रायपुर ।
सरकार ने इंद्रावती नदी से पानी लिफ्ट करके बस्तर, चित्रकोट व नारायणपुर विधानसभा क्षेत्रों में सिंचाई के लिए जलापूर्ति करने का प्रस्ताव तैयार किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जल संसाधन विभाग के अफसरों को इसके लिए योजना तैयार करने के निर्देश दिए। इसके लिए इंद्रावती नदी में उपयुक्त स्थलों का चयन कर वहां जल संग्रहण के लिए दो-तीन छोटे बैराज या एनीकट का निर्माण किए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने महानदी पर निर्मित बैराजों के जल का उपयोग सिंचाई के लिए किए जाने के लिए भी अधिकारियों को लिफ्ट एरिगेशन की योजना तैयार करने के निर्देश दिए।
बैठक में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गुरु रुद्रकुमार, मुख्य सचिव अमिताभ जैन, अपर मुख्य सचिव गृह व जल संसाधन सुब्रत साहू, जल संसाधन विभाग के सचिव अविनाश चम्पावत, सीआईडीसी के प्रबंध संचालक अनिल राय सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे। बैठक में एसीएस साहू ने बताया कि बीते ढाई सालों में जल संसाधन विभाग ने पुरानी सिंचाई जल परियोजनाओं के पुनर्स्थापन, नहर लाइनिंग व उपलब्ध जल के व्यवस्थापन से वास्तविक सिंचाई का रकबा 10.90 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 13.55 लाख हेक्टेयर हो गया है।
राज्य में निर्मित सिंचाई क्षमता के विरुद्ध खरीफ में 70.88 प्रतिशत व रबी में 25.57 प्रतिशत सिंचाई हो रही है, जो कि राष्ट्रीय औसत के लगभग समतुल्य है। साहू ने बताया कि राज्य में निर्मित व निर्माणाधीन सिंचाई परियोजनाओं से कुल सृजित सिंचाई क्षमता 21.34 लाख हेक्टेयर है। निर्मित सिंचाई क्षमता और वास्तविक सिंचाई क्षमता के अंतर को कम किए जाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।
यही वजह है कि बीत ढाई सालों में वास्तविक सिंचाई के रकबे में जल संसाधन विभाग की परियोजनाओं के माध्यम से 2.65 लाख हेक्टेयर तथा मनरेगा से निर्मित तालाबों, कुंओं के अलावा नलकूल और सुजला योजना के माध्यम से लगभग 1.15 लाख हेेक्टेयर, इस प्रकार कुल 3.80 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा सृजित हुई है। बैठक में जानकारी दी गई कि वर्तमान में जल संसाधन विभाग के बांधों व वृहद जलाशयों में 51.66 प्रतिशत और मध्यम परियोजनाओं व जलाशयों में 39.95 प्रतिशत जलभराव है।
उद्योगों पर 2483 करोड़ बकाया
बैठक में बताया गया कि 179 उद्योगों व 25 नगरीय निकायों पर जलकर की बकाया राशि 2,483.97 करोड़ रुपये है, जिसकी वसूली की कार्रवाई के निर्देश दिए गए। बैठक में बोधघाट परियोजना, छपराटोला जलाशय, खारंग-अरिहन जल संवर्धन, मोंगरा-मोहड़-खरखरा जल आवर्धन योजना, पैरी-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना सहित अन्य सिंचाई परियोजनाओं के संबंध में भी चर्चा की गई।