जलधारी जी ! तनिक और ठहर जाते
ओह । फिर एक दुखद खबर । इंदौर के बौद्धिक जगत को अतुल लागू के बाद एक और झटका । दोस्त ,कवि, पत्रकार शशींद्र जलधारी चले गए ।अस्पताल से तो ख़बरें आ रही थीं कि तबियत में कुछ सुधार है । लेकिन सूचना आई तो भरोसा ही नहीं हुआ ।
अस्सी इक्यासी की बात है । मैंने नई दुनिया ज्वाइन किया था । तब वे सिटी डेस्क पर थे । सिटी चीफ थे गोपीकृष्ण गुप्ता । याने गोपी जी के बाद नंबर दो । पहली ही मुलाक़ात में उनके ठहाके, कविताएं और निर्मल मन की झलक मिल गई । एक बार डेस्क पर बैठे तो सिर थोड़ा तिरछा करके जो लिखना शुरू करते तो दो तीन घंटे कलम नहीं रुकती । उन दिनों कम्प्यूटर नहीं आया था । तीन घंटे लगातार लिखने की आदत पर आज कोई भरोसा करेगा । बीच में एकाध चाय ।बस । मैं भोपाल संस्करण का प्रभारी था ।तो हम दोनों में मैटर याने संपादकीय सामग्री जारी करने की होड़ सी थीं । वे लिखना शुरू करते और मैं भी । बीच बीच में चिल्लाकर पूछते ,राजेश जी कितने कॉलम भेजा । मैं कहता , तीन कॉलम । फिर उठते और मेरे सामने आकर बैठ जाते । कहते ,अब तो चाय बनती है । फिर मैं एक कप नींबू की ट्रे बोलता ।उसमें दो कप नींबू की चाय बनती ।जिस दिन उनके पास कोई बड़ी ख़बर होती तो उसे पहले पन्ने पर लगवाना होता तो मेरे सामने बैठकर नींबू की चाय का ऑर्डर कर देते । मैं समझ जाता कि आज जलधारी जी पहले पेज पर ख़बर लगवाने की जुगाड में हैं । फिर मैं शरारती अंदाज़ में कहता,आज तो बहुत रश है । सिंगल कॉलम ही जगह है । फिर वे तनिक परेशान होते । मुझे ख़बर के महत्व का ज्ञान देते । मैं कहता, अच्छा डबल कॉलम ले लो । फिर वे और डटकर बैठ जाते और खबर नीचे चार कॉलम पट्टी या ऊपर बॉक्स लग जाती । कभी कभी नौक झौंक भी चलती । ऐसा तो कई बार हुआ कि उसमें ख़बर की शास्त्रीयता पर बहस हो रही होती तो उसमें बाबा याने राहुल बारपुते और राजेंद्र माथुर भी शामिल हो जाते । फिर मुझे चार कप नींबू की ट्रे ऑर्डर करनी पड़ती । जलधारी जी और मेरा साप्ताहिक अवकाश शनिवार ही होता था । संडे को एक तरह से सन्नाटा सा रहता ।हम लोग धमाल करते । कम लोग ही जानते होंगे कि नई दुनिया की घड़ी वास्तविक समय से आधा घंटे आगे चलती थी । क्योंकि छपा अख़बार रोडवेज या निजी बसों के ज़रिए ज़िलों में जाता था । बस में अख़बार का बन्डल रखने से चूक न जाएं ,इसलिए आधा घंटे घड़ी आगे रखी जाती थी । तो संडे को हम लोग और भी जल्दी पेज छोड़ देते और अपना टिफिन खोलकर खाते । जलधारी मुकेश के गाने बहुत अच्छे गाते थे । मुझे भी थोड़ा बहुत गुनगुनाने का शौक था । बाकी सहयोगी भी आ जाते और संडे की महफ़िल यादगार हो जाती । कुछ समय बाद भोपाल संस्करण के अलावा नगर निगम की रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी मिली । इसके लिए गोपी जी के निर्देश पर मुझे ऑफिस से नई साइकल दी गई । जलधारी जी के पास बड़े बड़े पहियों वाली एक मोपेड होती थीं । नई साइकल आई तो साथियों ने पार्टी मांगनी शुरू कर दी । तो एक तरह से बड़े भाई जैसी ज़िम्मेदारी निभाते हुए जलधारी जी ने ऐतिहासिक पोहा चाय की पार्टी दी । क्या यादगार दिन थे । जब नगर निगम की रिपोर्ट मुझे लगवानी होती तो जलधारी जी की टेबल पर जाकर मैं नींबू की ट्रे ऑर्डर करता था और पहले पन्ने पर या भोपाल एडिशन में ख़बर लगवानी होती तो जलधारी जी यही कार्रवाई करते ।
एक दिन वह भी आया , जब 1985 में राजेंद्र माथुर जी ने मुझे नवभारत टाइम्स ,जयपुर शुरू करने के लिए मुख्य उप संपादक के तौर पर जयपुर भेजा । मैंने इस्तीफा दिया तो जलधारी जी सबसे ज़्यादा दुखी थे । उन्होंने सरवटे बस स्टैंड के पास एक होटल में मुझे विदाई पार्टी दी । याद है हम लोग चलते समय गले मिलकर रो पड़े थे ।जयपुर में मेरा मन नहीं लग रहा था तो सभी मित्रों को लगातार पत्र लिखा करता था । जवाब में जलधारी जी ने करीब 18 पन्ने का एक पत्र भेजा । उसमें । सभी संपादकीय साथियों ने एक ही पत्र में मुझे बड़ा भावुक पत्र लिखा था । आज भी मेरे पास वह जर्जर हालत में पत्र सुरक्षित है । इसमें जलधारी जी के अलावा,राकेश त्रिवेदी,प्रशांत राय चौधरी, सुरेश ताम्रकार, विभूति शर्मा, चंदा बारगल , मीना राणा तथा अन्य मित्रों ने अपनी भावुक टिप्पणियां की थीं । जलधारी ने लिखा था,राजेश तुम जयपुर क्या गए,इंदौर में बादलों ने बरसना छोड़ दिया ।अब कोई हक से नीबू की ट्रे नहीं मांगता,कोई साथ में मुकेश के गाने नहीं सुनता।आओ बादल।इंदौर में बरसो ।
जलधारी जी आप तो चले गए,लेकिन मेरी आंखें बरस रही हैं ।
इंदौर लगातार जाता रहा । जब भी हम दोनों को वक़्त मिलता , अलग निकल जाते और पुराने दिनों तथा ज़िन्दगी के संघर्ष को याद करते । कुछ समय पहले उन्होंने कविताओं का संग्रह भेंट किया था । मैंने उनसे मुकेश के गाने सुने थे । हम पत्रकारों को ऊपर वाला अब लंबी आयु नहीं देता । इस हिसाब से अपन भी कतार में लग लिए हैं जलधारी भिया । एक बार पोहे चाय की पार्टी और साथ में मुकेश के गाने हो जाते भिया तो तसल्ली हो जाती । बहरहाल । जाओ भाई । जहां भी रहो हमें याद करते रहना ।
वरिष्ठ पत्रकार -राजेश बादल