आईएएस विवेक अग्रवाल पर कार्रवाई क्यों नहीं?

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ताकतवर आईएएस विवेक अग्रवाल पर कार्रवाई क्यों नहीं?

  • 275 का काम 300 करोड़ में दिया
  • स्मार्ट सिटी की कंसलटेंट कंपनी में बेटा है सीनियर एसोसिएट
  • दो साल में प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंची दूसरी शिकायत
  • प्रधानमंत्री के पत्र पर शिवराज सरकार ने नहीं कराई जांच
  • कमलनाथ सरकार चाहे तो आठ दिन में दर्ज हो सकता है भ्रष्टाचार का प्रकरण
  • फिर से पीएम, सीएम और मुख्य सचिव तक पहुंची शिकायत


भोपाल। शिवराज सरकार में मप्र के सबसे ताकतवर आईएएस अधिकारियों में शुमार विवेक अग्रवाल के खिलाफ सप्रमाण एवं गंभीर शिकायत के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रहे है। खास बात यह है कि दो साल पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनकी शिकायत की जांच के लिए मप्र सरकार को पत्र लिखा था, लेकिन शिवराज सरकार ने पूरी जांच को दबा लिया। अग्रवाल पर आरोप है कि स्मार्ट सिटी का 275 करोड़ का काम उन्होंने 300 करोड़ में एक निजी कंपनी को दिया। इस काम के लिए नगरीय प्रशासन ने प्रोजेक्ट कंसलटेंट जिस कंपनी को बनाया उसमें विवेक अग्रवाल के पुत्र सीनियर एसोसिएट हैं। जिस कंपनी को काम मिला है उसने प्रजेंटेशन से 6 दिन पहले कंसलटेंट कंपनी के साथ गुपचुप भागीदारी भी कर ली थी।

2017 में विवेक अग्रवाल प्रदेश के नगरीय प्रशासन आयुक्त के पद पर पदस्थ थे। इनके कार्यकाल में मप्र की सभी स्मार्ट सिटी के लिए मास्टर सिस्टम इंट्रगेटर फॉर प्रोवाइडिंग ए क्लाउड बेस्ड कॉमन इंट्रिगेटेड डॉटा सेंटर एंड डिजास्टर रिकवरी सेंटर बनाने के लिए 18 अप्रैल 2017 को टेंडर निकाला गया। इस टेंडर की प्रक्रिया के लिए विभाग ने पीडब्ल्यूसी कंपनी को कंसलटेंट नियुक्त किया। पीडब्ल्यूसी कंपनी में विवेक अग्रवाल के पुत्र वैभव अग्रवाल सीनियर एसोसिएट हैं। नियमानुसार यह जानकारी विवेक अग्रवाल को शासन को देना चाहिए थी जो नहीं दी गई। टेंडर में कुल 7 कंपनियों ने भागीदारी की। इनमें बीएसएनएल, एचएफसीएल, एचपीई, टेक एम, वीप्रो, यूएसटी, एलएनटी शामिल थीं। टेंडर में सबसे कम दर बीएसएनएल ने लगभग 275 करोड़ दी थी। जबकि एचपीई ने इसी काम के 300 करोड़ रुपए कीमत बताई। यहीं से धांधली का खेल शुरू हुआ। तय था कि विवेक अग्रवाल के पुत्र की कंपनी पीडब्ल्यूसी को ही तकनीकी आधार पर चयन करना था। सभी 7 कंपनियों को प्रजेंटेशन देेने के लिए 20 से 23 सितंबर 2017 को आमंत्रित किया गया। मजेदार बात यह है कि प्रजेंटेंशन के ठीक 6 दिन पहले 12 सितंबर 2017 को विवेक अग्रवाल के पुत्र की कंपनी पीडब्ल्यूसी और एचपीई ने देश में स्मार्ट सिटी के काम काज को मिलकर करने के लिए पार्टनरशिप डील साइन की। (इसकी कॉपी हमारे पास और वेबसाइट पर उपलब्ध है।) नियमानुसार कोई भी कंसलटेंट कंपनी अपनी पार्टनर को काम दिलाने के लिए अनुशंसा नहीं कर सकती। लेकिन यहां प्रजेंटेशन के बाद बीएसएनएल को पीछे कर दिया गया और एचपीई को 200 में से 175 अंक देकर 300 करोड़ में काम दे दिया गया।

पहले शिकायत फिर चुप्पी
इस मुद्दे पर बीएसएनएल ने पहले तो काफी हंगामा मचाया। इसकी कई जगह शिकायतें की गईं। जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई। लेकिन बाद में अचानक बीएसएनएल के अधिकारियों ने अज्ञात कारणों से चुप्पी साध ली।

प्रधानमंत्री को शिकायत
एक सामाजिक कार्यकर्ता अजय जैन ने 3 अक्टूबर 2017 को इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकायत भेजकर इस धांधली की जांच कराने का आग्रह किया। शिकायत की प्रति उन्होंने मप्र सरकार को भी सौंपी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने 6 अक्टूबर 2017 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इस मामले की जांच करने को कहा, लेकिन यह फाइल दबा दी गई। भारत सरकार के कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने भी 2017 को प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर टेंडर में हुई अनियमितताओं की जांच को कहा, लेकिन पीएमओ की तरह यह पत्र भी दबा लिया गया।

फिर से शिकायत
अजय जैन ने 2 दिन पहले 14 सितंबर को फिर से प्रधानमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री को सभी दस्तावेजों के साथ शिकायत करते हुए साफ तौर पर इस कथित धांधली के लिए विवेक अग्रवाल और उनके पुत्र वैभव अग्रवाल की ओर संकेत किया है।

रवीन्द्र जैन वरिष्ठ पत्रकार

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