काबुल |
तालिबान ने काफी उठा-पटक के बाद आखिर अफगानिस्तान में अपनी सरकार व मंत्रिमंडल का ऐलान कर दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि विश्व के खूंखार आंतकी तालिबान सरकार के मुखिया व मंत्री बनाए गए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आतंकियों की इस तालिबान सरकार को दुनिया मान्यता कैसे दे सकती है।
तालिबान ने वैश्विक आतंकी मुल्ला हसन अखुंद को इस्लामिक अमीरात का प्रधानमंत्री और अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी को तालिबान सरकार में अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया है। तालिबान सरकार में नंबर एक और दो पद पर वैश्विक आतंकियों की नियुक्ति से दुनिया में तहलका मचा हुआ है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन दोनों प्रतिबंधित आतंकियों के प्रमुख पदों पर रहते हुए कोई भी देश तालिबान सरकार को मान्यता देगा।
मुल्ला हसन अखुंद UN का प्रतिबंधित आतंकी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का मुखिया बना मुल्ला हसन अखुंद संयुक्त राष्ट के वैश्विक आतंकियों की सूची में शामिल है। मुल्ला मोहम्मद हसन वर्तमान में तालिबान के शक्तिशाली निर्णय लेने वाले निकाय, रहबारी शूरा या नेतृत्व परिषद के प्रमुख है। मोहम्मद हसन तालिबान के जन्मस्थान कंधार से ताल्लुक रखता है और आतंकी आंदोलन के संस्थापकों में से एक है। मुल्ला हसन अखुंद ने रहबारी शूरा के प्रमुख के रूप में 20 साल तक काम किया है और बहुत अच्छी प्रतिष्ठा अर्जित की। वह एक सैन्य पृष्ठभूमि के बजाय एक धार्मिक नेता है।
सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिका का मोस्ट वांटेड
अफगानिस्तान का गृह मंत्री या आंतरिक मंत्री बना सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की हिटलिस्ट में शामिल हैं। अमेरिकी सरकार ने तो बाकायदा इस आतंकी के ऊपर 5 मिलियन डॉलर (करीब 36 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा हुआ है। पिता जलालुद्दीन हक्कानी की मौत के बाद सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क की कमान संभाले हुए है। हक्कानी समूह पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान की वित्तीय और सैन्य संपत्ति की देखरेख करता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हक्कानी ने ही अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों की शुरुआत की थी। हक्कानी नेटवर्क को अफगानिस्तान में कई हाई-प्रोफाइल हमलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। उसने तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या का प्रयास भी किया था।
टानिकजई का भी पर कतरा गया, उप विदेश मंत्री बना
भारत के मिलिट्री एकेडमी से सैन्य ट्रेनिंग ले चुके शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई के कद को भी घटाया गया है। अभी तक वह तालिबान के विदेश संबंधी सभी मामलों पर बयान देता रहा है। ऐसे में उसके विदेश मंत्री बनाने जानें की अटकलें काफी तेज थी। लेकिन, जब सरकार का गठन हुआ तो उसे पुरानी तालिबान सरकार के पद यानी उप विदेश मंत्री पर फिर से बैठाया गया। शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई कट्टर धार्मिक नेता है। वह पिछले एक दशक से दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में रह रहा है। 2015 में स्टानिकजई को तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया था। उसने अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता में हिस्सा लिया है।
अब्दुल हकीम हक्कानी बना न्याय मंत्री
तालिबान के शासन के दौरान मुख्य न्यायधीश रहा अब्दुल हकीम हक्कानी को न्याय मंत्री बनाया गया है। अब्दुल हकीम हक्कानी तालिबान के शांति वार्ता टीम का एक सदस्य भी रहा है। वह तालिबान की धार्मिक विद्वानों की शक्तिशाली परिषद के प्रमुख हैं। ऐसा माना जाता है कि तालिबान सरगना हिबतुल्लाह अखुंदजादा अब्दुल हकीम हक्कानी पर सबसे ज्यादा भरोसा करता है। धार्मिक मामलों में अखुंदजादा अब्दुल हकीम की सलाह जरूर लेता है।
दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ
दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दो या दो से अधिक वैश्विक आतंकी किसी सरकार में सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जिन-जिन देशों ने इन आतंकियों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं, वे आखिरकार तालिबान सरकार को मान्यता कैसे देंगे। अगर ये देश नियमों तो ताक पर रखकर मान्यता देते हैं तो इसे आतंकवाद के साथ समझौता माना जाएगा। दूसरी तरफ ऐसी मिसाल कायम होगी कि आतंकी होने के बावजूद सरकार का प्रमुख बनने पर सभी अपराध माफ हो जाते हैं।
वैश्विक और मोस्ट वॉन्टेड का ‘तमगा’कैसे हटेगा ?
मुल्ला हसन अखुंद और सिराजुद्दीन हक्कानी के ऊपर से वैश्विक आतंकी और मोस्ट वाॉन्टेड का ‘तमगा’ हटाना कोई आसान बात नहीं है। अगर कोई आतंकी संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकियों वाली सूची में शामिल होता है तो वह दुनियाभर के अधिकतर देशों में अपने आप ही प्रतिबंधित हो जाता है। भारत भी संयुक्त राष्ट्र के डेजिग्नेटेड टेररिस्ट सूची को मान्यता देता है। ऐसे में इन देशों के लिए तालिबान सरकार को मान्यता देना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।