बिरसा के बाद अब भाजपा टंट्या मामा को भुनाएगी

इंदौर भोपाल मध्यप्रदेश

भोपाल ।मध्यप्रदेश में जनजातीय व आदिवासी समुदाय को रिझाने के लिए दोनों ही प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस ने कमर कस ली है। भोपाल में बिरसा मुंडा जयंती पर जनजातीय सम्मेलन के सफल आयोजन से उत्साहित भाजपा अब आदिवासी नायक व स्वतंत्रता सेनानी टंट्या मामा के बलिदान दिवस को भव्य तरीके से मनाने में जुट गई है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान टंट्या मामा के बलिदान दिवस 4 दिसंबर को पातालपानी आएंगे। वे टंट्या मामा को श्रद्धांजलि अर्पित कर आदिवासियों के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं भी कर सकते हैं।

कौन हैं ट्ंट्या भील…
टंट्या भील का जन्म सन् 1842 के आसपास हुआ। मात्र 16 वर्ष की आयु में वह क्रांतिवीर बन गए थे। संकट में लोग टंट्या मामा को पुकारते। वह हवा की तरह आते, लोगों को शोषण से मुक्त करवाते और अगले मोर्चे पर चल देते। उन्होंने अंग्रेजों के चाटुकार सेठ-साहूकारों के चंगुल से दीन-हीन गरीबों को मुक्ति दिलाई, अंग्रेजों से लगातार संघर्ष किया और जनयोद्धा बन गए। यही नहीं वन में शरण के लिए आए सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों के वह आश्रयदाता भी थे। 15 सितम्बर 1857 को क्रांति के महानायक तात्या टोपे से उन्हें गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त दिया। वे अंतिम समय तक शोषित और पीडि़तों को लिए काम करते रहे।

जनजाति वर्ग को प्रभावित करने में लगी सरकार
भोपाल में हुए जनजातीय सम्मेलन के बाद अब भाजपा जनजाति वर्ग पर फोकस करने के लिए महू के पातालपानी में भी एक आयोजन करने जा रही है। 4 दिसम्बर को मुख्यमंत्री पातालपानी आ रहे हैं, जहां वे टंट्या मामा के मंदिर पर पहुंचेंगे। मालवा और निमाड़ में टंट्या मामा को इंडियन रॉबिनहुड के नाम से जाना जाता है। वे आदिवासियों के हीरो रहे हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे अंग्रेजों से खजाना लूटकर अपने आदिवासियों की मदद करते थे। टंट्या मामा ने अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर किए जा रहे अत्याचारों को लेकर विरोध किया था।  4 दिसम्बर 1889 को उनकी मृत्यु हुई थी। बिरसा मुंडा की जयंती के बाद अब शिवराज सरकार मालवा और निमाड़ के आदिवासी वोट को साधने के लिए महू के पातालपानी में भी आयोजन करने जा रही है। मुख्यमंत्री ने कल अपने ट्वीटर अकाउंट पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा कि उनके बलिदान दिवस पर 4 दिसम्बर को मैं पातालपानी आ रहा हूं।

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