इंदौर: कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के इलाज को लेकर शासन कितना गंभीर है, यह इस बात से साबित हो जाता है कि संभाग के एकमात्र शासकीय कैंसर अस्पताल में 1996 के बाद से कोई मशीन नहीं आई है। अस्पताल में आज भी दशकों पुरानी तकनीक से कैंसर का इलाज हो रहा है। 1968 में स्थापित इस अस्पताल में पांच दशकों में मरीजों की संख्या में तो छह गुना से ज्यादा बढ़ोतरी हो गई, लेकिन न स्टाफ बढ़ाया गया, न आधुनिक मशीनें लगाई गईं। संभाग के जिलों से हर साल 50 हजार से ज्यादा मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं, लेकिन यहां उनके लिए कोई सुविधा नहीं है।
शुरुआती दौर में यहां हर साल 500-600 नए मरीज इलाज के लिए आते थे। फिलहाल हर साल चार से पांच हजार मरीज आ रहे हैं। यानी इन पांच दशकों में छह गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। अस्पताल अधीक्षक डा. रमेश आर्य ने बताया कि अस्पताल में कोबाल्ट थैरेपी मशीन के रूप में अंतिम मशीन 1996 में आई थी। इसके बाद से आज तक कोई नई मशीन नहीं खरीदी गई जबकि इस दौरान कैंसर के इलाज की कई अत्याधुनिक मशीनें आ चुकी हैं। स्थापना के वक्त अस्पताल में 95 बिस्तर थे। पांच दशक में इसमें सिर्फ 10 बिस्तरों की बढ़ोतरी हुई। अब तक यहां न स्टाफ की संख्या बढ़ी, न मशीनों की।
लिनियर एक्सलरेटर लगाने आई कंपनी ने खींचा हाथ – वर्षों से शासकीय कैंसर अस्पताल में लिनियर एक्सलरेटर लगाने का प्रस्ताव अटका हुआ है। शासन ने एक निजी कंपनी को प्रदेश के आठ मेडिकल कालेजों में लिनियर एक्सलरेटर मशीन स्थापित करने का ठेका भी दिया था, लेकिन कंपनी ने खुद ही हाथ खींच लिया।
वर्षों से तलघर में भरा है पानी – शासकीय कैंसर अस्पताल के तलघर में वर्षों से पानी भरा हुआ है। इसके चलते अस्पताल की इमारत लगातार कमजोर हो रही है। पानी भरने की वजह से तलघर का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
विश्व कैंसर दिवस आज : संभाग का एकमात्र शासकीय कैंसर अस्पताल बदहाल।