रायपुर।
पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी अक्षमता और असफलता को छिपाने का जरिया प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों को पत्र लिखना बना लिया है। एक तो इस सरकार ने घोषणा पत्र में किए वादों को पूरा नहीं किया, दूसरा धान खरीदी के समय रकबा में कटौती कर किसानों को खून के आंसू रुलवाए।
15 साल की भाजपा सरकार में किसान कभी अपनी फसल बेचने के लिए परेशान नहीं हुआ। उन्हें समय से भुगतान भी हो गया, लेकिन कांग्रेस सरकार में किसानों के साथ अन्याय के अलावा कुछ नहीं हुआ। जब कांग्रेस की अव्यवस्थाओं के कारण प्रदेश में खाद की किल्लत हुई तो सरकार ने व्यवस्थाएं ठीक करने की जगह मंत्री केंद्र सरकार को कोसन और झूठ आरोप मढ़ने आ गए।
खाद की किल्लत को लेकर केंद्र सरकार पर आरोप लगाकर भूपेश सरकार किसानों को गुमराह कर रही है। झूठ बोलकर अपनी गलती केंद्र पर मढ़ना चाहती है।
रमन ने कहा कि हकीकत तो यह है कि केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों की तरह जितनी खाद की मांग की गई थी, उतना खाद छत्तीसगढ़ को भी भेजा है। राज्य सरकार ने खाद के वितरण में भी गड़बड़ी और घोटाला किया। उसके कारण आज किसानों को खाद की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन में लगभग 48 लाख हेक्टेयर में विभिन्न् फसलों की बुआई की जाती है। खरीफ में धान एवं अन्य अनाज 40.50 लाख हेक्टेयर, दलहन 3.76 लाख हेक्टेयर, तिलहन 2.55 लाख हेक्टेयर तथा अन्य फसल 1.32 लाख हेक्टेयर बोई जाती है।
इसके लिए राज्य सरकार ने केंद्र से खरीफ फसल 2021 के लिए 10.25 लाख मीट्रिक टन खाद की मांग की थी, जिसकी स्वीकृति एवं आपूर्ति भी केंद्र सरकार ने की। अब अचानक सीएम भूपेश बघेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर डेढ़ लाख मीट्रिक टन यूरिया और डेढ़ लाख मीट्रिक टन डीएपी खाद की मांग कर रहे हैं।
भूपेश सरकार को उत्तर देना चाहिए कि आखिर केंद्र सरकार द्वारा जब पर्याप्त मात्रा में खाद की आपूर्ति की जा रही है। फिर अचानक तीन लाख मीट्रिक टन की खाद की आवश्यकता राज्य को क्यों पड़ गई।
सरकार को इन सवालों के जवाब देने होंगे
डा. रमन ने कहा कि खाद की कमी से किसान जूझ रहे हैं, उसका कारण भूपेश सरकार की कुनीतियां और कुप्रबंध है। जब 15 करोड़ किलो कम्पोस्ट खाद राज्य सरकार ने तैयार की है तो फिर केंद्र सरकार से पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 30 प्रतिशत अतिरिक्त रासायनिक खाद क्यों मांगी गई है? जब हर साल 10 से 12 लाख मीट्रिक टन खाद की आवश्यकता पड़ती थी, फिर बिना रकबा बढ़ाए आखिर 15 लाख मीट्रिक टन खाद की आवश्यकता क्यों पड़ गई।
खाद का किसानों को पर्याप्त वितरण किए बिना सहकारी समितियों में खाद कैसे खत्म हो गई? खाद का सही वितरण न करने वालों पर सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की जा रही है? आखिर खाद की कमी बताकर नकली खाद बेचने वाले माफिया किसके संरक्षण में फलफूल रहे हैं?