उज्जैन। भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन महीना चल रहा है. यह महीना शिवभक्तों के लिए विशेष फलदायी होता है. भक्तों की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने केवल मनुष्यों पर ही नहीं बल्कि पशु पक्षियों, देवी देवताओं पर भी उपकार किया है. इन सबका प्रमाण है शिव का आभूषण. फिर चाहे सिर में चंद्रमा हो, गले में लिपटा सांप हो या जटाओं में मां गंगा हों. शिव के इन सभी आभूषणों का रहस्य क्या है. किस आभूषण से कौन सा जुड़ा है रहस्य. इन सब बातों को आज हम आपको बताएंगे.
शिव की जटाओं में क्यों है गंगा का वास: शिव पुराण में वर्णित है कि अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए इक्ष्वाकु वंश के राजा भगरीथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया था. राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी में आने के लिए तैयार हो गईं, लेकिन मां गंगा ने कहा कि उनका वेग इतना तेज है कि पृथ्वी में भयंकर तबाही मचेगी. पृथ्वीवासी उनका गति सहन नहीं कर पाएंगे. जिसके बाद राजा भगीरथ ने भगवान शंकर की आराधना की. राजा भगीरथ की आराधना से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव ने मां गंगा को धारण कर लिया और मां गंगा की केवल एक धारा को पृथ्वी पर भेजा.
चंद्रमा का रहस्य: भगवान शिव को चंद्रशेखर भी कहते हैं. यानि जिसके शिखर में चंद्रमा का निवास हो. लेकिन, क्या आपको पता है कि शिव ने अपने शीष में चंद्रमा क्यों धारण किया है? वैसे तो शिव के हर आभूषण का अपना महत्व है, लेकिन क्या आपको इनके रहस्यों के बारे में पता है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ के सिर में विराजमान चंद्रमा को लेकर क्या कुछ रहस्य और मान्यताएं हैं.
चंद्रमा को शाप से दिलाई मुक्ति: दक्ष प्रजापति के शाप के कारण चंद्रमा की सारी कलाएं धीरे-धीरे कम होने लगीं और उनका शरीर क्षीण होने लगा. तभी नारद ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा, जिसके बाद चंद्रमा और उनकी पत्नियों ने मिलकर भगवान आशुतोष की आराधना की. चंद्रमा की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने चंद्रमा को आश्वस्त किया कि प्रजापति दक्ष कोई साधारण व्यक्ति नहीं है. उनके शाप से मुक्ति पाना असंभव है, जिसके बाद शिव ने मध्य का रास्ता निकाला और चंद्रमा से कहा कि तुम कृष्ण पक्ष में शाप के प्रभाव के कारण क्षीण होते जाओगे. अमावस्या पर पूरी तरह गायब हो जाओगे, लेकिन शुक्ल पक्ष में तुम्हारा चंद्रमा का उद्धार होगा और पूर्णमासी को पूर्ण तेज रहेगा. यही वजह है कि चंद्रमा का आकार घटता बढ़ता रहता है.
गले में सर्प का क्या है राज: शिव के गले में लिपटा सांप नागों के शासक नागनाथ वासुकी हैं. माना जाता है कि शिवलिंग पूजा का प्रचलन नागों ने ही शुरू किया था. यानि सबसे पहले नाग जाति के लोग ही शिवलिंग की पूजा अर्चना करते थे. नागनाथ वासुकी शिव के बड़े भक्त थे और वासुकी की इसी श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल किया और अपना आभूषण बनाया था. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय देवताओं ने नागनाथ वासुकी को ही रस्सी के रूप में प्रयोग किया था.
डमरू का महत्व: डमरू संसार का पहला वाद्य यंत्र माना जाता है. शिव नृत्य संगीत के प्रवर्तक भी हैं. उन्हें नटराज भी कहा जाता है. शिव जब प्रसन्न होते हैं तो नृत्य करते हैं और डमरू बजाते हैं. मान्यता है कि देवी सरस्वति ने वीणा के स्वर से सृष्टी में ध्वनि को जन्म दिया. यह ध्वनि संगीतविहीन थी. शिव ने नृत्य करते हुए 14 बार डमरू बजाया. डमरू की ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ और इसी प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई.
तीसरी आंख का रहस्य: शिव को त्रिलोचन भी कहते हैं. यानि तीन नेत्रों वाला. हम मनुष्यों के पास केवल दो आंखे हैं, जिससे हम केवल एक सीमा तक ही देख सकते हैं. लेकिन, शिव इससे परे हैं यानि शिव त्रिकालदर्शी हैं. इसी दिव्य दृष्टि से वह तीनों काल यानि भूत भविष्य वर्तमान पर नजर रखने वाले. ऐसी शक्ति किसी अन्य देवता के पास नहीं है. ऐसी मान्यता है कि शिव के इस तीसरे नेत्र के खुलने पर पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी.