दिसंबर में कहा था- बंगाल में भाजपा डबल डिजिट पार नहीं कर पाएगी, वही हुआ; 10 साल के 9 चुनावों में 8वीं बार सही साबित हुए

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कोलकत्ता; बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा 200 पार सीटों का दावा करती रही। जवाब में तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा था कि अगर भाजपा डबल डिजिट क्रॉस कर गई तो मैं अपना काम ही छोड़ दूंगा।

चुनावी नतीजे प्रशांत को सही साबित कर रहे हैं। बंगाल में भाजपा 99 के पार तो नहीं जा रही। बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में एमके स्टालिन को जीत दिलाने के दावे पर खरे उतरने के बाद भी प्रशांत ने एक टीवी इंटरव्यू में यह कहकर चौंका दिया कि अब वो इस जीत के बाद I-PAC (उनकी फर्म) छोड़ना चाहते हैं। अब वे चुनावी रणनीति बनाने का काम नहीं करना चाहते। वे चाहते हैं कि उनकी टीम के बाकी साथी अब इस काम को संभालें।

जब उनसे पूछा गया कि क्या अब वे राजनीति में आने की तैयारी में हैं तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वे एक विफल पॉलिटिशियन साबित हुए हैं। अब वे आगे क्या करेंगे, इस बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा। हालांकि, मजाकिया लहजे में उन्होंने कहा कि हो सकता है कि वे अपनी फैमिली के साथ असम में जाकर एक टी गार्डन चलाएं।

पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा से मिली करारी हार के बाद 2020 में ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी प्रशांत को तृणमूल में लेकर आए थे। इसके बाद से ही प्रशांत की फर्म I-PAC ने तृणमूल की जीत की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था।

बंगाल चुनाव के दौरान एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा था कि ‘जो भी काम करो, सर्वश्रेष्ठ बन कर करो। अगर मैं स्किल, मैथोडॉलोजी और फैक्ट के इस्तेमाल के बाद भी जीत न दिला सकूं तो मुझे नैतिक रूप से यह काम नहीं करना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि मुझे जीवनभर यही काम करना है। कोई दूसरा काम नहीं करना है। मेरे बाद भी यह काम होता रहेगा। मैंने अपने सहयोगियों को इन सारी संभावनाओं के बारे में पहले से बता दिया है। अगर मुझे यह महसूस हुआ कि मैं इस काम में नंबर-1 नहीं हूं तो मुझे यह काम छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं है। मैं दूसरे के लिए जगह खाली कर दूंगा।’

प्रशांत किशोर राजनेता नहीं हैं, लेकिन उनका काम राजनीतिक दल को चुनाव लड़ने का तरीका बताने का है। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल किस तरह का प्रचार अभियान तैयार करें कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंचे, इसके लिए उनकी कंपनी काम करती है। हालांकि प्रशांत कहते हैं कि किसी दल की चुनावी जीत केवल रणनीति पर निर्भर नहीं होती। दल के नेता का काम और नाम बहुत मायने रखता है।

जानिए, 10 सालों में प्रशांत किशोर का सक्सेस रेट कैसा रहा.

साल : 2012

चुनाव : गुजरात विधानसभा चुनाव

साल 2011 में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ का स्ट्रक्चर प्रशांत किशोर ने ही तैयार किया था। फिर 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर को बीजेपी के प्रचार की जिम्मेदारी मिली और तब 182 में से 115 सीटें जीतकर नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर चुनकर आए थे।

साल : 2014

चुनाव : 16वां लोकसभा चुनाव

गुजरात चुनाव की सफलता के बाद बीजेपी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी भी प्रशांत को सौंपी। तब बीजेपी ने बहुमत से भी ज्यादा 282 सीटों पर जीत हासिल की। इस चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ और ‘थ्री-डी नरेंद्र मोदी’ का कॉन्सेप्ट भी प्रशांत ने ही तैयार किया। इसके बाद से प्रशांत बतौर चुनावी रणनीतिकार एक बड़ा नाम और ब्रैंड बनकर उभरे।

साल : 2015

चुनाव : बिहार विधानसभा चुनाव

2015 बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत ने जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस महागठबंधन के लिए चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने रणनीति तैयार की और चर्चित नारा भी दिया था-‘ बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार हैं’ यह नारा काफी चर्चा में रहा। इस चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन को 243 में से 178 सीटों पर जीत मिली थी जबकि एनडीए महज 58 सीटों पर सिमट गया था।

साल : 2017

चुनाव : पंजाब विधानसभा चुनाव

2017 में प्रशांत किशोर ने पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के लिए रणनीति तैयार कर 117 सीटों में से 77 सीटों पर जीत दिलवाई।

साल : 2017

चुनाव : यूपी विधानसभा चुनाव

फिर आया 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव, इस समय कांग्रेस ने प्रशांत किशोर पर दांव खेला, लेकिन उन्हें बहुत बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। 403 सीटों में से कांग्रेस को महज 47 सीटों पर ही जीत मिली थी। जबकि इस चुनाव में बीजेपी को 325 सीटों पर जीत ​हासिल हुई थी।

यह प्रशांत के करियर में पहला मौका था जब उनकी चुनावी रणनीति काम नहीं कर पाई। हालांकि इस हार पर उन्होंने बिना राहुल और प्रियंका गांधी का नाम लिए कहा- यूपी में टॉप मैनेजमेंट की ओर से मुझे खुलकर काम नहीं करने दिया गया, ये उसी का नतीजा था।

साल : 2019

चुनाव : आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव

इसके बाद प्रशांत किशोर 2019 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के लिए चुनावी सलाहकार नियुक्त हुए। उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस के लिए कैंपेन डिजाइन किए और वाईएसआर को 175 में से 151 सीटों पर जीत मिली।

साल : 2020

चुनाव : दिल्ली विधानसभा चुनाव

2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रंशात ने आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभाई और लगे रहो केजरीवाल कैंपेन लॉन्च किया। इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को 70 में से 62 सीटों पर जीत मिली।

अब कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि 2022 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर सपा या बसपा के लिए चुनावी रणनीति बना सकते हैं। दरअसल, यूपी में कुल मुस्लिम आबादी करीब 20% है। यहां की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें मुस्लिम बहुल हैं। परंपरागत रूप से यहां के मतदाताओं का झुकाव बसपा या सपा की तरफ रहा है।

मार्च 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रशांत को ​प्रिंसिपल एडवाइजर नियुक्त किया। जाहिर है कि वो 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में उनके लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम करेंगे।

यूनिसेफ और यूएन के लिए भी काम किया

44 साल के प्रशांत किशोर मूल रूप से बिहार के रोहतास जिले के गांव कोनार से ताल्लुक रखते हैं। बाद में उनका परिवार यूपी-बिहार बॉर्डर से सटे बक्सर जिला में शिफ्ट हो गया। उनके पिता पेशे से डॉक्टर थे। बिहार में शुरुआती पढ़ाई के बाद प्रशांत ने हैदराबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट के तौर पर करियर शुरू करने से पहले प्रशांत यूनिसेफ में जॉब करते थे और उन्हें इसकी ब्रांडिंग की जिम्मेदारी मिली थी। वो 8 सालों तक यूनाइटेड नेशंस से भी जुड़े रहे और अफ्रीका में यूएन के एक मिशन के चीफ भी रहे।

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