इंदौर:मालवा उत्सव की दूसरी शाम भी जनजातीय नृत्य प्रस्तुत किए गए। दूसरे दिन नौरता, पंथी, कथक, धनगरी गाजा, तलवार रास, बधाई और डांगी नृत्य प्रस्तुत किए गए। यूं तो हर जनजाति के नृत्य, शैली, वेशभूषा अलग होती है, लेकिन कहीं न कहीं सबमें एक जुड़ाव है। कुछ बातें सब में समान हैं… और वह यह कि हर नृत्य जन के जीवन से जुड़ा है। उसकी खुशियों, तीज त्योहारों, धन सम्पन्नता से जुड़ा है। ये नृत्य रिश्तों की, छोटी-छोटी रस्मों की अहमियत बताते हैं। दूसरे दिन प्रस्तुत किया गया नौरता का संदर्भ भी ऐसा ही है। नवरात्रि में कुंआरी लड़कियां मां की आराधना करती हैं। वे अच्छे वर की कामना करती हैं। इस प्रस्तुति में लड़कियों ने सर पर मटकियों में प्रज्जवलित अग्नि लेकर नृत्य किया। कुछ सुंदर फॉर्मेशन बनाए। यह सौम्य नृत्य है जिसमें लड़कियां कोमल भावों की अभिव्यक्ति करती हैं। तलवार रास इसके बिलकुल विपरीत है। इसमें महिलाओं ने तलवारों के साथ ओजपूर्ण प्रस्तुति दी। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से आए कलाकारों ने पंथी नृत्य प्रस्तुत किया जो गुरु घासीदास के जन्म दिवस पर दिसंबर माह में पूरे माह भर उत्सव मनाते समय किया जाता है। मांदर, झांझ और झुमके की मधुर आवाजों पर सफेद धोती, जनेऊ, सिर पर चंदन तिलक लगाकर दी गई प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा।
भगोरिया की मस्ती में मस्त हुए श्रोता आदिवासी अंचल के भगोरिया नृत्य में मांदल की थाप पर झूमते कलाकारों ने सबको एकलय कर दिया। गुजरात का प्रसिद्ध गरबा झुमकू जिसमें घर की नीव को पक्का करती महिलाओं और पुरुषों को दर्शाया गया। संजना नामजोशी व साथियों ने अर्धनारीश्वर शिव पार्वती का वर्णन कथक में दर्शाया। बोल थे – अंगीकम भूवनम यस्या वाचीकम वही जय दुर्गे भवानी…। शांभवी तिवारी ने अपने 13 शिष्यों के साथ नर्मदा स्तुति प्रस्तुत की। बुंदेलखंड का बधाई नृत्य सबको भा गया। गुजरात के डांग जिले का डांगी नृत्य भी खूबसूरत बन पड़ा था।