भोपाल : तालिबान शासकों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह महिलाओं को काम करने की आजादी देगा. हालांकि, इसमें कितनी सत्यता है, कहना मुश्किल है. क्योंकि तालिबान अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग चाहता है और वह हर हाल में अपनी छवि को बदलना चाहता है, बहुत संभव है कि उसने दबाव के तहत ऐसा बयान जारी किया हो. उसकी मूल सोच बदलेगी, अभी किसी को यकीन नहीं हो रहा है। आपको बता दें कि तालिबान का पहला कार्यकाल 1996-2001 तक रहा था. उस दौरान तालिबान ने पूरे देश में शरिया कानून लागू किया था. महिलाओं को बाहर जाकर काम करने की आजादी नहीं थी। लड़कियों को स्कूल में दाखिला बंद करवा दिया गया. महिलाएं बिना पुरुष संबंधी (महरम) को साथ किए बाहर नहीं निकल सकती थीं। चेहरा बुर्के से ढका हुआ होना चाहिए. जिन महिलाओं ने इन नियमों की अनदेखी की, उन्हें सार्वजनिक तौर पर पीटा जाता था. उनकी बेइज्जती की जाती थी। दहशत फैलाने के लिए सार्वजनिक तौर पर चोरों के हाथ काट दिया करते थे. पर-पुरुष से संबंध रखने पर महिलाओं को पत्थर मारने की सजा दी जाती थी.क्या तालिबान इस बार भी ऐसा करेंगे, ऐसी आशंका फिर से गहराने लगी है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक मई से लेकर अब तक ढाई लाख अफगानी देश छोड़ चुके हैं। इनमें 80 फीसदी महिलाएं और बच्चे हैं।
हाल के पिछले कई सालों के मुकाबले 2021 में महिलाएं और बच्चे अधिक संख्या में मारे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने 2009 से इस तरह का आंकड़ा इकट्ठा किया है. उसके मुताबिक तालिबान ने इस साल 50 फीसदी अधिक हत्याएं की हैं. हालांकि, तालिबान इन हत्याओं की जिम्मेदारी नहीं ले रहा है.अफगानी छात्रों को भय सता रहा है कि उनकी पढ़ाई प्रभावित होगी. उनका इंटरनेट कनेक्शन काटा जा सकता है. तालिबान ने कामकाजी महिलाओं से कहा कि वे अपने कार्यालय नहीं जा सकती हैं. गाने सुनने या टीवी देखने पर रोक लगा दी गई है.मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान लड़ाके घर-घर जाकर 12 से 45 साल की लड़कियों और महिलाओं की सूची तैयार कर रहे हैं. उनसे जबरन शादी कर रहे हैं।
सूत्र बता रहे हैं कि विवाह करने के बाद इन महिलाओं और लड़कियों को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाया जाएगा और फिर से तालीम देकर प्रामाणिक इस्लाम में परिवर्तित किया जाएगा।
अफगान वूमेन नेटवर्क की कार्यकारी निदेशक मेरी अकरमी ने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय खासकर अमेरिका ने तालिबान को वहां फिर से सत्ता हासिल करने के जरूरी मंच एवं मान्यता प्रदान की.उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति ‘महिलाओं के लिए भयावह है’, क्योंकि बिना महरम (पुरुष संरक्षक) के घर से निकलने पर महिलाओं के साथ मार-पीट की कई घटनाएं सामने आई हैं, भले ही वे स्वास्थ्य केंद्र ही क्यों न जा रही हों.उन्होंने कहा, ‘दुकानों को बिना महरम वाली महिलाओं को सामान बेचने से मना कर दिया गया है. तालिबान ने उसके लड़ाकों को खाना खिलाए जाने का आदेश दिया है, अन्यथा सजा भुगतने को कहा है.’मैकगिल यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर वृंदा नारायण के मुताबिक पिछले 20 वर्षों में अफगान महिलाओं द्वारा प्राप्त लाभ खतरे में हैं, जिनमें विशेष रूप से शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी शामिल हैं. तालिबान में शामिल होने के लिए आतंकवादियों को लुभाने के उद्देश्य से ‘पत्नियों’ की पेशकश करना एक रणनीति है. यह यौन दासता है, शादी नहीं, और शादी की आड़ में महिलाओं को यौन दासता में झोंकना युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध दोनों है.जिनेवा कन्वेंशन के अनुच्छेद 27 में कहा गया है: ‘महिलाओं को उनके सम्मान पर किसी भी हमले के खिलाफ विशेष रूप से बलात्कार, जबरन वेश्यावृत्ति, या किसी अन्य प्रकार के अभद्र व्यवहार के खिलाफ संरक्षित किया जाना चाहिए.’2008 में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने संकल्प 1820 को यह घोषित करते हुए अपनाया कि ‘बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य रूप युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध हो सकते हैं.’ इसमें यौन हिंसा को समुदाय के नागरिक सदस्यों को अपमानित करने, उन पर हावी होने और उनमें डर पैदा करने के लिए युद्ध की एक रणनीति के रूप में मान्यता दी गई है.वर्तमान में, अफगान सरकार की टीम में केवल चार महिला शांति वार्ताकार हैं और तालिबान की ओर से कोई नहीं है।
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