ट्रेजेडी किंग के निधन से सिनेमा का एक युग समाप्त हुआ

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बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का लंबी बीमारी के बाद बुधवार सुबह निधन हो गया। ट्रेजेडी किंग के नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने 98 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। 
इस अभिनेता को पिछले 1 महीने में कई बार अस्पताल में भर्ती कराया था। हिंदी फिल्मों के सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में गिने जाने वाले दिलीप कुमार ने 1944 में ‘ज्वार भाटा फिल्म से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और अपने 5 दशक लंबे कॅरियर में ‘मुगल-ए-आजम, ‘देवदास, ‘नया दौर तथा ‘राम और श्याम जैसी अनेक हिट फिल्में दीं। वह आखिरी बार 1998 में आई फिल्म ‘किला में नजर आए थे।
दिलीप कुमार ने साल 1944 में फिल्‍म ‘ज्‍वार भाटा’ से डेब्‍यू किया था। लेकिन तब उन्हें पहचान नहीं मिली। तीन साल बाद जब वह ‘जुगनू’ में नजर आए, तो रातो-रात सिनेमा की दुनिया के स्‍टार बन गए। यह दिलीप कुमार की पहली बॉक्‍स ऑफिस हिट फिल्‍म थी। इसके बाद 1948 में आई ‘मेला, 1949 में रिलीज ‘अंदाज’ और 1951 में रिलीज ‘दीदार’ ने उन्‍हें स्‍टारडम दिया। साल 1952 में रिलीज फिल्‍म ‘दाग’ ने दिलीप कुमार को सुपरस्‍टार का दर्जा दिया। इस फिल्‍म के लिए उन्‍हें पहली बार बेस्‍ट ऐक्‍टर के अवॉर्ड के लिए नामांकित भी किया गया। 
‘देवदास’ से बने ट्रेजडी किंग
पचास का दशक दिलीप कुमार के लिए स्‍टारडम लाया। ‘दाग’ के बाद उन्‍हें सबसे बड़ी सफलता 1955 में ‘देवदास’ ने दी। शरतचंद्र चट्टोपाध्‍याय के उपन्‍यास पर बनी इस फिल्‍म ने दिलीप कुमार को गम में डूबा एक ‘ट्रेजडी किंग’ बना दिया। दिलीप कुमार दुख भरी भूमिकाओं को जीवंत कर देते थे। 
सिनेमा का ‘नया दौर’ लेकर आए दिलीप कुमार
दिलीप कुमार की फिल्‍म ‘नया दौर’ 1957 में रिलीज हुई। इस फिल्‍म के डायरेक्‍टर-प्रड्यूसर बीआर चोपड़ा थे। साथ में वैजयंती माला, अजीत खान और जीवन सपोर्टिंग रोल में थे। कहानी शंकर और कृष्‍णा की थी। दो पक्‍के दोस्‍त जो एक ही लड़की से प्‍यार कर बैठते हैं। इस फिल्‍म के लिए दिलीप कुमार को लगातार तीसरी बार फिल्‍मफेयर का बेस्‍ट ऐक्‍टर अवॉर्ड भी मिला था। 
‘मधुमति’ में दिखी एक अनूठी प्रेम कहानी
साल 1957 में ‘नया दौर’ के बाद 1958 में दिलीप कुमार की ‘मधुमति’ में भी उनके काम की खूब तारीफ हुई। बिमल रॉय के डायरेक्‍शन में बनी इस फिल्‍म में दिलीप कुमार ने एक शहरी लड़के आनंद का किरदार निभाया, जिसे एक आदिवासी बंजारा समुदाय की लड़की मधुमति‍ से प्‍यार हो जाता है। इस फिल्‍म में भी उनके साथ लीड रोल में वैजयंती माला थीं। इस फिल्‍म को 9 फिल्‍मफेयर अवॉर्ड्स मिले थे। जबकि उसी साल इसे बेस्ट फीचर फिल्‍म का नैशनल अवॉर्ड भी मिला।
‘मुगल-ए-आजम’ ने तोड़े सारे रिकार्ड
