शिंजो आबे से पहले इन नेताओं की हत्याओं से हिल गई थी दुनिया

अंतरराष्ट्रीय देश

कैनेडी की हत्या – 22 नवंबर 1963 को अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या कर दी गई थी. वह उस समय मात्र 46 साल के थे. इस हत्या ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया. शुक्रवार का दिन था. कैनेडी अपनी पत्नी के साथ डलास एयरपोर्ट पहुंचे थे. वह उस वक्त टेक्सास में थे. वह चुनाव प्रचार के सिलसिले में पहुंचे थे. पहुंचने के एक घंटे बाद ही वे गोलियों के शिकार हो गए. गोलियां उनके सिर और सीने पर लगी थी. गोलीबारी में टेक्सास के गवर्नर भी घायल हो गए थे. इस हत्या को लेकर आज तक यह रहस्य बना हुआ है कि कितनी गोलियां चलाईं गईं थीं. हमला पास के एक बिल्डिंग की छठी मंजिल से किया गया था. हत्या के तुरंत बाद जिस युवक, ली हार्वे ऑस्वाल्ड, को गिरफ्तार किया गया, उसने पूछताछ के दौरान हत्या में शामिल होने की बात नहीं की थी. एक नाइट क्लब के मालिक जैक रूबी ने ली हार्वे की उस समय हत्या कर दी, जब हार्वे को एक जेल से दूसरी जेल ले जाया जा रहा था. यह हत्या भी कैमरे के सामने की गई थी. रूबी ने कहा कि वह केनडी की हत्या किए जाने से परेशान था, इसलिए उसने ओस्वाल्ड को मार दिया. केनेडी 1961-1963 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे. वह दौर शीत युद्ध का था. क्यूबा मिसाइल संकट और बर्लिन दीवार को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा होती थी.

केनेडी को करिश्माई नेता माना जाता था. वह अपने आकर्षक व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. निजी जिंदगी में उन्हें रंगीन मिजाज का शख्स माना जाता थआ. व्हाइट हाउस की इंटर्न के साथ नाम जुड़ा था. मशहूर अभिनेत्री मार्लिन मुनरो के वह करीब माने जाते थे.

इंदिरा गांधी – 31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हत्या उनके ही अंगरक्षकों ने की थी. उनकी मौत की प्रमुख वजह खालिस्तान और ऑपरेशन ब्लूस्टार को माना जाता है. अपनी मौत से एक दिन पहले इंदिरा ने ओडिशा में चुनाव प्रचार के दौरान एक आम सभा को संबोधित किया था. अगले दिन यानी 31 अक्टूबर को वह अपने आवास पर जनता दरबार में भाग लेने के लिए निकली थीं. सुबह करीब नौ बजे वह अपने घऱ से निकली थीं. क्योंकि वह अपने आवास से बाहर नहीं जा रहीं थीं, इसलिए उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहना था. उनके अंगरक्षकों ने इसका फायदा उठाया. बेअंत सिंह और सतवंत सिंह नाम के दो अंगरक्षकों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. दूसरे सुरक्षाकर्मी जब तक संभले, तब तक वह नीचे गिर चुकीं थीं. गोलीबारी में बेअंत सिंह की वहीं पर मौत हो गई. दोपहर 02.33 पर औपचारिक रूप से इंदिरा के निधन की खबर प्रसारित की गई.

इंदिरा गांधी अपने सख्त फैसलों के लिए जानी जातीं थीं. उन्होंने 1975 में आपातकाल लगाया था. बैंकों के राष्ट्रीयकण का उन्होंने फैसला लिया था. गरीबी हटाओ का नारा उन्होंने दिया था. उन्होंने बांग्लादेश को बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी.

किंग फैसल– किंग फैसल 1964 से 1975 तक सऊदी अरब के राजा थे. उन्होंने अपने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. उन्होंने सुधार और आधुनिकीकरण की नीति अपनाई थी. उन्होंने अपने खिलाफ किए गए कई तख्तापलट के प्रयासों का सामना किया. फैसल को फैसल बिन मुसैद (उनके सौतेले भाई के बेटे) ने गोली मार दी. इलाज के दौरान उनका निधन हो गया.

शेख मुजीबुर रहमान– बांग्लादेश के जनक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या 15 अगस्त 1975 को कर दी गई थी. उनके अपने ही जूनियर अधिकारियों ने उनके घर पर टैंक से हमला कर दिया था. इस हमले में उनके परिवार और सुरक्षाकर्मियों की भी मृत्यु हो गई थी. उनकी दो बेटियां उस समय घर पर नहीं थीं. शेख हसीना और शेख रेहाना. शेख हसीना अभी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘जब ये लोग मुजीब के घर में घुसे तो वो बाहर आए. उन्हें लगा कि वो ग़लती से उनके घर में घुस आए हैं. उन्होंने चिल्ला कर कहा तुम चाहते क्या हो. उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि वो लोग उन्हें मारने आए हैं. उन्हें मारा गया, बेरहम तरीक़े से और मारने के बाद उन्हें किसी के कंधे पर नहीं बल्कि घसीटते हुए घर से बाहर लाया गया और इंतज़ार करते हुए ट्रक में फेंक दिया गया.’ 1971 में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपने देश के विकास के लिए कई कदम उठाए थे. 1977 में कू करने वाले जनरल जियाउर्रहमान ने शेख मुजीब की हत्या में शामिल आरोपियों को बरी कर दिया था. आपको बता दें कि पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी को विजय मिली थी. लेकिन तब पाकिस्तान के जनरल याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) के किसी भी नेता को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया था. तब शेख़ मुजीबुर रहमान ने कहा था, ‘मैं बांग्लादेश के लोगों का आह्वान करता हूं कि वो जहां भी हों और जो भी उनके हाथ में हो, उससे पाकिस्तानी सेना का प्रतिरोध करें. आपकी लड़ाई जब तक जारी रहनी चाहिए जब तक पाकिस्तानी सेना के एक-एक सैनिक को बांग्लादेश की धरती से निष्कासित नहीं कर दिया जाता.’

