समान नागरिक संहिता देश की जरूरत इसे लागू करने पर विचार करे केंद्र: इलाहबाद हाईकोर्ट

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नई दिल्ली । इलाहबाद हाईकोर्ट ने केंद्र को समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड लागू करने को लेकर विचार करने को कहा है। हाईकोर्ट ने कहा कि अब ये देश की जरूरत बन गई है। यह बातें न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने मायरा उर्फ वैष्णवी विलास शिर्शिकर, ज़ीनत अमान उर्फ नेहा सोटी सहित अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 युगलों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहीं। बता दें कि संविधान की धारा 44 के तहत कहा गया है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश का पालन करने के लिए सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया है। साथ ही महानिबंधक को आदेश की प्रति केंद्र सरकार के विधि मंत्रालय व प्रदेश के मुख्य सचिव को अनुपालन के लिए प्रेषित करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने सभी कानूनी मुद्दों पर विचार करते हुए कहा कि समाज, सामाजिक व आर्थिक बदलावों के दौर से गुजर रहा है। सख्त कानूनी व्याख्या संविधान की भावना को निरर्थक कर देगी। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन की स्वतंत्रता व निजता के अधिकार की गारंटी है। नागरिकों को अपनी व परिवार की निजता की सुरक्षा का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि समाज में बदलाव के साथ संविधान में भी बदलाव किया जा सकता है। संविधान एक पत्थर नहीं, जिसमें बदलाव न किया जा सके। संविधान व्याकरण नहीं, दर्शन है। पिछले 70 वर्षों में 100 से अधिक बदलाव किए जा चुके हैं। संविधान का अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार देता है। संविधान के मसौदे में अनुच्छेद 35 को अंगीकृत संविधान के आर्टिकल 44 के रूप में शामिल कर दिया गया और उम्मीद की गई कि जब राष्ट्र एकमत हो जाएगा तो समान नागरिक संहिता अस्तित्व में आ जाएगा। अनुच्छेद 44 राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने का निर्देश देता है। कुल मिलाकर अनुच्छेद 44 का उद्देश्य कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या को खत्म करके देशभर में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बढ़ाना है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिए।

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