साल 1960 में रिलीज ‘मुगल-ए-आजम’ ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। के. आसिफ के डायरेक्‍शन में बनी इस फिल्‍म में दिलीप कुमार ने शहजादा सलीम की भूमिका निभाई। मधुबाला ने अनारकली की। पृथ्‍वी राज कपूर इसमें शहंशाह अकबर बने। इस ऐतिहासिक प्रेम कहानी पर बनी फिल्‍म को देखकर यही कहा जा सकता है क‍ि सलीम का किरदार दिलीप साहब से बेहतर कोई नहीं कर सकता। यह उस साल न सिर्फ सबसे ज्‍यादा कमाई करने वाली फिल्‍म बनी, बल्‍क‍ि इसने एक नैशनल अवॉर्ड, तीन फिल्‍मफेयर अवॉर्ड भी जीते। बाद में इस फिल्‍म को 2004 में ब्‍लैक एंड व्‍हाइट से कलर में रिलीज किया गया। दोबारा रिलीज होने पर भी इस फिल्‍म ने तगड़ी कमाई की थी।
क्राइम ड्रामा ‘गंगा जमना’ में लूटी महफिल
साल 1961 में रिलीज ‘गंगा जमना’ एक क्राइम ड्रामा थी। नितिन बोस ने फिल्‍म का डायरेक्‍शन किया। दिलीप कुमार के साथ वैजयंती माला की जोड़ी फिर बनी। इस फिल्‍म की कहानी उत्तर भारत के अवध की है। दो भाई हैं गंगा और जमना। नसीर खान इसमें दिलीप कुमार के भाई के रोल में नजर आए। दोनों में एक तरह की दुश्‍मनी है। एक डकैत है और दूसरा पुलिस अफसर।
‘राम और श्‍याम’ में जुड़वा भाइयों ने लूटा दिल
साल 1967 में रिलीज ‘राम और श्‍याम’ में दिलीप कुमार डबल रोल में नजर आए। दो जुड़वा भाई, जो जन्‍म के साथ ही बिछड़ जाते हैं। फिल्‍म में दिलीप कुमार के साथ वहीदा रहमान, मुमताज, निरुपा रॉय और प्राण हैं। यह फिल्‍म उस दौर में ब्‍लॉकबस्‍टर साबित हुई थी। इस फिल्‍म के बाद इंडस्‍ट्री जुड़वा भाई-बहनों की कहानी की बयार आ गई। 
‘क्रांति’
सत्तर और 80 के दशक में दिलीप कुमार की कई फिल्‍में रिलीज हुईं। लेकिन कह सकते हैं कि यह वह दौर था, जब उनकी फिल्‍में करियर के सबसे निराशाजनक दौर से गुजरीं। इसकी एक वजह यह भी रही कि उस दौर में उन्‍होंने एक्‍सपेरिंटल यानी प्रयोग के तौर भी कई तरह की फिल्‍में कीं। इस दौर में ‘दास्‍तान’, ‘बैराग’ जैसी फिल्‍में आईं। साल 1981 में दिलीप कुमार ने एक बार फिर सुपरस्‍टार की तरह पर्दे पर वापसी की। उनकी फिल्‍म ‘क्रांति’ सुपरहिट साबित हुई। कहानी अंग्रेजों के दौर के भारत और क्रांतिकारियों की थी।
‘शक्‍त‍ि’ में लौटा सिनेमा का असली सितारा
साल 1982 में रिलीज फिल्‍म ‘शक्‍त‍ि’ में दिलीप कुमार ने आलोचकों की बोलती बंद कर दी। पर्दे पर उनके साथ अमिताभ बच्‍चन भी थे, लेकिन दिलीप साहब सब पर भारी पड़े। इस फिल्‍म के लिए दिलीप कुमार और अमिताभ दोनों को बेस्‍ट ऐक्‍टर का फिल्‍मफेयर नॉमिनेशन मिला।
दिलीप कुमार पर्दे पर आख‍िरी बार 1998 में रिलीज ‘किला’ में नजर आए। लेकिन इससे पहले 1991 में रिलीज ‘सौदागर’ में राजकुमार के साथ उनकी दुश्‍मनी की कहानी दर्शकों के दिलों में बस गई। सुभाष घई की यह फिल्‍म सिल्‍वर जुबली साबित हुई। इस‍ फिल्‍म के लिए सुभाष घई को बेस्‍ट डायरेक्‍टर का फिल्‍मफेयर अवॉर्ड भी मिला था।
दिलीप कुमार पर्दे पर आख‍िरी बार 1998 में रिलीज ‘किला’ में नजर आए। 

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