- यूपी के बाद पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा रैलियों को किया संबोधित
- महाराष्ट्र और बिहार से भी ज्यादा पश्चिम बंगाल में नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियां
- चुनाव प्रचार में राहुल गांधी का सबसे ज्यादा जोर मध्य प्रदेश और राजस्थान पर रहा
- क्षेत्रीय पार्टियों का फोकस गृह राज्यों पर रहा, योगी ने सूबे से बाहर भी खूब किया प्रचार
लोकसभा चुनाव के लिए करीब 2 महीने लंबा और आक्रामक प्रचार अभियान शुक्रवार शाम खत्म हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान 142 रैलियों को संबोधित किया और 4 रोड शो भी किए। दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 128 रैलियों को संबोधित किया। पार्टियों के स्टार प्रचारकों की रैलियां उनकी प्राथमिकता वाले राज्यों और चुनौतियों को भी स्पष्ट तौर पर बयान करती हैं। इनके विश्लेषण से पता चलता है कि इन रैलियों में कितनी ऐसी थीं जो नई जमीन की तलाश के लिए थीं या गढ़ को बचाए रखने या फिर वोटरों के उस हिस्से को अपनी ओर खींचने के लिए थीं, जो असमंजस में थे। ये रैलियां इन सभी का मिश्रण है। बात अगर क्षेत्रीय पार्टियों की करें तो उनका फोकस मुख्य तौर पर संबंधित गृह राज्यों पर रहा। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ उन कुछ मौजूदा मुख्यमंत्रियों में शुमार रहे, जिन्होंने अपने राज्य से बाहर भी प्रमुखता से प्रचार किया। 2 प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों- बीजेपी और कांग्रेस खासकर इनके नेताओं नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की रैलियों से दोनों दलों की प्राथमिकताओं के बारे में आइडिया लगता है। इसमें पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अलग रणनीति की भी झलक मिलती है।
मोदी का बंगाल पर दांव
मोदी के लिए क्या बदला? अगर चुनावी रैलियों को देखें तो सबसे ज्यादा सांसद देने वाला यूपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लिस्ट में टॉप पर बना हुआ है। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां प्रधानमंत्री ने सबसे ज्यादा रैलियों को संबोधित किया। मोदी के प्रचार अभियान में पिछली बार के मुकाबले यही सबसे बड़ा बदलाव भी है। बंगाल लोकसभा में 42 सांसदों को भेजता है जो महाराष्ट्र (48) से कम और बिहार (40) के लगभग बराबर है, लेकिन पीएम मोदी का फोकस बंगाल पर ज्यादा रहा। मोदी ने महाराष्ट्र और बिहार में सिर्फ 8-8 रैलियों को संबोधित किया लेकिन पश्चिम बंगाल में उन्होंने 13 रैलियों को संबोधित किया। अगर पिछली बार से तुलना करें तो नरेंद्र मोदी ने 2014 में बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में पश्चिम बंगाल से ज्यादा रैलियां कीं। पिछली बार मोदी ने पूर्वी यूपी के बलिया में रैली के जरिए चुनाव अभियान खत्म किया था तो इस बार मध्य प्रदेश के खरगोन में आखिरी रैली की।
राहुल का एमपी और राजस्थान पर दांव
राहुल गांधी के लिए क्या बदला? रैलियों के मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की प्राथमिकता में सबसे ऊपर था, जहां उन्होंने 16 रैलियों को संबोधित किया। दूसरे नंबर पर राजस्थान रहा, जहां उन्होंने 10 सभाएं कीं। इससे जाहिर होता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का जोर पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी के शानदार प्रदर्शन को आम चुनाव में भी भुनाने की कोशिश पर रहा। राहुल गांधी ने दक्षिणी राज्यों में भी पीएम मोदी के मुकाबले ज्यादा रैलियां कीं। उन्होंने दक्षिण में खास तौर पर केरल (जहां की वायनाड सीट से खुद लड़ रहे हैं) और कर्नाटक पर जोर दिया। 2014 में कर्नाटक राहुल गांधी की शीर्ष प्राथमिकता में था, उसके बाद पूर्वोत्तर के राज्यों और केरल पर उनका फोकस रहा था।
राहुल बनाम मोदी
अगर दोनों बड़ी पार्टियों के शीर्ष नेताओं की रैलियों की संख्या को देखें तो पीएम मोदी का फोकस पिछली बार के मजबूत गढ़ों (यूपी, राजस्थान आदि) के बचाए रखने के साथ-साथ पार्टी के लिए नई जमीन तैयार करने (पश्चिम बंगाल) पर रहा। दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष का फोकस उन्हीं राज्यों पर रहा, जहां पार्टी ने हाल के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि, इस मामले में उनके लिए यूपी कुछ हद तक अपवाद रहा, जहां उन्होंने काफी जोर लगाया। साफ है कि चुनाव प्रचार में राहुल गांधी ने प्रयोगों पर जोर नहीं दिया।
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन यानी 17 मई को दोनों ही नेताओं- गांधी और मोदी ने प्रेस को संबोधित किया। 5 सालों में पहली बार मोदी किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखें। वह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में आएं लेकिन उन्होंने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। दूसरी तरफ, राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया।