मप्र में बुजुर्ग नेताओं के भरोसे कांग्रेस, दूसरी पीढ़ी में कोई बड़ा चेहरा नहीं, 2023 में दिग्गी-नाथ फिर दिखा पाएंगे चमत्कार

राजनीति

भोपाल। कांग्रेस में बुजुर्ग बनाम युवा की तकरार भले ही बढ़ती जा रही हो लेकिन मप्र कांग्रेस की राजनीति फिलहाल दो बुजुर्ग नेताओं के भरोसे ही चलती नजर आ रही है. मप्र में 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने मिलकर कांग्रेस की वापसी कराई थी. नई युवा लीडरशिप को आगे न बढ़ाए जाने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है. यही वजह है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी पर ही चुनावी वैतरणी पार लगाने का जिम्मा है. पॉलिटिकल पंडित भी यही मानते हैं कि कांग्रेस के पास फिलहाल ऐसा कोई युवा चेहरा नहीं है जो पूरी कांग्रेस को एकजुट कर सके.यही वजह है कि इन दोनों नेताओं के बगैर कांग्रेस के सफल होने की कोई गुंजाइश भी नहीं दिखाई देती है.

बूढ़े हो चुके हैं कांग्रेस के बड़े नेता
मप्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ 75 की उम्र पार कर चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह भी 74 हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी (69) , कांतिलाल भूरिया (71), पूर्व विधानसभा स्पीकर एनपी प्रजापति (63) ,सज्जन सिंह वर्मा (69),अजय सिंह राहुल (67) जैसे नेता भी सीनियर सिटीजन की श्रेणी में हैं. युवा पीढ़ी का कोई भी नेता ऐसा नहीं है जो एमपी कांग्रेस की कमान संभाल सके. ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद पिछले कुछ वर्षों में कोई भी नेता कमलनाथ और दिग्विजय के मुकाबले खड़ा नहीं हो सका है. हालात ये हो गए हैं कि प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ और दिग्विजय के इर्द-गिर्द ही सिमटकर रह गई है. यही वजह है कि दोनों ही नेता एक बार फिर प्रदेश में कांग्रेस की वापसी कराने को लेकर जोर आजमाइश में लगे हैं.

2023 में निर्णायक होगी दिग्गी-नाथ की भूमिका
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार उमेश त्रिवेदी मानते हैं कि 2023 के चुनाव में मप्र में कांग्रेस की रणनीति का स्वरूप क्या और कैसा होगा इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इतना जरूर है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण, निर्णायक और कांग्रेस को आगे ले जाने वाली होगी. इसका एकमात्र कारण यह है कि अभी कांग्रेस की नई लीडरशिप में कोई ऐसा चेहरा नजर नहीं आता जिसकी मान्यता प्रदेशभर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हो. इसलिए इन दोनों के बिना कांग्रेस में कोई भी नया नेतृत्व सफल नहीं हो सकता.

उमेश त्रिवेदी,वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक

दोनों की राजनीति का तरीका अलग
त्रिवेदी बताते हैं कि इन दोनों में कोई आपसी गुटबाजी नहीं है. 1980 से दोनों को साथ काम कर रहे हैं. इनके कद में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं हैं. 1980 से 1990 तक कमलनाथ दिल्ली की राजनीति में दिग्विजय से बड़े नेता माने जाते थे, लेकिन दोनों के बीच एक सम्मानजनक रिश्ता हमेशा बना रहा है. ये भी माना जाता है कि दिग्विजय सिंह को मप्र का मुख्यमंत्री बनाने में कमलनाथ ने मदद की थी. दोनों के बीच आपसी भाईचारे और दोस्ती के रिश्ते रहे हैं. उमेश त्रिवेदी कहते हैं कि हर नेता का अपना गुट होता है. जिसका पार्टी से ही नाता होता है और पार्टी की जिम्मेदारी को पूरी करने की जिम्मेदारी उस गुट के नेता की होती है. यही वजह है कि कमलनाथ अपने तरीके से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हैं और दिग्विजय सिंह अपने तरीके से.

किसी और को बागडोर मिलने की संभावना बेहद कम
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरुण पटेल का मानना है कि अभी तो ऐसा लगता है कि स्थिति यही बनी रहेगी. 2018 के चुनाव में कमलनाथ और दिग्विजय के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे, लेकिन अब वे बीजेपी में चले गए हैं. इसलिए किसी नए नेता को बागडोर मिलेगी इसकी संभावना कम है, क्योंकि कांग्रेस में अभी कोई इस लायक तैयार नहीं हुआ है. वरिष्ठ पत्रकार अरुण पटेल मानते हैं कि कांग्रेस में दूसरी पीढ़ी के नेता तो हैं जैसे अरुण यादव,अजय सिंह राहुल , तरुण भनोट,जयवर्धन सिंह,जीतू पटवारी इन्हें आगे किया जा सकता है, लेकिन इन्हें नेतृत्व सौंपा जा सकता है इसकी संभावना फिलहाल कम है. विवाद की वजह से ही एक ही नेता दो पदों पर हैं. कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष और पार्टी अध्यक्ष दोनों ही हैं.

अरुण पटेल,वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक

कांग्रेस के पास बड़ा प्लान नहीं
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संगठन में जान फूंकने के लिए कांग्रेस के पास कोई बड़ा प्लान नहीं है, जबकि इसके मुकाबले भाजपा काफी मजबूत है. भाजपा के पास बूथ लेवल, वोटर लिस्ट से लेकर पन्ना प्रमुख तक संगठन है. हालांकि कमलनाथ ने लगातार बूथ और मंडल स्तर तक कांग्रेस को मजबूत करने की बात करते रहे हैं ,लेकिन हकीकत में संगठन में मजबूती दिखाई नहीं दे रही है. मप्र कांग्रेस में पूर्व पीसीसी चीफ अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल कमलनाथ की कार्यशैली और उनके व्यवहार को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. अरुण यादव को खंडवा लोकसभा चुनाव से अपनी दावेदारी वापस लेना पड़ी थी. अजय सिंह राहुल ने विंध्य में कांग्रेस की राजनीति को लेकर कमलनाथ के बयान पर आपत्ति जता चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर भी कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार आरोप लगा चुके हैं, लेकिन खास बात यह है कि घर के भीतर से लग रहे तमाम आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच कमलनाथ और दिग्विजय मप्र कांग्रेस पर अपना वर्चस्व कायम रखे हुए हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या इन उम्रदराज हो चुके नेताओं के दम पर बूढ़ी कांग्रेस अपने से कहीं ज्यादा मजबूत बीजेपी के मुकाबले खड़ी नजर आएगी.

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