नई दिल्ली ।
एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ओर से पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के फैसले से इमरान खान की सरकार को बड़ा झटका लगा है। आर्थिक संकट की मार झेल रहे पाकिस्तान की हालत और खराब होने की आशंका है। पाकिस्तान ‘ग्रे लिस्ट’ पर बने रहने का मतलब है कि उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ सहित अंतरराष्ट्रीय निकायों से आर्थिक मदद पाने में मुश्किल आएगी।
इस्लामाबाद स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक ‘तबादलाबी’ द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में कहा गया है कि एफएटीएफ के साल 2008 से देश को ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के फैसले के कारण पाकिस्तान को 38 अरब डॉलर का भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में एफएटीएफ की ओर से फिर ग्रे लिस्ट में डालना पाकिस्तान पर भारी पड़ने वाला है। यह रिसर्च पेपर नाफी सरदार ने लिखा है। इस पेपर का शीर्षक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ की ग्रे-लिस्टिंग का प्रभाव है।
शोध पत्र में कहा गया है कि एफएटीएफ की ग्रे-लिस्टिंग 2008 से शुरू हुई थी और अनुमान है कि इससे साल 2019 तक लगभग 3,800 करोड़ डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान हुआ है। अनुमान के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद में कुल 450 करोड़ डॉलर और 360 करोड़ डॉलर का नुकसान के लिए निर्यात और आवक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी आंशिक रूप से जिम्मेदार हैं। ये नुकसान एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग के नकारात्मक परिणामों की ओर इशारा करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक अब पाकिस्तान के नीति निमार्ताओं को भविष्य के आर्थिक नुकसान से बचने के लिए एफएटीएफ के निर्देशों का पालन करने पर जोर देना होगा। पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एफएटीएफ के कदम से अब पाकिस्तान को 27 में से 26 लक्ष्यों को बड़े पैमाने पर पूरा करने के बाद भी कम से कम एक साल के लिए ग्रे सूची में रहना होगा और सात नए कार्रवाई बिंदुओं पर काम करना होगा।