प्रेमदासा – 1993 में श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदासा की हत्या कर दी गई. रणसिंघे प्रेमदासा श्रीलंका के तीसरे राष्ट्रपति थे. 1 मई 1993 को कोलंबो में मई दिवस की रैली में आतंकी संगठन लिट्‌टे के सुसाइड बॉम्बर ने उनकी हत्या कर दी थी. उनकी हत्या के बाद श्रीलंका में लिट्टे और श्रीलंकाई सेना के बीच 26 साल तक युद्ध चलता रहा. प्रेमदासा सिंहली समुदाय से आते थे. प्रेमदासा ने प्रधान मंत्री के रूप में भी कार्य किया था. वह 6 फरवरी 1978 से 1 जनवरी 1989 तक जेआर जयवर्धने की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री थे. 1986 में उन्हें राष्ट्रपति जूनीस रिचर्ड जयवर्धने द्वारा श्रीलंका के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था.

मार्टिन लूथर किंग जूनियर– वह अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे. उन्होंने 28 अगस्त, 1963 को वाशिंगटन फॉर जॉब्स एंड फ्रीडम पर मार्च के दौरान ‘आई हैव ए ड्रीम’ भाषण दिया. नागरिक अधिकार आंदोलन को मजबूत करने में इस भाषण का ऐतिहासिक योगदान माना जाता है. 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम को लागू करने के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी. उनकी हत्या 4 अप्रैल, 1968 को जेम्स रे द्वारा मेम्फिस, टेनेसी के एक मोटल में की गई थी. उनकी मौत की खबर फैली तो पूरे देश में दंगे भड़क उठे. उन्हें पहले से ही जान से मारने की धमकियां मिल रहीं थीं.

पैट्रिस लुंबा– वह मौवेमेंट नेशनल कांगोलिस पार्टी के संस्थापक थे. वह कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधान मंत्री बने थे. लुंबा ने कांगो के साथ-साथ अफ्रीकाकरण की वकालत की. जब नए देश को राजनीतिक अशांति का सामना करना पड़ा, तो बेल्जियम के सैनिकों ने देश में बेल्जियम के नागरिकों की रक्षा करने की आड़ में आक्रमण किया, लेकिन वास्तव में, वह कांगो पर कब्जा करना चाहते थे. बेल्जियम के खिलाफ वापस लड़ने के प्रयास में, लुंबा ने बेल्जियम समर्थित सैनिकों को हराने में मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों से अनुरोध किया, लेकिन दोनों से मदद से इनकार कर दिया. इसके बाद वह सोवियत संघ चले गए. 14 सितंबर, 1960 को सेना के नेता कर्नल जोसेफ मोबुतु ने तख्तापलट कर दिया. लंबे कारावास के बाद, लुंबा को 17 जनवरी, 1961 को एक फायरिंग दस्ते के उपयोग के माध्यम से मार डाला गया.

राजीव गांधी – 21 मई 1991 को रात के 10 बजकर 21 मिनट पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में हत्या कर दी गई. वह उस वक्त श्रीपेरंबदूर में थे. वहां पर करीब 30 साल की एक लड़की फूलों का हार लेकर उन्हें पहनाने के लिए आगे बढ़ी थी. जैसे ही वह राजीव गांधी के पैर छूने के लिए झुकी, एक बड़ा धमाका हो गया. राजीव गांधी की वहीं पर मौत हो चुकी थी. उस सभा में उस समय जयंती नटराजन, जीके मूपनार जैसे नेता मौजूद थे. हत्या एलटीटीई ने की थी. मुख्य अभियुक्त शिवरासन और उसके साथियों ने गिरफ़्तार होने से पहले साइनाइड खा लिया. बीबीसी ने पीसी एलेक्ज़ेंडर की किताब के हवाले से लिखा, इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटों के भीतर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट के गलियारे में सोनिया और राजीव को लड़ते हुए देखा था. इसके अनुसार राजीव सोनिया को बता रहे थे कि पार्टी चाहती है कि ‘मैं प्रधानमंत्री पद की शपथ लूं’. सोनिया ने कहा हरगिज़ नहीं. ‘वो तुम्हें भी मार डालेंगे’. राजीव का जवाब था, ‘मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. मैं वैसे भी मारा जाऊंगा.’

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