भोपाल।
कोरोना की तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी। इस तीसरी लहर से सावधानी अपनाकर बचा जा सकता है। एम्स भोपाल की पीडियाट्रिक्स विभाग की प्रोफेसर डॉ भावना ढींगरा ने रविवार यह जानकारी चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के 47वीं ई-प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दी। डॉ ढींगरा ने बताया कि कोविड का प्रभाव बच्चों को खासकर 18 से कम आयु वर्ग पर कम ही देखा गया है, क्योंकि आमतौर पर बच्चों में शुगर, हाइपरटेंशन या अन्य गंभीर बीमारियों के लक्षण वयस्कों की तरह नहीं होते हैं। कुछ विशेषज्ञ तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने का अंदेशा व्यक्त कर रहे हैं , लेकिन इसे लेकर भयभित होने की आवश्यकता नही है। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि पांच साल से अधिक के सभी बच्चों को मास्क पहनने की आदत विकसित करें। अनावश्यक सार्वजनिक स्थानों से बच्चों को दूर रखें। उनकी साफ-सफाई और खानपान को मजबूत बनाकर चलें। संगोष्ठी का संचालन फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने किया।
बच्चों को अनावश्यक दवाई ना दें
डॉ भावना ने कहा कि कोविड संक्रमित मां से जन्मे बच्चे में संक्रमण का खतरा कम होता है, इसलिए प्रसव के बाद नवजात को मां बेहिचक अपना स्तनपान करा सकतीं है। अगर हमें बच्चों को सुरक्षित रखना है तो घर के सभी वयस्कों को अपना वैक्सिनेशन समय पर करा लेना चाहिए। इससे अगर आने वाले समय में बच्चे कोविड का शिकार होते हैं तो अधिकांश मामले में यह सूक्ष्म संक्रमण ही होता है। ऐसे में केवल पैरासिटामोल के अलावा कोई भी अन्य दवा बच्चों को नही दी जानी चाहिए।
ब्लैक फंगस की बीमारी से भयभीत न हो
वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ विनीता रमनानी ने कहा कि ब्लैक फंगस की बीमारी से भयभीत होने की आवश्यकता नही है। कोविड से संक्रमित कुल मरीजों में से केवल 0.27 फीसद लोगों में ही इसके लक्षण अभी तक पाए गए है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी शुगर, किडनी या अन्य गंभीर बीमारियों वाले मरीजों को ही ज्यादातर सामने आ रही है। इसके तीन चरण है। पहला नाक में संक्रमण, दूसरा आंख औऱ अंतिम मस्तिष्क में है। आमतौर पर लंबे समय ऑक्सीजन/वेंटीलेटर पर रहने के बाद घर लौटे मरीजों में एक से दो महीने के मध्य इस फंगस के संक्रमण का खतरा रहता है। इसके लक्षण आते है जब लगातार नाक में दर्द, काला पानी या भूरे रंग की परत जमने लगती है। इसके बाद आंखों में दर्द या पुतली का न घूमना, काला घेरा निर्मित होना। इन लक्षणों के साथ तत्काल डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि तीसरी अवस्था मे यह बढ़कर सीधे दिमाग में फैल जाता है। तब इसका उपचार बहुत कठिन हो चुका होता है।