क्यों नजर है अमेरिका की ग्रीनलैंड पर

अमेरिका ग्रीनलैंड क्यों खरीदना चाहता है? अमेरिका की चाहत अलग, लेकिन क्या ग्रीनलैंड बिकने को तैयार है? बिका तो कितने में बिकेगा ग्रीनलैंड? डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान से शुरू हुई इस चर्चा में पांच ज़रूरी सवालों के जवाब.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने हाल में ग्रीन लैंड द्वीप को खरीदनेेे की इच्छा ज़ाहिर की. ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, जो फिलहाल डेनमार्क (Denmark) का भूभाग है. नाम का खेल देखिए कि आइसलैंड (Iceland) नाम का द्वीप हरा भरा है और ग्रीनलैंड बर्फ की सफेद चादर से ढंका हुआ है. साथ ही, इस द्वीप की भौगोलिक परिस्थितयां ऐसी हैं कि यहां बहुत कम आबादी रहती है. ऐसे में ट्रंप या अमेरिका की इस द्वीप को खरीदने की इच्छा से सवाल उठता है कि आखिर इससे वह क्या हासिल करना चाहता है और क्या वाकई ग्रीनलैंड खरीदा जा सकता है. ऐसे ही पांच ज़रूरी सवालों के जवाब इस रपट में जानिए.

एक ऐसा द्वीप, जिसका 80 फीसदी हिस्सा ग्लेशियरों से ढंका (Glaciers) है और जहां 60 हज़ार से भी कम लोग रहते हैं, इस पर अमेरिका की नज़र क्यों गड़ी हुई है? ये एक जायज़ सवाल है, जिसका जवाब अब तक ट्रंप ने नहीं दिया है, लेकिन जानकारों के (Experts Analysis) हवाले से सीएनएन ने ऐसे ही ज़रूरी सवालों के जवाब खोजे हैं. आइए जानें कि आखिर क्यों अमेरिका की निगाहें इस द्वीप पर गड़ी हुई हैं. सबसे पहली बात तो यही है कि ग्रीनलैंड के बारे में विशेषज्ञ मानते हैं कि यहां अपार प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं. लौह अयस्क, सीसा, ज़िंक, हीरा, सोना और यूरेनियम व तेल जैसे दुनिया के दुर्लभ तत्वों के इस द्वीप पर होने की भरपूर संभावनाएं जताई जा चुकी हैं. दूसरी बात ये है कि इस द्वीप की प्राकृतिक संपदा अब तक अछूती है. नासा ने इसी साल यह पाया था कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ग्रीनलैंड के इतिहास में ग्लेशियर पिघलने की दो सबसे बड़ी घटनाएं हुईं. ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते बर्फ पिघलती है, तो यहां खनिजों व प्राकृतिक तत्वों का खनन आसान भी हो सकता है.
 

राजनीतिक महत्व भी है 
एक और अहम बात यह है कि अमेरिका के लिए यह द्वीप भौगोलिक व राजनीतिक नज़रिए से भी खासा अहम है. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी एक रपट में लिखा :

आर्कटिक सर्कल के उत्तर में 750 मील पर स्थित इस द्वीप पर अमेरिकी बैलेस्टिक मिसाइल के अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का रडार स्टेशन मौजूद है. इस बेस को अमेरिकी वायुसेना और उत्तर अमेरिकी एयरोस्पेस डिफेंड कमांड अपने अधिकार में रखते हुए इस्तेमाल भी करते हैं.

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