैं.
  • सुंदरलाल की उम्र 88 साल से ज्यादा है. ये भी पूनिया के फार्मूले के दायरे में आते हैं.
  • तरुण राय कागा का जन्म 1 जनवरी 1946 को हुआ है. ये भी 70 साल की उम्र सीमा को पार कर चुके हैं.
  • सूर्यकांता व्यास का जन्म 23 फरवरी 1938 को हुआ है. पूनिया के फार्मूले के दायरे में ये भी आती हैं.
  • नरपत सिंह राजवी का जन्म 3 फरवरी 1952 को हुआ है. ये भी 70 साल की उम्र सीमा को पार कर चुके हैं.
  • कालीचरण सर्राफ का जन्म 7 अगस्त 1951 को हुआ है. यानी 70 साल के पार के हो चुके हैं.

पूनिया ने यह कहाः राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र 70 वर्ष होने की वकालत भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ सतीश पूनिया ने की है. साथ ही 70 साल की उम्र के बाद खुद के रिटायरमेंट लेने का ऐलान भी किया. पूनिया ने नानाजी देशमुख का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार कर्मचारियों को 60 साल की उम्र में रिटायर्ड कर देती है. नानाजी देशमुख ने कहा था कि राजनीतिक रिटायरमेंट की उम्र 65 साल होना चाहिए. पूनिया ने कहा कि मैं इसमें 5 साल और ऐड कर देता हूं और मेरे हिसाब से 70 साल की उम्र में राजनीतिक सेवानिवृत्ति लेकर नई पीढ़ी को मार्गदर्शन और संरक्षण देने का काम करना चाहिए. उन्होंने कहा मैं यह कमिटमेंट करता हूं कि 70 साल की उम्र में मैं राजनीतिक जीवन से रिटायरमेंट ले लूंगा.

अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिए दिया बयानः सतीश पूनिया के बयान पर कांग्रेस भी पलटवार कर रही है. कांग्रेस नेता आरसी चौधरी ने कहा भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने 70 साल के बाद राजनीति से रिटायरमेंट की बात कही है. यह उनका व्यक्तिगत मत हो सकता है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा कि यह उनके लिए लागू नहीं होता. लेकिन दूसरे नेताओं के लिए है. यह मंशा इस बात को दर्शाता है कि प्रदेश में किस प्रकार से बीजेपी में मनमुटाव चरम पर है. किस प्रकार से प्रदेश में नेता हैं जो एक दूसरे को किसी न किसी बहाने से हटाकर अपने आप को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. आरसी चौधरी ने कहा कि मैं मानता हूं कि तजुर्बा होना चाहिए, क्योंकि वही संगठन को बेहतर नेतृत्व के साथ शीर्ष पर पहुंचा सकता है.

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