भोपाल। एक तरफ तो प्रदेश की शिवराज सरकार स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए प्राइवेट स्कूलों की तर्ज पर सीएम राइस स्कूल खोल रही है. दूसरी तरफ प्रदेश के 43 फीसदी सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें अभी तक बिजली भी नहीं है. कोरोना के दौरान सरकार ऑनलाइन और टीवी के माध्यम से शिक्षा दिए जाने का प्लान बना रही है. सरकार के इन दावों की केंद्र सरकार की एक संस्था ने ही पोल खोल दी है.
पहल अच्छी, लेकिन इंतजाम कहां हैं
मध्य प्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार दावा कर रहे हैं कि हम प्रदेश में ऑनलाइन शिक्षा पर जोर दे रहे हैं. हालांकि वे मानते हैं कि ऑनलाइन एजुकेशन के लिए ग्रामीण इलाकों के इंटरनेट और नेटवर्क की समस्या है. इसे देखते हुए सरकार टीवी (टेलीविजन) के माध्यम से भी छात्रों को शिक्षित करेगी. यह दावा करने से पहले मंत्रीजी शायद यह भूल गए कि यूनिफाइड इंस्टीट्यूशनल डॉटा फॉर सेकेंडरी एजूकेशन (यूडीआईएसई) की रिपोर्ट सरकार के इन दावों की पोल खोल चुकी है.
65 फीसदी स्कूलों में ही है बिजली
यूडीआईएसई की रिपोर्ट बताती है कि भारत के सिर्फ 30% सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर है और 22% स्कूलों में इंटरनेट कनेक्शन, हालांकि शौचालय और हाथ धोने जैसी सुविधा 90% स्कूलों में मौजूद है. इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी समस्या है बिजली. मध्य प्रदेश के सभी सरकारी और गैर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल्स को मिला लिया जाए तो भी सिर्फ 65 प्रतिशत स्कूलों में ही बिजली है. ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन और टीवी के माध्यम से पढ़ाई कराने की सरकार की पहल तो अच्छी है, लेकिन यह सब कैसे होगा, क्योंकि स्कूलों में न तो बिजली की सुविधा है और न ही इंटरनेट की. खास बात यह है कि ये हालात तब हैं जब सरकार ने शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के बजट का प्रावधान किया है.
क्या कहती है UDISE की रिपोर्ट
यूनिफाइड इंस्टीट्यूशनल डॉटा फॉर सेकेंडरी एजूकेशन (यूडीआईएसई) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2012-13 में एमपी में स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा का प्रतिशत 36.3 था. 2019-20 में यह सुविधा 90% स्कूलों में मौजूद है. स्कूलों में एडमिशन का प्रतिशत बढ़कर 4 लाख 6 हजार 868 हुआ है, लेकिन इस दौरान कोरोना काल में मध्यप्रदेश में 20,000 स्कूल बंद भी हुए हैं. इसी का नतीजा है कि सरकार घर पर ही ऑनलाइन एजुकेशन को तवज्जो दे रही है. दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में शिक्षकों की संख्या और मानदेय में इजाफा हुआ है. इस साल विभिन्न तरीके से 29196 एनरोल किए गए जो नेशनल एवरेज के बराबर है 2018-19 के मुकाबले 2019-20 में शिक्षकों की संख्या में 2.72% की वृद्धि हुई है. मध्यप्रदेश के लिहाज से बात करें तो 18% स्कूलों में मेडिकल फैसेलिटीज भी उपलब्ध नहीं है. 1900 स्कूलों के पास अपना भवन नहीं है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के 6 हजार से ज्यादा स्कूल एक या दो कमरों में चल रहे हैं.
कहां जाता है बजट
शिवराज सरकार ने स्कूली शिक्षा के लिए बजट में 40 हजार करोड़ का प्रावधान किया है.हर साल यह बजट शिक्षा के लिए दिया जाता है. ऐसे में सुविधाओं से दूर स्कूलों की हकीकत देखकर यह सवाल उठता है कि आखिर यह बजट जाता कहां हैं. इसे लेकर कांग्रेस ने भी प्रदेश सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता कहते हैं कि 15 साल पहले और हाल ही में हमारी सरकार को बेदखल कर सत्ता में लौटी बीजेपी सरकार ने स्कूली शिक्षा की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया है यही वजह है कि स्कूल आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.
छत्तीसगढ़, बिहार से भी पीछे है मप्र
नीति आयोग ने इंडिया इनोवेशन इंडेक्स 2020 के तहत जो डाटा तैयार किया है इसमें दिल्ली को आय के उच्चस्तर के साथ सरकारी स्कूलों में मूलभूत संसाधनों के आधार पर सबसे ज्यादा स्कोर मिला है. इस इंडेक्स में मध्य प्रदेश बिहार और छत्तीसगढ़ से भी पीछे है. जबकि प्रदेश सरकार इन तमाम कमियों के बावजूद प्रदेश में स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम होने का दावा करते नहीं थकती है.