12 जनवरी को हर साल भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है. यह दिवस उस शानदार व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद को समर्पित है, जिन्होंने न सिर्फ भारत के युवाओं को मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से ताकतवर होने को प्रेरित किया बल्कि पूरी दुनिया को पहली बार भारतीय दर्शन और अध्यात्म से परिचित कराया. 12 जनवरी को विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1984 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष के तौर घोषित किया था. इससे प्रेरित होकर भारत सरकार ने 1984 में युवा दिवस मनाने का फैसला किया. इसके लिए स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को चुना गया. स्वामी विवेकानंद ऐसी शख्सियत थे, जिनकी जिंदगी युवाओं को प्रेरित करती है. मात्र 35 साल की उम्र तक वह अमेरिका और यूरोप तक भारतीय दर्शन का परचम लहरा चुके थे. रामकृष्ण मिशन जैसे समाजसेवी संगठन की नींव रखी और वेदांत को युवाओं तक पहुंचाया.
शिकागो से लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद का संदेश.
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता यानी आज के कोलकाता में हुआ था. उनका पहला नाम नरेंद्र दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे. पिता की इच्छा थी कि बेटा अंग्रेजी पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने. नरेंद्र दत्त पढ़ने में मेधावी थे, 25 साल की उम्र तक उन्होंने दुनिया भर की तमाम विचारधारा, दर्शन और धार्मिक पुस्तकें पढ़ डालीं. संगीत, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, वेद पुराण से लेकर कुरान-बाइबिल तक कुछ भी नहीं छोड़ा.
बताया जाता है कि अपने अध्ययन के दौरान वह इतने तर्क किए कि किसी भी विचार पर उनका भरोसा नहीं रहा. 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई. उन्होंने ठाकुर रामकृष्ण से उनकी साधना और विश्वास को लेकर तर्क किए. मान्यताओं के अनुसार, रामकृष्ण परमहंस को पता था कि नरेंद्र दत्त उनका शिष्य बनेगा, इसलिए वह हमेशा उनकी बातों को सुनते थे और उनकी जिज्ञासा को शांत करते थे. एक दिन रामकृष्ण ने उन्हें तर्क छोड़कर विवेक जगाने को कहा. उन्हें सेवा के जरिये साधना का मार्ग बताया. फिर तो नरेंद्र दत्त ने सांसारिक मोह माया त्याग दी और सन्यासी बन गए.
स्वामी विवेकानंद के अध्यात्मिक गुरु ठाकुर रामकृष्ण परमहंस थे. कहा जाता है कि जब रामकृष्ण रुग्ण अवस्था में थे तो विवेकानंद ने उनकी खूब सेवा की थी.
रामकृष्ण परमहंस के ब्रह्मलीन होने के बाद मां शारदा ने उन्हें गुरु के विचार को दुनिया तक पहुंचाने का जिम्मा सौंपा. मां शारदा ने उन्हें ठाकुर रामकृष्ण की खड़ाऊं दी और आशीर्वाद देकर भारत भ्रमण करने की सलाह दी. इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की. तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी. 11 सितंबर 1893 को उन्होंने अमेरिका के धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया.
कहा जाता है कि धर्म संसद में उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा था. बाद में एक प्रोफेसर ने उन्हें दो मिनट का वक्त दिलवाया. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत की..
मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों!
आपने जिस सम्मान सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं. संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं. धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं. सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं.
इसके बाद पूरी धर्म संसद उनके विचार को मग्न होकर सुनती रही. जब भाषण खत्म हुआ, पूरा हॉल तालियों से गड़गड़ा उठा. इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने अपने विचार को बताने के लिए अमेरिका में भी प्रवास किया.
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये. उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं.
स्वामी विवेकानंद वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे. मात्र 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया. मृत्यु के पहले शाम के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया था. स्वामी विवेकानंद में बारे में कहा जाता है कि वह दिन में केवल करीब 2 घंटे ही सोते थे और हर चार घंटे के बाद 15 मिनट के लिए झपकी लेते थे. उन्होंने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, यह संगठन आज भी समाज की सेवा कर रहा है. वहीं 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना भी की थी, जो आज कोलकाता का सबसे पवित्र स्थलों में शुमार है.