AIIMS दिल्ली में पांच साल की ब्रेन डेड बच्ची का हुआ अंग दान

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नई दिल्ली: एम्स ट्रॉमा सेंटर में ब्रेन डेड घोषित एक लड़की के माता-पिता ने अपनी बच्ची, जो कि गोली लगने से घायल हो गई थी, का दिल, लीवर, किडनी और कॉर्निया दान कर दिया. ऐसा सब कुछ उन्हें अपनी बच्ची के छठे जन्मदिन से महज दो माह पूर्व करना पड़ा. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली के डॉक्टरों ने इसकी पुष्टि की है. उनके अनुसार वह (बच्ची) ब्रेन-डेड थी, उसके विवरण को अंग पुनर्प्राप्ति और बैंकिंग संगठन (ORBO-AIIMS) द्वारा NOTTO के साथ साझा किया गया था. एम्स ने बाद में प्रतीक्षा सूची (waiting list) में चल रहे मरीजों को अंग आवंटित कर दिया.

न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉ दीपक गुप्ता ने बताया कि लीवर का प्रत्यारोपण लखनऊ के एक सात वर्षीय बच्चे में किया जाएगा, जो दिल्ली के एक अन्य अस्पताल में भर्ती है. डॉ गुप्ता जेपीएनएटीसी ट्रॉमा सेंटर में अंगदान गतिविधियों के भी इंचार्ज हैं. दिल के लिए कोई आयु-मिलान वाला मरीज अभी तक नहीं मिला है. बाद में उपयोग के लिए हृदय वाल्व को पुनः प्राप्त किया गया. उस बच्ची की दोनों किडनी को दूसरे बच्चे में ट्रांसप्लांट किए जाने की संभावना है. दोनों कॉर्निया का इस्तेमाल दो अन्य बच्चों में भी प्रत्यारोपित किया जाएगा.

डॉ गुप्ता ने कहा, “लड़की, रोली को बंदूक की गोली सिर में लगी थी. गोली शायद उसके पिता को किसी अज्ञात व्यक्ति ने मारी थी. हालांकि मामले की पुलिस तहकीकात जारी है. उसको 28 अप्रैल की सुबह ट्रॉमा सेंटर के न्यूरोसर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया था. उसकी हालत काफी गंभीर थी और सीटी स्कैन से पता चला कि उसके सिर में एक गोली थी. जिससे मस्तिष्क को भी काफी नुकसान हुआ था. न्यूरोलॉजिकल जांच से मस्तिष्क की मृत्यु के नैदानिक ​​​​सबूत मिले.”

उन्होंने बताया कि इसके बाद बच्ची को आईसीयू में भर्ती कराया गया और 12 घंटे तक किए गए कई परीक्षणों के बाद शुक्रवार सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर ब्रेन डेथ की पुष्टि हुई. डॉक्टरों की एक टीम ने उसके माता-पिता की काउंसलिंग की. उन्हें बच्ची के अंगों को दान करने का विकल्प दिया गया जो अन्य बच्चों को नया जीवन दे सकता है. उस पर उनके माता-पिता ने अपनी सहमती दी. एम्स ट्रॉमा सेंटर के इतिहास में यह पहली बार है कि पांच साल के उम्र के बच्चे ने ब्रेन डेथ के बाद अंगों का दान किया है. जिसने देश के अन्य हिस्सों में अंतिम चरण की बीमारियों से पीड़ित कई बच्चों के लिए आशा की नई किरण जगाई है. बच्ची के पिता हरनारायण प्रजापति ने कहा, ‘शुरू में हम उसके अंगदान के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन डॉक्टरों ने हमें सलाह दी. हमारी बेटी अब नहीं रही, लेकिन अंगदान करने से कई परिवारों को खुशी मिल सकती है.

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